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विपुद्रह-विपुव
२ सकल, मभी। "धनोरधि विपुण-फ्ते ध्यायन ।' राशिमे जो विषुव बारम्भ होता है, उसका नाम 'महा.
(भृक २३३।४) विपुष' है और बिना नक्षत्रके शेपा तुलाराशिक
विपुद्र ह ( सवि० ) विपु विश्वान सकलान् शवून | | गारम्भमें जो विपुवरेखा स्पर्श होती है उसे 'जलविपुष
दुह्यति हिनस्ति इति विपुद्रह-क । शर, वाण, तीर । कहते हैं। '
"विपुद हय यशमूहथुर्गिरा" ( ऋक् ८।२६।१५)
प्रतिलोम और भनुलोमका नियम-जिस शकाम्दमें .,
विपुप (स० क्ली० ) विपुर ।
सूर्यको मेपराशि सञ्चारके दिन जव विपुव भारम्भ होता ..
विषुरूप ( स० वि० ) १ नाना रूप, अनेक प्रकारका ! है, तब उस शकको ३०वो' चैल और ३०वों आश्विनको '
(ऋक् ११२३७)२ विषमरूपका । (ऋक् ६।५८१) दिन और रात्रिका मान समान रहता है । ६६ वर्ष ,
३ नानावर्ण, अनेक रंगका। (ऋक् ६७०३) ८ मास तक यही नियम चलता है। प्रतिलोम गतिको
विषुव ( स० क्ली०)१ समरात्रिन्दिव काल, यह समय जगह सूर्याफे मेप और तुला संक्रमणके एक एक दिन .
जव कि सूर्य विपुपरेखा पर पहुचता है और दिन तथा । पहले विषुव आरम्भ होता है ; अतएव इस (प्रतिलोम)
रात दोनों घरावर होते हैं। चैत्रमासके अन्तिम दिन । गतिमे प्रत्येक ६६ वर्ष ८ मासके बाद मेप और तला
जब सूर्य मीनराशिको पार कर मेराशिमें तथा उसी | संक्रमणके एक एक दिन पहले विपुव भारम्भ होने के
प्रकार आश्विनमासके अन्तिम दिनमें जब घे कायराशि कारण उन दो मासोंक (चैत्र और आश्विन) एक एक
को अतिक्रम कर तुलाराशिमें जाते हैं, उसी समयका दिन पहले अर्थात् १म ६६ वर्ष ८ मास तक ३०वीं को
नाम 'विषुव' है। क्योंकि इस दिन दिन और रातका | २य ६६ वर्ष ८ मास २९वींको ३य ६६ वर्ष ८ मास
मान समान रहता है। इस उक्तिसे यह विश्वास हो | २८वोंको ४र्थ ६६ वर्ष ८ मास २७ यो को इत्यादि
सकता है, कि आजकल पत्रिका में दिवारात्रिका समान | प्रकारसे दिन और रात्रिका मान समान होता है, घोस
मान स्वीं चैत और घी आश्विनको लिखा रहता है,। ६६ वर्ष ८ मासके बाद या इकोस ६६ वर्ष ८ मासक ।
तप क्या उसी तारीख में यिपुरसंक्रान्ति होगो १ अर्थात् | भीतर विपुव आरम्म हो कर वर्तमान ( १८५१ शकान्द)
सूर्य उक्त मितीको हो मीनसे मेपमें राधा कन्यासे तुला वो चैत्र और 'पी' आश्विनको दिन और रात्रिका
जायंगे। किन्तु यथार्थ में वह नहीं है। क्योंकि मोन। मान सामान भावचला आता है। फिर' अनुलोम :
राशिमें संक्रमणसे सूर्यको राशिभोगकालके नियमा गतिस्थलमै भो मेष और तुला संक्रमणके दिन विपुष
नुसार वहां । उस मोनराशिमें ) एक मास तक आरम्भके वादो ऊपर कहे गयेके अनुसर ६६ वर्ष ८ मास
रहना पड़ता है। अतपय सहजगतिमें ६ दिनफे बाद के अन्तर पर क'एक दिन पोछे विपुर आरम्भ होता . :
उनका दूसरी राशिमे जाना असम्भव है। अतएव । है । अर्थात् १मे ६६ वर्ष ८ मास ३०वी चैन और ३०वीं
इसकी ठीक ठीक मीमांसा विस्तृतरूपसे नीचे को। आश्विनको २यो६६ वर्ष ८ मास, १लो पैसाख और १ला.
कार्तिकको, ३य ६६ वर्ण ८ मास श्री वैशान और री ..
विपुवारम्भका नियम, सूर्यको मेपराशि संक्रमण कार्तिकको, इत्यादि नियमसे दिन और रात्रिका मान ।
पूर्व और पश्चात्, प्रतिलोम और मनुलोम गति द्वारा समान होता है।
२७ दिनके मध्य विपुष मारम्भ होता है। जिस जिस सूर्याको मेपराशि संक्रमणके पूर्व और पश्चात्, ..
दिन विपुव आरम्भ होता है अर्थात् सूर्य विपुवरेखाके प्रतिलोम और अनुलोम गति द्वारा २७ दिनके
पूर्व पश्चिम स्पर्शविन्दुफे मध्यगत होते हैं, उसी उसो | मध्य विषुव आरम्भण होता है। इसका स्फुटार्थ यह ...
दिन पृथिबोके जिन सव स्थानोंमें : सूर्यका नित्य दर्शन है, कि सूर्यको मेपराशि संकमण (३० वो चैत्र) ।
होता है, वहां दिन और रात्रिका परिगाण समान रहता दिनसे ले कर पूर्ववतौ २७ दिन (४थो चैत) :
है। विषुव दो है। अश्विनी नक्षत्रके प्रारम्भमें मेष- | तक प्रतिला गतिसे तथा उस दिन (३० यो चैत ). .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७७६
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