पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७७९

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विपुवरखा-विष्कम्भ ६८५ भतिक्रम कर जब फिरसे विपुवरेखा पर पहुंचते हैं, तब गलभाव अक्षरेखा और द्राधिमाकी आवश्यकता होती वामन्तिक समदिनरानि ( Vernal equinox) होतो है। है। प्रत्येक द्वाधिमा रेखा उत्तर-दक्षिण लावभावमे विपुव. सूर्य प्राय:२२वीं दिसम्बरको दक्षिण मकरक्रान्तिसे रेखाके ऊपर गिरी है, इसको माध्यन्दिन रेखा भी २३४६५ अयनांना धीरे धीरे उत्तरको भोर हटने लगते कहते हैं। प्रत्येक अक्षरेग्वा भी माध्यन्दिन रेखासे जहां हैं तथा प्राय: २१वीं मार्गको विपुररेखा पर पहुंचते हैं। लम्ब भावमें एक दूसरेसे मिलती है, वहां ३६० डिग्री इम दिन पृथियोके उष्णमण्डलमें तमाम दिनरातका मान अथवा चार समकोनोंकी उत्पत्ति हुई है। घरावर रहता है। इस दिनको घासन्तिक या महा विस्तृत विवरण विषुव और पृथिवी शब्दमें देखो। निषुवसंक्रान्ति कहते हैं। इसके दूसरे दिनसे सूर्य क्रमशः विपुयत् ( स० क्लो० ) १ निपुव । २ घ्यापक । विधुवरेखासे उत्तरकी ओर जाने लगते हैं तथा २२यीं (ऋक ११८४१०) जनको २३४६५ मन पक्रभावये कर्करकान्ति मा विधूकुद (स'० वि०) द्विखएडविशिष्ट, जो दो खंडों में कर फिरसे दक्षिण यिपुररेखाको ओर अग्रसर होते हैं। विभक्त हो। (बारष० श्री० ॥२२२) इसके बाद ये २०वीं सितम्बर को विपुवरेखा पर पहुंचते ' विपूचक (स० पु०) विपूचिका, विसूचिका नामक है। इस दिनको शारद या जलविपुगसंक्रान्ति कहने हैं। रोग। विसूचिका देखो। अनन्तर सूर्य दक्षिणकी ओर २२यीं ।देसम्बरको मकर- विचि (म० क्लो० ) विनीन मना । कान्ति सीमा पर आते हैं। इस प्रकार सूर्या विपुयरेखा । (भागनत ४।२६:१६) के ऊपर उत्तरसे दक्षिण तथा दक्षिणसे उत्तर अयनमें निपूचिका ( स० स्त्रो० ) पिसूचिका रोग। परिभ्रमण करते हैं। यङ्गाल में साधारणतः घों चैत, स्यी विचिका देखो। आषाद, आश्विन मोर यी पोपको ऐसा हुआ करता विपूचीन ( स० स्त्री० ) १६६लोकगे सर्थन गमनशील, है। पृथिवीके कल्पित मेरुदण्ड (Axis)का मध्यविन्दु । इस संमार तमाम जानेवाला। (कं १६४३८) और विपुवरेनाका मध्यविन्दु यदि एक सरल रेखासे २ सर्वतःप्रसृत, तमाम फैला हुआ। मिला दिया जाये, तो ये दोनों रेखाए एक दूसरे पर विपूरत् (स० वि०) मगलमें परिवर्त्तमान, ममी लम्वरूप में पड़ेगी। | जगह मौजूद। विपुवरेधा और मेरुदण्ड रेखाके संयोजक विन्दुसे | विषोढ़ ( म०वि०) यि महक्त। असहिष्णु, असहन- उत्तर और दक्षिणमें कटकान्ति तथा मकरक्रान्ति तक | कागे। जो बड़ा तिर्याक वृत्त कल्पित होता है, उसका रविमा पौषधी (म स्त्री०) विषस्य औषधी। नागदन्ती। कहते हैं। इस रेसाके किसी न किसी स्थान पर सूर्य (रस्नमामा)

ग्रहण वा चन्द्रप्रहणके समय सूर्य, चन्द्र और पृधियी | विक (संपु०) विक, यह हाथी जिसको अवस्था

पे ममो समसूत्रभावमें रहते हैं । पृथिवी अपने मेरुदण्ड होम वर्षकी हो गई हो। (शिशुपालवध १८०२७) (Axis) के चारों ओर पश्चिमसे पूर्वाको ओर घूमती | विष्कन्ध ( म. ली.) गतिनिवर्तक, यह जो गतिको है । इससे नभोमण्डलका पूर्णसे पश्चिमकी ओर रोक्ता हो। (अथर्व १।१६।३ सायण) आर्शित होना दिखाई देता है। विन्धदूपण ( स० ति० ) विननिवारक, विन बांधा सूर्ण जव विपुपरेखा ऊपर पाते हैं, तव पृथ्वी भरमें रोकनेवाला। (भय २।४१) दिन रात्रिका परिमाण समान ( Equal ) रहता है । इस विष्कम्भ (सपु०)१ फलितज्योतिष के अनुसार मता. कारण इस रेम्वाको विषुवरेखा या निरक्षरेखा (Equator) ईम योगौमसे पहला योग। यह आरम्मके पांच दंखों- कहते हैं। भौगोलिक हिसाबसे म्धानको दूरी निर्णय को छोड़ कर शुभ कार्यके लिये बहुत अच्छा समया कारने यिपुवरेखाके बाद उत्तर और दक्षिण समान्त- जाता है। इस योग, जन्म लेनेवाला मनुष्य सब Vol xxI, 11