पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७९२

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६६० विष्णु पूर्वाद्धृत ऋक का भाव निम्नलिखित ऋोंमे भी : ‘भाष्यमें विष्णुके त्रिविक्रम अयतारको माहात्म्यविषयक पुनरुक्त हुआ है। यथा- कथाका उल्लेख किया है। विष्णुका परम माहात्म्य ____ "सखे विष्णो वितरं विक्रमम्ब द्यौ हिलोकं बजाय मो इस ऋक में गया है। . . विष्कमें हनावत' रिणवाय मिधून इन्द्रम्य यतु । द्वितीय . क में लिखा है, कि विष्णुको महिमांका प्रसवे विगृष्ठा ।" अन्त नहीं है। इनकी महिमा अनन्त है। विष्णुका .. ___ यहां भी इन्द्रने विष्णुको समा फह कर सम्योधन' माहात्म्य सयों को विदित होना सम्भव है। भगवान्ने । किया है तथा नृनासुरको वध करने के लिये विष्णुको धुलोकको ऊपर उठाये.रवा है। विष्णुकी शक्तिसे ही सहायता ली है। भगवान् जो इन्द्रादिके भी सपूज्य ' घलोक ऊपरसे नहीं गिर सकता। पृथिव्यादि भो वन्धु हैं, इन सब कोंमें हम उमका प्रमाण पाते हैं। भगवान् कत्तक विकृत है। इसके द्वारा भगवान् इससे हमें यह भी मालूम होता है, कि भगवान् इन्द्र के शक्तिके बहुल कार्यकारित्व सम्वन्धमें एक मामाम .. सखा हैं। ऋग्वेदमें इन्द्र और विष्णुका म्तव अनेक : पाया जा सकता है। .. . म्थलों में ही एकत्र निवद्ध हुआ है। कोई कोई समझते हैं, कि भगवान सूर्य के ही.दूसरे ___ भगवान् जो सभी जीवोंके सुखममृद्धि देनेमें मय नामसे ऋग्वेदमें परिनित है। यह बात गयौक्तिक और देवताओंसे अधिक शक्तिशाली हैं, ६४ मण्डलफे ४८, अप्रामाणिक है। भगवान के अनेक कार्य सूर्य के सदृश सूक्तको १४वी ऋक में हम उसका प्रमाण पाते हैं । हैं। किन्तु वे स्वयं सूर्य नहीं हैं, पर हां सूर्यमें यथा- ' अनुपविष्ट अवश्य रहे है। भगवान के ध्यानमें भी उन्हें हे पूपन ! में तुम्हारा स्तव करता है, तुम इन्द्रको तरह, "सावित्रोमएडलमध्यवत्ती" कहा गया है। सूर्य उन्हों की दयालु हो, वरुणकी तरह गद्भुत शक्तिशाली हो, अर्यमा- शक्तिसे शक्तिमान है. इसका भी यथेट प्रमाण मिलता की तरह शानी हो तथा भगवान की तरह सब प्रकारको ' है। उद्धत ७ मण्डल के 8 सूक्तको चौथी ऋक पढ़ने. भोगसम्पत्तिके दाता हो । इत्यादि। । से मालूम होता है, कि "इन्द्र और भगवान् इन्होंने ऋग्वेदके पष्ठमण्डलके ५० सूतको १२वी ऋक में सूर्य, अग्नि और ऊपाको उत्पादन कर यजमानके रुद्र सरस्वती आदि देवताओं के साथ भगवान्फे ममाप लिये विस्तीर्ण लोक निर्माण कर रखा है ।" . . प्रार्थनासूचक स्तव है। यथा- ___ उद्धत पञ्चम क में इन्द्र और भगवान्ने मिल कर - "ते नो रुद्रः सरस्वती सजोषा मिड़हष्मत्तो विष्णु- असुरका महार किया है, इसका उदाहरण दिया गया मृइन्तु वायुः। रिभुक्षा चाजो देयो विधाता पर्जन्या है। भगवान द्वारा शम्बर आदिकी पुरो-विनाशका वाता पिप्यतामिपां नः। विवरण ऋग्वेदमें सूत्राकारमें वर्णित है। पुराणमें इसका अर्थात् छन्द्र सरस्वती भगवान् और वायु ये सभी विशेष विवरण देखने में आता है। यचि नामक असुरको सुखदाता हैं। ये हम लोगों पर कृपा दरसाये। रिभुक्षा | दलबल के साथ सहार करनेका विवरण भी इस सूक्तमें वाज, पर्जन्य और वात हम लोगों की शक्ति बढ़ा दिखाई देता है। . . सप्तम मण्डलकं ३५ सूक्तको स्वी अफौ, ३६ सूक्तकी ___ अधिकांश स्थलों मे "उरगाय" शब्द भगवान्के ऋकमें, ३६ सूक्तकी ५ ऋक्में, ४० सूक्तको ५ ऋकमें, विशेषणरूपमें व्यवहत हुभा है। श्रीमद्भागवतपुराणमें ४४ सूक्तको १ ऋकमें तथा ६३ सूक्तको ८वी ऋकमे भी इस शब्दका बहुल प्रचार दिखाई देता है। उरगाय अन्यान्य देवताओं के साथ विष्णुका उल्लेख है। शब्दका अर्थ है. बहुजन द्वारा गीयमान । विष्णु जो सप्तममण्डल के ६६ सुक्तकी प्रथमसं सात काम धेदिक देवतामों में प्रधानतम देवता तथा सूर्य मादिक विष्णुका यथेष्ट माहात्म्य कीर्तित हुभा है। , . उत्पादक हैं, यह भी ऋग्वेदमें लिया है। श्रीभागवतम इस सूक्तको प्रथम ऋषको ध्याध्यामे सायणने अपने / जो श्रवण, कोत्तन, स्मरण, पादसैयन, अर्जन, सार्द्धन . .