विष्णु
गां नारायणाय फान्त्यै नमः, दक्षनेत्र में माधवाय तुष्ट्य , के समय आदिमे श्री योज जोड़ दे। यथा-'श्री .
नमा, वामनेत्र में है। गोविन्दाय पुष्ट्य नमः, इस प्रकार में केशाय कोरी नमः' इत्यादि।
..
क्रमिक सानुस्वार वर्णका उच्चारण करमे निम्नोक्त प्रकार- . अतन्तर तत्त्यन्याम, ऋष्यादिन्यास और विष्णुपक्ष-
से यथायथ स्थानमें न्यास करना होगा । सयके अन्तमें रादिन्यास करना होगा.. विस्तार हो जानेके भयसे
नमान्द प्रयोज्य है। जैसे-दक्षकर्णम 'विष्णवे धृत्यै] इन सब न्यासोंका विवरण नहीं दिया गया। उक्त पूजा
पामकर्ण में 'मधुसूदनाह शान्त्यै' दक्षिण नासापुटमें पद्धतिकी सहायतास पे सब न्यास कर पोछे पुनः ध्यान
'तिविक्रमाय क्रियाये', वाममासापुट में 'घामनाय दयाय करे। ध्यानमन्त्र इस प्रकार है- . .
दक्षिण गएडमें 'श्रीधराय मेधाय' वामगण्ड में 'पोफे. "उद्यतकोटिदिवाकराममनिश शंख गर्दा पक्ष
शाय होयै' ओष्ठ में 'पद्मनाभाय श्रद्धायै अधरमें 'दामोच विभवमिन्दिरा वसुमती संशोमि, पागे दयम् ।
दाय लजायै', अदुवंदनपंक्किो 'यासुदेवाय लक्ष्य' . कोटिराङ्गदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं कौस्तुभो :
निम्नदन्तपंक्तिम 'सङ्कर्षणाय सरस्वत्ये' मस्तकमे 'पशु छोप्त विश्वधर स्ववक्षसि लसन्छीवत्सचिह भजे ॥", . .
नाय प्रोत्ये' मुंखे 'मा अनिरुद्धाय रते' दक्षिणकरमूल, इस प्रकार ध्यान करने के बाद मानसोपचारसे पूता :
मन्धिस्थान और प्रभागादिम 'कं चक्रिणे जयाये' 'सं : कर शङ्ख स्थापन करें। . .
गदिने दुर्गाये" क्रमशः 'शाहिणे प्रमाय 'बडि गने सत्याय
गौतमीय तन्त्रके मतसे ताम्रपान, शङ्ख, मृत्पात्र,
शङ्किो चण्डायै' इसी प्रकारं वामकरमूलसन्धि और
स्वर्ण या रजतपात, ये पञ्चपात विष्णु के अति प्रिय है।
अंग्रेभागादिमें 'हलिने वाण्यै', 'मुपलिने पिलासिन्यै'।
उक विशुद्ध पंञ्चपासको छोड़ कर और कोई भी पान
शूलिन विजयायै' 'पाशिने विरजाये' अकुशिने विश्वाय।।
विष्णु पूजामें काम नहीं आता* :-
दक्षिणादमूलसन्धि मोर भप्रभागादिमें मुकुन्दाव
शङ्कस्थापन के बाद सामान्य पोठपूजा, पोछे विमला .
विनदाय, नन्दजाय सुनन्दायै, नन्दिने स्मृत्यै, नराय ।
दि शक्ति के साथ पीठमन्त पर्यान्त पूजा करके पुनर्धान .
ध्ये नरकजिते समृद्ध । वामवादमूल सन्धि
और मूलमन्त्र में कल्पित विष्णमूर्तिके प्रति आधादनादि
और अप्रभाग आदिमें 'हरये शुद्ध्यै' कृष्णाय बुध्ये,
पञ्चपुष्पाञ्जलि प्रदान करे । अनन्तर आवरण पूजा
मत्याय मृत्ये, सात्वताय मत्ये. सौराय क्षमाये'।
करनी होगी। यथा-"ओं फद्धोलकाय हृदयाय नमः"
दक्षिणपाश्में 'शूराय रमाय', वामपाल िजनाई नाय' ।
- इत्यादि मन्त्रों से अग्न्यादि चतुष्कोणमें तथा चारों दिशा.
पृष्ठम 'भूधराय दिन्यै' नाभिमें 'विश्वमूर्तये क्लिन्नाये'
ओम पूजा करे। 'अनन्तर केशरसमूहमें पूर्णादि कमसे
उदरे ' कुण्ठाय सुदाय' हृदयमें 'त्वागात्मने पुरुषोत्तमाय
"ओं नमः, नं नमः, मी नमः, नां नमः, रां नमः, यं नमः,
पसुधगये' दक्षिणांसमें 'असृगात्मने घलिने पराये', ककुद
णां नमः, यं नमः।" दलसमूहमें पूर्वादिकी ओर 'ओं
में 'मासात्मने बलानुजाय परायणाये' वाम अंशमैं 'मेद
वासुदेवाय नमः' इस प्रकार पूजा करनेके, बाद चतुर्थी
आत्मने वलाय सूक्ष्मायै', हृदादि दक्षिणकरमें अस्या-
विभक्ति जोड़ कर प्रणयादि नमःके बाद सङ्कर्षण, प्रद्युम्न,
त्मने वृपध्नाय सन्ध्याय' हृदादि वामकरमे 'मजात्मने |
अनिरुद्ध मान्यादि कोणगे ; दलसमूहमें शान्ति श्री, सर.
पृषाय प्रशाय' हदादि दक्षिणपादमे 'शुक्रारमने हिंसाय |
प्रभाये' हदादि वाप्रपादमें 'प्राणात्मने यराहाय निशाय -
हृदादि उदरमे 'जीवात्मने विमलाय अमोघाय' हृदादि "ताम्रपात्र' तु राजर्षे. विष्प्योरतिप्रियः मतम् ।।
मुन्नमें 'क्रोधात्मने नृसिंहाय विद्युतायै'। इस प्रकार -
न्यास करें।
. . मत्पात्रञ्च तथा प्रोक स्वर्या वा राजतं तथा । . .
___ अगस्त्यसंहितामें लिखा है, कि यदि भुक्ति पञ्चपात्र हरेः शुद्ध नान्यत्तत्र नियोनयेत् ॥". : ..
मुक्तिको कामना कर पूजा की जाय, तो उक्त न्यास करने ।
(गौतमीयतन्त्र ) ::
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/७९६
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