पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७८

वातध्याघि

हपिपपुसे माझान्त होता है। इससे अनुमान होता है, गरजसे उक वाथ किंवा टर्किस पाय उत्ताप एवं अधिक . कि हदिण्डके वालयेफे ऊपरका फाईवन. सूर्ण रहनेसे वेट पैकिग अथवा फेला साधाययहार करे। . उपच्छनाफारमें चल कर मस्तिकमे मावन्द होने... बहुतों का कहना है, कि स्पालिसिन् स्यालिसिलिक से कोरिया उपस्थित हो सकता है । साधारणतः चालकों- पसिद्ध किया स्यालिसिलेट गव सोडा १० से २० प्रनको । को कोरिया हुआ करता है। यालक और युवकके शरीर मात्रामें ३२४ घंटे पर देनेसे बड़ा फायदा पहुंचता है। में खास कर सभी सन्धियोंके पास छोरा छोटा मर्बुद | किन्तु पोडाकी सभी गवस्थानों में उसका व्यवहार नहीं पैदा होता है एवं बीच योत्र में यह अदृश्य हो जाता है। किया जाता । विकारके सभी लक्षण रहने अथया अधिकांश रोगी आराम हो जाता है, किन्तु किसी हुपिण्ड माकान्त होनेसे उससे उपकार नहीं, बल्कि अप. न किसीमाभ्यन्तरिक यन्त में विशेषता हपिण्डके छेद कार हो सकता है। उत्ताप अधिक रहनेसे तथा प्याधि में कुछ परिवर्तन जरूर रह जाता है। यह रोग फिर हो सामान्य रहनेसे उक्त भौषध सप तरह की घेदना और सकता है। प्रमशः सभी सन्धियाँ मजबूत और विकृत उत्ताप निवारण करती है सही, पर कहीं कहीं उतना होते देखी जाती हैं तथा कमो कभी इन सब स्थानों में फायदा नहीं पहुंचाती । विष्टल नगरके रहनेवाले 10 . । शूलयत् घेदना होती है। स्पेन्सर ( Dr. Spencer )ने १५ प्रेन स्यालिसिलिक गाउट, परिसिप्ल्यास, पायिमिया, इनफ्लुएला, द्वि- एसिख, २ हाम लाइकर एमोनिया साइनेटिस तथा १॥ नोसिस, हिलोपसि फियर और डेङ्गुज्वरके साथ इस प्रेन पकष्ट्राफ्ट ओपिमाइ जल के साथ मिला कर १४ रोगका भ्रम होता है। पहले पोड़ाके साथ पृथक ता घंटे पर गांठकी जलनमें व्यवहार कर फल लाभ किया पोछे वर्णनीय होता है। परिसिप्ल्यास तणा डेङ गुज्यर हैं। कितने चिकित्सक जलन या दर्द मिटाने के लिये की तरह शरीरमें पित्त उछल आता है। निचिनोसिस् दूसरी दूसरी अवसादक औषध, जैसे- एकोनाइन, रागर्म अत्यन्त दुर्वलता, उदरामय गौर विकारके सभी विजिटेलिस्. पण्टिपाइरिन् और मेरे दिशा आदि व्यवहार लक्षण जल्द ही उपस्थित हो जाते हैं। रिलापसिं फिया करते हैं, किन्तु यह भीषध पड़े सावधानीस फिचरसे रागो धार धार आक्रान्त हुमा करता है। पायि- प्रयोग करना उचित है। इस रोगमें क्षार औषध 'मिया पोटासे नाना स्थानों में फुसियाँ निकल आती है तथा इनफ्लुएजामें सदी होती है। पदो. फायदेमंद होती हैं। उनसे पाश सम्बन्धी लपण यह रोग ३से ६ सप्ताह तक रोगीको कष्ट देता है। विशेषता पाइकाच, साहद्रास, नाद्रिास और भाइयो. प्रबल यातरोग प्रायः भारोग्य होता है, किन्तु उत्ताप- दिष्ट तथा फस्फेट या येनजयेट आप पमोनिया विशेष की अधिकता, मल.प, भाक्षेप, अचैतन्य, हपिण्ड था फलमद है। कभी कमी नेयूके रससे भी फायदा पहु- चता है। घेदनामें अफीम और मफिया व्यवहार करना फुस फुस्की गनेक तरदको पोड़ा और विकारके दूसरे चाहिए । अन्यान्य भोपों में ड्राइमिधिमाइन् इथियम, दूसरे लक्षण मौजूद रहनसे गुरुतर कहा जाता है। इसकी के म कोरिया उपस्थित होनेसे रोग प्राय: सांधा | टं अर्गर और दि एकठिया रेसिमोसा विशेष उपकारी तिकोता है। है। ज्वर कुछ कम होने पर कु नाइन देसाते हैं। रोगीको फलालेन अधया दूसरा कोई गरम कपड़ा पद पहले रक्तमोक्षण और पारदरित मापध प्रयोग होती थी, ननेका परामर्श देना आवश्यक है। पीड़ित अङ्ग तकिये पर अमो उस मासुरिक चिकित्साका प्रचलन एकदम नहीं स्थिरतासे रखना चाहिये। शरीरमें किसी तरहको उएटो देखा जाता। कोई कोई कलचुसाई दिय करते हैं। हयान लगाऐं। पिण्डको परीक्षा करनेके लिपे मंगरचे कलेजे में घेदना होनेसे उसका व्यवहार करगा.पदम . में एक छेद रखना उचित है तथा उससे होकर हर रोज | मना है.। पोड़ा कठिन और विकारयुक्त होनेसे, उनक • टेथेस्कोप द्वारा आघात सुने। प्यास युझाने के लिये प्रोपध तथा सुरा दी जा सकती है। यथानियम उप- लेमनेड, पालियाटर मपया यर्फ । उत्ताप दूर करनेके | सर्गादिको चिकित्सा करना भायश्यक है। ...