पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८००

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.७०० ... विष्णुपरायण-विष्णुपुर करना होता है । फलं यथाक्रम रोग, भोग, यान, बन्धन, हिन्दूमन्दिर और मुसलमानांझी मसजिद आदि भी हैं। लाम, ऐश्वर्य, राजपूना, और अपमृत्यु आदि होंगे। एक प्रसिद्ध प्राचीन उच्च राजपथ फलकत्तेसे इस नगर विष्णुपरायण (स' स्रो०) विष्णुभक्त, वैष्णय। " होता • हुआ उत्तर पश्चिमको चला गया है। यहां- विष्णुपर्णिका ( स. स्त्री० ) पृश्निपणी, पिठवन । . . से एक दूसरी सहक दक्षिण मेदिनीपुरकी ओर दौड़ गई विष्णुपणों ( स० स्त्री०) भूमामलकी, भुई आंवला। है। प्रयाद है, कि प्राचीन विष्णुपुर स्थग के "इन्द्रभवन". (वैद्यकनिध०) | के समान मनोरम था। इस प्राचीन नगरमें जगह विष्णुपाद ( स० क्ली० ) १ विष्णुका पदचिह्न । २ एक जगद्द ची अट्टालिका, ग्वाई और भित्तिनिर्माण प्रभृति. गएडशैल । चैष्णवचूड़ामणि राजा चन्द्रने विष्णुके | फै सम्बन्धमे बहुत सो अलोकिक किग्यदतियां सुनी उद्देशसे इसके ऊपर एक ध्वज (स्तम्भ ) निर्माण करा जाती है। यह नगर प्राचीन कालमें बहुसंख्यक सीधावली . दिया है। शिलालिपि-सम्पलित यह ध्यज भी दिल्ली और परिता द्वारा सुदृढ था। उसकी लम्बाई ७ मौल के निकटवत्तों एक देशमे संरक्षित है। प्रकृत विष्णुपाद | नक थो, बोन बीच पुल बने हुए थे। दुर्गप्राकारफे मध्य शैलका अवस्थान पुष्कर शैलके निकट है। हो राजप्रासाद पर्तमान धा। अभी जो भग्नावशेष विष्णुपादुका-भागलपुर जिले के अन्तर्गत चम्पानगर दिखाई देता है, वह सडा ही मौतहलोहोपक और मनो. समोप वीरपुर में अवस्थित एक सुप्रसिद्ध जैनमन्दिर। हर है। नगर मध्य जो मन्दिर हैं, उनके भग्नायशेष.. कहते हैं, कि उस मन्दिरमे विष्णुपद विराजित हैं, इससे से प्राचीन हिंदू स्थापत्यका काफी प्रमाण मिलता है। " निकटवती प्रामवासी उसके प्रति विशेष भक्तिश्रद्धा नगरकं दक्षिणो दरवाजे के समीप विशाल शस्यागारका . . दिखलाते हैं। जैन लोग जैनसम्प्रदायके उपाय चौदी- भग्नावशेष है। दुर्गके भीतर जो अमी जगलसे ढक . स्वे देवताफे पदचिह्न समझ कर उसको पूजा करते हैं।। गया है, सवा दश फुटको एक बड़ो लोहकी कमान है। विष्णुपीठ ( स० पु०) योगिनी-तन्त्रोक्त पीठभेद। कहते हैं, कि यहांके राजाओमसे . एकने देवप्राप्ताद (योगिनीतन्त्र १७) । रूपने इस कमानको पाया था । : इट इण्डिया कम्पनीको विष्णुपुत्र ( पु.) विष्णोः पुत्रः। यिष्णुफे तनय । फिचरिश्त देखनेसे मालूम होता है, कि यह विष्णुपुरराज. विष्णुपुर-१ बङ्गादेश के अन्तर्गत यांकुड़ा जिलेका एक उप. यश क समय बङ्गाल भरमें प्रसिद्ध था। आयि रेनेलके विभाग। यह १८७६ ई०मे विष्णुपुर, कोटालपुर, इन्दास History of the East and. West Indiesनामक ग्रंथके और सोनामोनी ले कर संगठित हुआ है। मानचित्रमें (London edition 1776)विशेनपुर (विष्णु २ उक्त उपविभागके अन्तर्गत बांकुड़ा जिलेका प्राचीन | पुर) गौर कलकत्ता इन दोनों नगरोंके नाम बङ्गन्देशीय नगर। यह यक्षा० २७२४उ० तथा देशा० ७७ ५७ लेफ्टिनाएट गवर्नरफ अधिकृत स्थानोंक मध्य . बड़े पू० मध्य द्वारिकेश्वर नदीसे कुछ मील दक्षिणमें अय अक्षरों में अङ्कित है। विष्णुपुर राज्य स्थाएनके दिनसे स्थित है। यहां प्रायः २०००० लेगांका वास है। ही यहां उस राजवंशका मल्लाब्द प्रचलित देखा जाता पर नगर प्राचीन और समृद्धिशाली है तथा यांकुड़ा जिले है। प्रवाद है, कि जयपुरके एक राजा देशपरिभ्रमण का वाणिज्य प्रधान स्थान है। यहाँस 'चायल, तेल, की इच्छासे खोके साथ घरस निकले। पुरुषोत्तमको शस्त्र, लाख, सई, रेशम आदिकी रफ्सनो तथा नाना प्रकार ओर जाने में उन्हें :विष्णुपुर मिला। यहां वे एक निविड़ कं विलायती द्रवा, लवण, तमाकू, मसाले, मटर, उड़द अरण्यके किसो पान्थनिवासमें ठहर गये। इसी समय आदि द्रवों की आमदनी होती है। इस नगरमें बहुतसे उनको पत्नीने एक पुत्ररत्न प्रसय किया। राजाने जुलाहीका पास है। यहां जगह जगह हाट बाजार | सद्याप्रसपा रानोको साथ ले जाना मच्छा नहीं सममा लगता है। यह स्थान उत्तम रेशमी पत्रकं लिपे प्रसिद्ध और पुत्र के साथ उसको वहीं पर छोड़, मापने प्रस्थान है। यहां साधारण विचारालयादिको छोड़ विद्यालय, कर दिया। कहते हैं, कि तीर्थयात्रा , कालमें माता भी