पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८०६

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७०४ विष्णुपुर-विष्णुभक्त 'नगरमें मुसलमानी अमलके पहले रचित एक अति इसके सिवा विष्णुपुरके प्राचीन भग्नावशेषके . मध्य प्राचीन पृहत् तोरणद्वार है। इसके सिवा एक दूसरे सूच्यारागमञ्च अति प्रसिद्ध है और इसकी गठनप्रणाली घहिरका भी भग्नावशेष दिखाई देता है। उसमें / अति आश्चर्याजनक है। .. . ... . मसलमानो समयकी निर्माणप्रणाली और स्थापत्य | विष्णुपुराण ( स० क्लो०) ध्यासप्रणीत महापुराणभेद ।। शिल्पका निदर्शन मिलता है। . . . यह पुराण अठारह पुराणोंमे एक है। पुराण देखा। . प्रत्नतत्वविदोंने इस स्थानके भग्नावशेष और / विष्णुपुरो (स० स्रो०) १ वैकुण्ठधाम। (पु.)२ प्रन्य. मन्दिरादिको उत्कीर्ण लिपियां देख कर अनुमान किया। कर्नामेद । ये धैकुण्ठपुरी नामसं भोप्रसिद्ध हैं। तोर. कि ये सब कीर्शियां १६षों सदोकी बनी है। जीर्ण] भुक्तिमें इनका घर था तथा मदनगोपाल के ये शिष्य थे। और स्पष्ट शिलालेग्न खूब हृदयनाही है। प्रधान प्रधान भगवद्भक्ति रत्नावली, भागवतामृत, पापयविवरण और मन्दिर और खोदित लिपिका नीचे उल्लेख किया गया है- हरिभक्ति कल्पलता नामक चार प्रग्ध इन्हीं के घनाये हैं। प्राचीन यकीर्शियों में मल्लेश्वर शिवमन्दिर उल्लेख | विणुपुरी गोस्वामी-विष्णुभक्तिरत्नाघलो नामक वैष्णव नीय है। इस मन्दिरमें उत्कीर्ण शिलालिपिसे मालूम प्रधफे प्रणेता। ये प्रायः काशीसे रहा करते थे, इस होता है, कि १२८ मल्लशकमे (१६४३ ई०में ) श्रीवीर | कारण पुरषोत्तमसे स्वयं जगन्नाथदेघने उन्हें श्लेप कर एक . सिंदने यह मन्दिर बनाया। वोर इम्बोरके वैष्णव दोझा | दूतके हाथ कहला भेजा था, 'पुरो ! मैंने समझ लिया, लेनेके बादसे यहुतो विष्णुमन्दिर बनाये गये। उनसे | कि मुक्तिमुक्तिको आशासे काशीमें हो आपने डेरा . . कुछ प्रमिद्ध मन्दिर और उत्कीर्ण शिलालिपिके निर्माण डाला। में अर्थ वित्तहीन बनवारी हूँ, मेरो इच्छा है, कि । कालका उल्लंग्य नीचे किया गया है- एक बार आपके दर्शन करू" भक्तवत्सल भगवानका (१) राजा रघुनाय सिंहकर्न क ६४E मलशकौ | यह वात्सल्यपूर्ण आदेश सुन कर पुरीने बड़े हर्ष से उत्तर प्रतिष्ठित राधाश्यामका ननरत्नमदिर। (२) ९६१ / दिया, "मैं भुक्ति, मुक्ति, गया, काशी, मधुरा, वृन्दावन मल्लशफमें प्रतिष्ठित कृष्णरायका मदिर। (३) १६२ / कुछ भी नहीं समझता! माप भी कौन हैं और भोप- मल्लको प्रतिष्ठित कालाचांदका मदिर। (४) १६६ का तस्य क्या है, यह भी मुझे मालूम नहीं, परन्तु जिस मल्लाब्दमें प्रतिष्ठित गिरिधर लालका नवरत्न । (५)| दिनसे 'जगन्नाथ कृष्ण यह नाम मेरे कानों में घुसा है, ९७१ मलशको राजा दुर्जन सिंहको प्रधान महियो द्वारा| तभीसे उस नामको मालाको हृदयमें धारण कर लिया प्रतिष्ठित मुरलीमोहनका मदिर। (६) ९७६ मत्लशक है। अभी स्वयं प्रभुने जब मुझे अपनी शरण में बुलाया में राजा पोरसिंह प्रतिष्ठित लालजीका मदिर। (७) है, तब एक बार श्रोचरणके दर्शन अवश्य कर माऊंगा।" ६७६ मल्लकम राजा पीरसिंह प्रतिष्ठित मदनगोपाल | इस घटनाके बाद विष्णुपुरो स्वप्रणीतविष्णुभक्तिरना- मदिर । (८) ९८६ मल्लान्दमें वीरसिंह प्रतिष्ठित राधा- चलो' अन्धको साथ ले पुरुषोत्तम गये तथा जगन्नाधदेयके कृष्णका गैलमन्दिर । ( ६ ) १००० मल्लाब्दमें राजा दर्शन कर उन्होंने उनके पादपद्ममें वह प्रन्य समर्पण कर दुर्जनसिंह प्रतिष्ठित मदनमोहनका • मन्दिर। (१०.) | दिया.। (मतमाम ) . . १०३२ मल्लान्द राजा गोपालसिंहके समय स्थापित विष्णुप्रिया (सं० स्त्री०) विष्णः प्रिया । १.विष्णुकी पत्नो.. राधागोविन्दका सौधरत्न। (११) १०४० मल्लशकमें | लक्ष्मो। २ तुलसीवृक्ष। ३ चैतन्यदेवको स्रो। राजा. गोपालसिंहका स्थापित महाप्रभु चैतन्यदेवका विष्णुप्रतिष्ठा (सं० स्त्री.) विष्णुमूर्तिस्थापन । गोभिला. मन्दिर । ( १२) १०४३ मलशक राजा श्रीकृष्णसिंह- चार्याकृत विष्णुपूजन और पौधापन रचित विष्णु प्रतिष्ठा को .महिषी द्वारा प्रतिष्ठित राधामाधवका मन्दिर । (१३) नामक उत्कृष्ट प्रन्थ इनके बनाये मिलते हैं। . . १०६४ मल्लशफमें राजा चैतन्यसिंहका प्रतिष्ठित राधा-विष्णुभक्त (सं० त्रि०) विष्णोर्भक्तः । विष्णुका भक्त्त, श्यामका मन्दिर। . ... . वैष्णय। ... .. .. . . . . . !