पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८०८

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विष्णुशर्गन् दीक्षित-विष्य, हजार दिरहम सिका पाया था। इसके बाद प्रोक, दिग्रु | विष्णु सहस्रनामन ( स० क्लो० ) १ विष्णु का सहस्र नाम । आदि पाश्चात्य भाषामें इसका अनुवाद हुआ था। (पद्मपुराण) २ उस नामका पक प्रध। . . पञ्चतन्त्र देखो। विष्णुसूक्त ( स० को०) ऋग्वेदीय सूक्तमन्यभेद । ३ वात्सर्गके प्रणेता। ४ एक हिन्दू दार्शनिक । विष्णु सूत्र (स० लो०) विष्णु कथित एक सूत्रमध। . पद्मपुराणमें इनका प्रसङ्ग है। उडोमाके एकाम्रकानन विष्णु स्मृति--एक. प्राचीन स्मृतिप्रय । याज्ञवल्लप, . इन्होंने जन्म लिया था। पीछे कामगिरिमें जा कर पे | पेठोनसि आदिने इस प्रथका उल्लेख किया है । १३२२ , घस गये। इनका धर्ममत ध्यासदेयके मत जैसा है। ई० में नन्दपण्डितोंने केशववैजयन्ती नामसे इसको एक इनके रचित एक स्मृति और पुष्कराविषयक प्रन्थ मिलते | रोका लिखो है। वर्तमान कालमें गद्यविष्णु स्मृति, हैं। यह स्मृतिप्राय तथा प्रसिद्ध विष्णुस्मृतिप्रन्ध | द्विष्णु स्मृति, लघुविष्णु स्मृति और गृद्धयिष्णु स्मृति एक है या नहीं, कह नहीं सकते। नामक चार अन्य देने जाते हैं। विष्णुशर्मन् दीक्षित-सांस्कारप्रदीपिकाके रचयिता। विष्णु स्वामिन (स.पु०) १ वैष्णवधर्मप्रवर्तक भाचार्य. विष्णुशर्मन् मिश्र-कर्मकौमुदी और.महारुद्रपद्धतिक रच- भेद । २ सर्वदर्शनसंग्रहफे रसेश्वरदर्शनोक्त एक यिता। माचार्या । ३ भागवतपुराणटीकाके रचयिता । ४ काश्मो. विष्णुशास्निन्-१ कण्यसंहिता होम नामक ग्रन्थ प्रणेता। रस्थ विष्णुमूर्रािभेद । ( राजतर० UIRE ) २ एक प्रसिद्ध संन्यासो। संन्यासाश्रम अवलम्बनके याद विष्णु दिता ( से० स्त्री० ) १ तुलसोवृक्ष। २ मरुवक, पे 'माधवतीर्थ' नामसे परिचित हुए। ये मानन्दतीर्थ / मरुमा । अनुशिष्य थे अर्थात् शिष्यानुकमसे इनका स्थान तीसरा | विष्णु हरि-पक प्राचीन कवि । : था। ये १२३१ ईमें जोयित थे। विष्णूत्सव (सपु०) विष्णु का उत्सव । विष्णुशिला (स० सी०) विष्णुनां अधिष्ठाता शिला । शाल- पिण्यङ्गिरस-समरकामदीपिकाके प्रणेता। प्राम शिला। ये कलि अदके दश हजार वर्ष तक पृथिवी विष्पची (सपु० ) पक्षी, चिडिया । पर रह कर पीछे अन्तहित होंगे। ( मेहतन्त्र ५म प्रकाश ) यिप्पर्धस (सनि० ) स्पर्धा सङ्घ वि-स्पर्ध असुन् । विष्णु शृङ्खल ( स० पु०) योगविशेष, श्रवणाद्वादशो। १ स्वर्ग । (शुक्लयजु० १५।५ महीपर) २ निर्गत्सर, प्रयणा नक्षत्रसंयुक्त द्वादशी यदि एकादशीके साथ संपृष्ट मात्सर्गहीन, जिसे किसी प्रकारका मस्सर न हो। हो, तो चैष्णवमनसे उसे विष्णु शृङ्खलयोग कहते हैं। (अक ८।२३।२) ३. विविध स्पर्धा । (ऋक् फार इम योगमें यथाविधान उपवासादि करनेसे विष्णु सा-! सायण ) ४ स्पर्द्धाविहीन, प्रगल्भरहित । (ऋक ११७३६६) युज्यको प्राप्ति होती है अर्थात् उस जायको फिर जन्म नहरे, विष्पश् ( स० पु०) यि स्पश् किए । विशेष प्रकारसे पढ़ता। (मत्स्यपु०) बाधाजनक, अच्छी तरह रोकनेवाला । (भृक् १२१८६६) विष्णु भुत (स त्रि०) विष्णु रेन'श्रूयात् । १ एक प्रकार विपित (सलो० ) घ्यापित, व्याप्तविशिष्ट, बहुत दूर का आशीर्वाद-वचन, जिसका अभिप्राय है, कि यह सुन | तक फैला हुआ। (अक १६०१५) कर विष्णु तुम्हारा मगल करें। २ ऋषिभेद। विपुलिङ्गक (० त्रि०) १ विष्फुलिङ्ग, अग्निकणा | ___(पा ६।२१४८) / २ सूक्ष्म घटकिका। यह यिषप्रतिपेधक होता है। विष्णु संहिता-एक प्रसिद्ध स्मृतिसहिताका नाम विष्फार ( स० पु०) विस्फुर णिच् अच्, अच् आत् . विण सरस ( स० क्ली० ) तीर्थभेद । ( पराइपु०) पत्वम् । धनुर्गुणाकर्षण शम्द, धनुपको टंकार । विष्णु सर्वश ( स० पु० ) आचार्यभेद। (सर्वदर्शनस०) ये विष्फुलिङ्ग ( स० पु०) स्फुलिङ्ग, मग्निकणा.! ... सर्वशयिष्णु नामस भी परिचित हैं। पे सायणकं गुरु . (भागवत ३१२८४०) विष्य ( स० वि०) विपेण वध्यः यिप यत् (नौषयोधर्मेति ।