पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८१९

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विसूचिका ७१७ प्रादुर्भूत हुआ। उसी समय से इस पोड़ाके सम्बन्धमें भूनलसे ऊपर जाता है और स्थानान्तरित होता है। . . विशेष मालोचना हो रही है। दूमरे मतसे यह विष एक तरहका सूक्ष्म उद्भिजमात्र है। .. ' मन् १८२३ ई० में यह एशिया माइनर और एशिया. ! किन्तु डायर लुइम और कनिहम अणुवीक्षण द्वारा के मसराज्यारें फैला। इसके बाद सन् १८३०६० तक परीक्षा कर उत्तमरूपसे किसी पदार्थका अस्तित्य उप- . . . एशिया के अन्य किसी स्थानमें इसकी प्रयलता दिखाई न । लब्ध नहीं कर सके। हाल अर्थात् सन् १८८४६०में पही। शेपोत वर्णमें फारसमें और कास्पीय सागरने उप पायर कोमने कमावसिलत नामक एक तरह का सूक्ष्म उद्- । कूल देशमें और वहांसे यूरोपके रुसी साम्राज्य विसू., भिज आविष्कार किया है। उनका कहना है. कि पोहाको . .चिकाने विस्तृत हो कर मध्य और उत्तर यूरोपको जन-: कठिन अवस्था में मलमें यहुसंख्यक बेसिलस दिखाई शून्य कर दिया। पीछे १८३१ ई० में यह इङ्गलैएडके ' येते हैं। मतहीसे घे लिधारकुन् ग्लेण्ड और एपिथि- . सबरलैण्ड विभागमें और १८३२ में लण्डन नगरमे , लियम ( श्लेष्मिक झिल्ली' ) तक प्रवेश करता है। किंतु •कालेराका प्रादुर्भाव हुला। इसके बाद यह फ्रान्स । गतडीके नोचेके विधान में दिखाई नहीं देता। सायटर स्पेन, इटली, उत्तर और दक्षिण अमेरिकाके प्रधान हालियरके मतसे उल्लिखित व्याधिगे युरोमिए एक 'प्रधान जनपदों में फैल गया। सन् १८३५ १०में उत्तर प्रकारका सूक्ष्म उद्भिज अंतड़ियों में प्रवेश कर यहां मफ्रिकाके नोलनदके किनारेके जिलों में पहुंच गया ; संख्या में विभक्त हो अतडीके इपिथिलियल कोवोंको किन्तु इससे पहले अरव, तुर्क और मिस्र राज्यके अन्यान्य वंस कर देता है अथवा अतड़ियों को बढ़ा देता है। . स्थानो में इस रोगने अपना प्रभाष फैलाया था। सन् वारंवार मलत्याग होने पर रक्तका जलीयांश निकल .१८३७ १०में इसने फिर यूरोप महादेशमे प्रकट हो जाता है और उससे रक गाढ़ा होता है । इस मत के अनु. महामारी उपस्थित कर दी थी। सार विषाक्त पदार्थ पहले अंतड़ियों में प्रवेश करता है। १८४१६०ो भारत और चीनरायो विसूचिका उनका मीर भी बना है, कि निम्नलिखित मोपोसे - प्रवल प्रकोपसे प्रादुर्भूत हुई। धीरे धीरे वह नाना स्थानों-' उक्त उद्भिज नष्ट हो सकता है। पथा-फेरी मल्फा, में फैल गई। १८४७ ई०को इसका पुना सम और कार्योलिक एसिड, पारमेनेट आध पोराश मोर मलको. । जर्मनीसे गलेएडमें प्रचार हुआ। पीछे वहांसे फरासी । इल | तापटर अनसन (Dr Johuson) का कहना है, कि गज्य होती हुई यह अमेरिका और घेट-इण्डिज दोपमें : इम पीडाका विष पहले रक्तमें प्रवेश करता है मोर दूषित देखी गई। १८५० ई०को पशियामें कालेरा रोगका , रक सञ्चालनके कारण स्नायुमण्डल और स्नैदिक स्नायु प्रादुर्भाव दुधा। धीरे धीरे १८५३ १०का यूरोप (सिम्पधेटिक मार्म)को किया परियर्सन करता है रह कर इसने क्रिमिया युद्धौ ध्यात सेनादल पर अक्र और उसमे हो मताड़ियांके भासा मोटर मार्भको अवशता मण कर दिया। इसके बाद १८६५-६६ ई०को यूरोपमें उत्पन्न होती है। इस तरह अवशनाके कारण सक्षम विसूचिका फिरसे प्रवलभावमें देखी गई थी। सक्ष्म धमनियां और कैशिकायों में रक्तका जलीय मंश इस पीडाका यिष मल और घमनमें रहता है और अंतड़ियों द्वारा अधिक परिमाणसे निकलता है। इम. मच्छरों द्वारा किसी खाद्य पदार्थ के स्पर्श क नेसे अथवा के बाद और हिमाङ्ग आदि कठिन कठिन लक्षण उपस्थित मलकी दुर्गन्धसे भ्यास द्वारा देहमें प्रविष्ट हो जाता है। हो रोगकी विभीषिकामय कर देते हैं। इसमे फुस्सुम अणुमान.यह विष पानी दूध वा बानेको यस्तुमे मिल | की समी कैशिका' संकुपित हो जाती है और • 'जानेसे.और उसे उदरस्थ करनेसे यह रोग उत्पन्न हो। रकसञ्चालनक्रिया सुचारूपसे 'सम्पादित नहीं होती। जाता है। शाफर पटनाफरका कहना है, कि विस्. कभी कभी यह पोड़ा महामारोफे गाकारमे ( पपिडेमिक • निकाका मल जमीनमें फेकने पर जमीनको गमोसे यह रूपसे) उपस्थित होती है और २०२५ दिनों या एक विषाक्त पदार्थ बाप्पाकारमें वायुमे मिल जाता और मास तक प्रथल मायमे रहकर पोछे यायुफे किसी Vol. IXI. 180 - A