७२३
विस्पर्धिन-विस्फोटक
वरूपर्धिन (सं० त्रि.) १ स्पर्धायुक्त, दुसरेको परास्त । विस्फूर्जित (सं० त्रि०) १ वनिनादित । (पु०) २ नाग-
करने की इच्छा करनेवाला । २ सादृश्ययुक्त, सदृश, ! भेदः ।
समान |
विस्फाट (सं० पु०) विस्फोटतीति वि-स्फुट-अच ।
चस्पष्ट (सं०नि० ) व्यक्त, स्फुट, प्रकाशित, सुस्पष्ट । विरुद्ध स्फोटक, विषफोड़ा, दुष्ट स्फोटक। पर्याय-
वस्पृक्क (सं० वि०) मास्वाद ।
पिटक, पिटका, विटक, विटका, स्फोटक, स्फोट ।
विस्फार (सं० पु०) वि-स्फुर घम् । (स्फुरतिस्फुमत्योपनि
(राजनि०)
इत्यादित्वम् । पा ८३७६)
कटु, अम्ल, तीक्ष्ण, उष्ण, विदाही, राक्ष, क्षार और
१रङ्कारध्वनि, कमानका शब्द ।२ स्फूर्ति, तेजी। ४ ज्या, अजीर्णकारक द्रव्योंके भक्षण, अध्यशन, रौद्रसेवन
धनुषको डोरी। ४ कम्प, कांपना, बार बार हिलना! ५ | और ऋतुपरिवर्तनके कारण वातादि दोपत्नय कुपित
विस्तार, फैलाव । ६ विकाश !
हो चर्मका आश्रय ले कर त्वक, रक्त, मांस और अस्थि-
यस्फारक (सं० पु.) घातप्रधान सन्निपात ज्यरका एक को दूषित और चमड़े पर घोरतर विस्फोटक रोग
'मेद। यह ज्यर बहुत भयडर होता है। इसमें रोगीको | उत्पादन करता है। इस रोगके पहले ज्वर होता है।
पांसी, मूळ, मोह, प्रलाप, कम्प, पाव वेदना और | जिस रोगमें रकपित्तके प्रकोपजनित पोडका ज्वरके
जमाई होती है तथा रोगी मुखमें कषाय रसका अनुभव साथ शरीरफ किसो एक स्थानमें या सारी देह में अग्नि-
करता है। (भावप्र०)
दग्ध स्फोटककी तरह उत्पन्न होती है, उसको विस्फो.
वस्कारित (सं० वि०) १ कम्पित, कंपा हुमा, चला टक कहते हैं। सब तरहके विस्फोटमें हो रक्तपित्तका
हुआ । २ स्फूर्तियुक्त, तेज । ३ विस्तारित, फैला हुआ । प्राधान्य रहता है। इसके सम्बन्धों भोजका कहना
४प्रकाशित । २ ध्वनित, वाद किया हुगा।
है, कि घायुके साथ कुपित रक्तपित्त अव त्वक गत होता
वस्फाल (सं० पु.) पिस्फुल घन (पा ६११४७ और है, तभी यह सारी देहमे अग्निदग्धको तरह स्फोटक
८७७६) विस्फार देखो।
उत्पादन करता है।
यस्फुट (सं० लि.) विशप प्रकारसे व्यक्त यो प्रकाशित, यातिक विस्फोट-बातजन्य विस्फोटमै शिर:-
प्रस्फुट।
शूल, अत्यन्त सूचीवेधनयत् घेदना, स्वर, पिपासा,
विस्फुर (सं० लि. ) विस्फार देखो।
पर्यभेद और स्फोटक काले हो जाते है।
विस्फुरफ (सं० पु०) विस्फारक देखो।
वैतिक विस्फोट-पित्तजनित यिस्फोरमे रोगी
स्फुरणी (सं० स्त्री०) तिन्दुकवृक्ष, तेंदूका पेड़। को ज्यर, दाह और पिपासा होती है तथा स्फोटक पीत-
विस्फुरित (सं० त्रि०) वि स्फुर-फ्त । १ स्फूतिविशिष्ट, । रक्त वर्णके और उनमें वेदना होती है। ये शीघ्र ही पक
तेज । २ चञ्चल, गस्थिर । (क्लो०) ३ भानरोगविशेष। । जाते तथा उनसे मवाद आदि माने लगता है।
वस्फुलिङ्ग (सं० पु०) विस्फुरति विस्फुर डु-विस्पु । श्लैष्मिक विस्फोट-कफज विस्फोटमें रोगीको
तादृशं लिङ्गमस्य । १ अग्निकणं, गागको चिनगारी। २ घमन, अरुचि और देवकी जड़ता होती है। स्फोटक
एक प्रकारका विष।
पाण्डवर्ण, कठिन, खुजलाहट' और अपवेदनायुक्त
विस्फूज (सं०३०) विस्फुर्णयु देखे।।
हो कर देरस पकता है।
विस्फून'थु (सं० पु० ) १ पनिर्घोष, वनका मन्द । २/- यातश्लैष्मिक-पातश्लैष्मिक विस्फोटमे घुजला.
उदक, वृद्धि, बढ़ती।
हट, शरीर मारी और भाई वस्त्रावगुण्ठिनको तरह मालूम
विम्फूर्जन (सं० लो०) किसी पदार्थका फैलना या | होता है।
पढ़ना, विकास
___पित्तश्लैष्मिक-फ.फक्सिजनित विस्फोटमे युज.
विस्फूजनी (सं० स्त्री०) सिन्दुकवृक्ष, तेंदूका पेड़। । लाइट, दाह, ज्वर और यमन होता है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८२५
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
