पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८५२

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७४४ 'बीजगणित । . मलती है, जिसके लय और हर समीकरणको अज्ञात परिणत करनेमें प्रयासी हुप। सन् १८२६ ई० में जेको. राशियोको प्रकृतिके गुणफलसे उत्पन्न होती हो।' यह / बोने कल्स जरनलमें इसके सम्बधमें कई प्रवध प्रायः . गुणनफल साधारणतः रेजालटेएटस् नामसे परिचित है। बीस वर्ष तक विशेष मालोचनाके साथ काशित किया। लाप्लेसने पहले पहल इस नामको स्थिर किया और इस प्रसङ्ग में जेकोयो गौर भी कई नपे तयों पर पहुंचे सन् १८४१६० में भी कोची 'अपने लिखे Exercices ta', हैं। वे आलोच्य विषयको पिशदभायसे व्याख्या कर analyse et de physique mathematiquc नामक कनका हो गणितधिदोंमें प्रतिष्ठा लाम कर गये हैं। प्रयोक श्य वएडफे १६१ पृष्ठ में भी यही नाम लिख सिलभेष्टर और फेीं। गये हैं। इस समय उसको डेटरमिनेटस या निर्धारण जाकोबीके द्वष्टान्तों का अवलम्बन कर अनाना बहुतेरे प्रणाली नामसे प्रदर्शित किया गया है ।' अध्यापक | गणितविद भी कार्याक्षेत्र में आगे बढ़े। इनमें सिल- . गौसने प्रथमतः इस प्रवर्तित नामका. थ्यवहार किया। वेटर और केलीका नाम विशेष उल्लेखनीय है। ये Cours danalyse algebrique नामक अन्य कोचीने । गृटेनवासी थे। इन दो गणितविवाने गवेषणांपूर्ण । इसफो alternate tunctions या परम्परा किया नाम | प्रवधावली द्वारा ट्रेजाफ्सन आय दो रायल सोसाइटी, से व्यवहार किया। क्रक्स जरनल, दी फेम्ब्रिज एण्ड मुवलिन मेथेमेटिकल निर्धारण-प्रणालीके सम्बन्ध में लिवनिज अपने जरनल, कार्ट ली जरनल आय मेथेमेटिक्स आदि गणित- प्रन्धमें कुछ कुछ भाभास दे गये हैं। उनके वाद प्रायः विषयक पत्रिकामोंके अंगोंकी पुष्टि की है। साथ ही एक सौ वर्ष तक और किसीने इस विषय पर कोई ये अपने अपने नाम भी गणितविसमाजमें चिरस्मर. आलोचना नहीं की। पीछे एतमार नामक एक पण्डितने / णीय रख गये हैं। वेल्टजर-प्रणीत Theorie und Anwe. इसका परिचय पा कर अपने लिग्वे Analyse der ligness ndung der Determinenten और भलमनकृत Higher . courhes algebriques नामक अन्धमें इसका उल्लेख Algebra नामक वीजगणित प्रायमें यह विषय सुन्दर किया। यह प्रन्थ सन् १७५० में जेनोवा शहरमें और सरल भावसे और संक्षिप्त माकारमें भालोचित प्रकाशित हुआ था । गुणके नियमानुसार गुणफल हुआ है। सिवा इसके इस सम्व धर्म स्पटिउसने सन् योगचितविशिष्ट या वियोगचिह्नविशिए होगा, इस प्रग्धमें १८५१ ई०में, निमोस्कीने सन् १८५८ ईमे, टण्टोरने एतमारने उसका नियम लिपिवद्ध किया है। विगत सन् १८६१ ई०मे का मूल प्रयांकी रचना को । शताब्दमें विहौट, लाप्लेस, लाना और 'भाण्डामण्डे | - भारतीय वीजगणित। ' ' आदि बहुतेोंने पतमारके पन्धका अनुसरण कर प्रध लिन पाश्चात्य जगत्मे इस विद्याका विशेषभावमे पुष्टि. है। सन् १८०१ ६०में गौम 'प्रणोत Desquisitiones | साधन होने पर भी यथार्शम यह शान बहुत पहले Arithmeticae प्रकाशित हुआ । पम्, पुले-डेलिसले, 'भारतवर्ष में प्रचलित था तथा भारतवासी आर्गऋषि नामक एक व्यक्तिने सन् १८०७ ई० में यह प्रथ फ्रान्सीसी और पण्डितों ने जो इसकी आलोचना की थी, इसमें भाषा अनुवाद कर प्रकाशित किया। जरा भी सन्दह नहीं। योजगणितको उत्पत्तिका इति- जाकोवी। हास आलोचना करते समय मि० रुपेन यारोने कुछ , द्वितीय और तृतीय पर्यायके दो दिटेरमिनेएट या प्राचीन प्रथेकि निदर्शनको यूरेपियासीके निकट उप. ' निर्धारणका गुणफल और ऐटरमिनेएट, वा निर्धारण | स्थित किया, इस कारण यूरोपवासीमात्र ही कृतज्ञता. श्रेणीयुक्त-गौसने इस उत्कृष्ट उपपत्तिको आविष्कार के साथ उनका नाम स्मरण करेंगे।' उन्होंने प्राध्या किया। इसके बाद विनेट कौंची और, अनवाना वीज । देशसे कुछ हस्तलिखित 'पोधियोंको संग्रह किया। गणितंछोंके यलसे उक्त तस्य विशेषरूपसे भालोचित उनसे यहुतेरो पुस्तक पारसी भाषामें लिखी हुई थी। हुआ और ये इस गुणफलको ज्यामितिके सम्पाधौ | इन्होंने इसका थोड़ा बहुत अनुवाद कर - मूलसहित :