पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८५५

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७४७ वीजगणित . सरसे स्वीकार किया है। सुप्राचीन वैदिक युगके। समझा जायगा, कि जिस राशिफे पहले यह चिह्न रहता योतिस्तस्यकी मालोचनासे भी यह प्रमाणित होता है।। है, उसके साथ कोई एक राशि जोहनी होगी। जैसे, . .. प्राचीन भारतमें एक समय जो राजनीति, व्यवस्था | क, ख, इससे क और ख की एकन समष्टि समझी जाती • शास्त्र, धर्मविज्ञान और भाचारपद्धतिका यथेष्ट प्रचार है। ३+५, इससे ३ और ५को समष्टि अर्थात् ८ का ___या, उमफे भी काफी प्रमाण हैं। प्राचीन कालसे इन सब बोध होना है। विषयोंको आलोचना और राजशक्तिके साहाय्याभावमें -(वियोग) चिह्न व्यवहत होनेसे मालूम पड़ता आज तक वह एक ही तरह चला आता है। जिस हैं, कि जिस राशिके पहले यह विह्र वैठा है, उसे किसी गतिके वलसे भारतने एक समय इन सब विषयों में | दुसरो रोशिसे घटाना होगा। जैसे, क-ख लिखनेसे सफलता प्राप्त की थी, उसकी गतिमें किसी प्रकारको | समझा जायगा. कि क से स्त्रको घटाना होगा। ६२ दुनिधार्य वाधा उपस्थित होनेसे ही भारतको अवनति । लिखनेका मतलब यह है कि, कि इसे २ वियोग करना हुई है, इसमें सन्देह नहीं। अथवा यह स्वीकार करना | होगा अर्थात् अवशिष्ट ४ राशि रखनी होगी। होगा, कि सभी विचक्षण अमानुपिक धोशक्तिसम्पन्न जिन सब राशियोंके पहले + चिह्न रहता है, उसे आर्यापिगण भारतमें अपूर्ण विद्याका आविष्कार कर भावात्मक (positive) और जिसके पहले-चित रहता गये, इसके बाद वैसे व्यक्तिको फिर इस देश में जन्म- है, उसे अभावात्मक (negative) राशि कहते हैं। ग्रहण नहीं हुगा, इसी कारण भारतको आज यह दुर्दशा किसी राशिके पहले यदि कोई चिह्न न रहे, तो+ (जोड़) चिह्न मानना होगा। अकपात और प्रथम उत्पत्ति। ___जिन सब राशियों के पहले + अथवा-चिह दिवाई (१) पाटोगणितमें दश संख्या है, विशेष नियः देता है उन्हें समचिहविशिष्ट राशि कहते हैं। जैसे+ मानुसार इन सख्याओं के नाना प्रकारके सपोगसे और+ख यह दो संख्या समचिह्नविशिष्ट है। फिर किसी एक भङ्ककी राशि समझी जायेगी। किन्तु | +क और+ग यह दोनों संख्या असमचिहविशिष्ट है। गणितविषयक दुरूह तत्त्वनिर्णयमे अनेक समय इन (३) जिस राशिमें सिर्फ एक संक्या रहती है । उसे अड्डों द्वारा कार्य नहीं होता। इस कारण भराशिके अविमिथ राशि कहते हैं। फिर यदि कोई राशि योग मनिर्णयके लिये अपातके एक साधारण नियम | वा वियोग चिहविशिष्ट अनेक संध्याभोंको समभित माविष्कार करनेकी आवश्यकता होती है। उसोसे | हो तो उसे मिधरोशि (Compound) कहते हैं । +क पीजगणितकी उत्पत्ति है। और - ग पे गविमिश्रराशि है, किन्तु +ग अथवा वीजगणित में कोई भी राशि साडतिक सबा द्वारा क+न+ग ये मिश्रराशि है। • सहज में समझी जा सकती है। साधारणतः वर्णमाला (४) सांख्याका गुणनफल निकालने साधारणतः द्वारा ही उक्त राशिका योध होता है। पाटोगणित-| उन संख्याको सटा कर रखना होता है। अथवा चिट्ठ विषयक सम्पायका समाधान करने के लिये कुछ राशि | योचमें रख उन्हें संयुक्त करना होता है, अथवा दोनों निर्दिष्ट हैं तथा उसीके निर्धारणके लिये अन्य बहुत | के वीचमें x या 'चिह दिया जाता है। जैसे-ख सी अज्ञातस'स्या निर्दिष्ट हुई है। वर्णमालाके आदि ) या कxख, या क-स । प्रत्येकसे गुणाका बोध होता यक्षर क, ख, ग इत्यादि शात संख्याके बदले में ध्ययहार है। फिर क ख ग या कxaxग, या क ख ग इससे किये जाते है तथा अन्तिम अक्षरमाला ल, श, ६, इत्यादि । मी क, ख और गको गुणसमटिका बोध हुमा! द्वारा अहात अनुसन्धानीय राशि लिखी जाती है। यदि गुणनीय राशि मिश्र पर्यायको हो, तो उन चिहनकी नशा । 1 सब राशियों के ऊपर एक रेख (-) और मध्यमे x ...(२) गणितमे + (योग) का बिह व्यवहत होनेसे । चिह दिया जाता है। उस राशिके उपर जो रेखा दी ' सा !