पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८५७

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७४६ बीजगर्भ--घोजमागों गणितमे सन्त्रिवेशित किया जाता है। किंतु ३रे नियम- वीजपूरवन-मेश्के निकटवत्तों स्थानभेद । का निवद्ध न रहनसे यह चतुक विज्ञान में परिणत हुआ (मिनपु० ४६३) है। इस तरह सीमाधीन वोजविधानके नियमानुसार चीजपुरायघृत { हांस्त्री०) शूलरोगोक्त घृतीपधविशेष । . कस्ब" या एक पस्त हो नहीं सकती। प्रस्तुतप्रणालो-धो ४ सेर, काढे के लिये घोजपुर अर्थात् , गर्भ ( स० पु.) वोजानि गर्ने गम्यन्तरे यस्य । घकोतरा नोवूका मूल, रेशीका मूल, रास्ता, गोखरू, पटोल, परवल। - योगगुप्ति ( स० स्रो०) योजानां गुप्तिान । शिम्यी, , विजवंद प्रत्येक ५ पल, भूसी रहित जौ २ सेर, जल ६४ ' सेर, शेप १६ सेर । जल ६४ सैप, शेष १६ सेर, धनियां, सेम। हरीतकी, विकर, हिङ्ग, सचल, विट, सैन्धय, यवक्षार, चोज म (स पु०) आसुरवृक्ष, विजयसार या असन नामक गृक्ष। श्वतधूना, अम्लतम, कूटज, अनार, घृक्षास, जीरा, मंग. योजधान्य ( स० को०) वीजप्रधान धान्यं । १ धायक । । रेला, प्रत्येक २ तोला। दहीका पानी ८ सेर। धीमी धनियाँ। २ वोजके लिये रखा हुआ धान । आंचों यथाविधान पार करना होगा। यह घृत अग्निके योजन (स .) वीज्यतेऽनेनेति वि. इंज-करणे त्युर।। पलानुसार उपयुक मात्रा सेवन करनेसे लिदोपजशल १व्यजन, पंखा झलना । २ सञ्चालन । ३ प्यजन । वातफल, यकृन्दूल आदि नए होते हैं। (भैषज्यरत्ना० शूलाभि०) साधन, पंखा, चामर आदि। ४ सञ्चालनवस्तु (पु.) । बीजपूर्ण ( स० पु० ) १ वोजपूर, विजौरा गीयू । २ मधु. ५चयाक, चकोर पक्षा६ जीपीय पक्षी। (सारस्पस ) .पोतलोध्र। वीजपूर, शरवती नोवू । (पु०) ३ योज द्वारा पूर्ण । घोजपादप (स.पु.) १ असनवृक्षपियासाल, विजय वीजपेशिका ( म० स्त्री० ) योजस्य शुक्रस्य पेशिकेय । सार। २ मल्लातक वृश, मिलायां । । अण्डको

योजपुरुष (स पु०) भादिपुरुष, चशका प्रधान वोजफलक (स० पु० ) बीजप्रधानं फलं यस्य कन् । पोज

.. पुरुष। जिससे घशको प्रथम गणना की जाय अर्थात १८ खजारा नायू । जिससे यह वग'चला हो उसे वीजपुरुष कहते है। वोजमातृका (सं० स्त्री०) पनवीन, कमलगट्टा । भौजपुष्प ( स० पु. ली. ) योजधानं पयस्य। वोजमागी (सपु०) वैष्णव सम्प्रदाय विशेष । पश्चिम १ मरुयक घुक्षा मराआ। २ मदनयक्ष, मैनफलानाल- भारतके स्थान स्थानमें इनका वास है। ये अपनेको वृक्ष. ज्वार । (राजनि०) . निगुणका उपासक बतलाते हैं । ये कभी भी किसी देव. बोजपुष्पक ( से० पु०) वीजपुष्प देखा। मूत्ति की उपासना नहीं करते और न अपने मजनालया वीजपूर (सं० पु.) पाजानांपूस समूदो यत्र । १ फलपुर में किसी देवताको प्रतिष्ठा ही करते हैं। नानक, दाद, • विजौरा, नीबू । पर्याय-योजपूर्ण, पूर्णवोज, सुकेशर, कवीर, मादि जोसब पयो है पे भी इसी तरहके एक वोजक, केशराल, मातुलुङ्ग, सुपूरक, रुवक, यजफलक, पंथी समझो जाते हैं। रामात् निमात् आदि वैष्णव अन्तुम, · दन्तुरच्छद, पूरक, रोचनफल। इसके फलका सम्प्रदाय इनको पाखण्डो कद कर इनसे घृणा करते है। गुण-~अम्म, कटु, उष्ण, श्वासकास और वायुनाशक, कराड ये इनके साथ बैठना तो दूर रहा इनसे अपश शोधनकर, लघु, हृद्य, दीपन, रत्रिकारक, पाचन, कर जाने पर भी अपने को अपचिन समझते है। उनकी माध्मान, गुल्म, दोगडा और 'उदापर्शनाशक समझमे ये जहां आ कर बैठ जाते हैं, वह स्थान मी , वियन्ध, हिका, शल और छहिरोगमे यह विशेष उपकारो, अपपित हो जाता है। है। (राजनि०) २ मधुकर्कटो, चकोतरा, गलगल। शुक्रको ही परब्रह्म कहते हैं। पयोंकि शकसं इसका गुण-स्वादिष्ट, रुचिकर, शीतल, गुरु, रक्तपित्त, ही सारे जोषों को उत्पत्ति होती है। शुक्रका नाम क्षय, श्वासकास, दिका और भ्रमनाशक .. योग है इसीसे इनका नाम योजमागों हुआ है। इनकी Vol. XXI,188 .