पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८५८

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७५० वीजपा\-बोजवपन भजन-सभाका नाम समाज और भजनालयका नाम | गले में तुलसोको माला पहनते हैं और प्रद्य मांसक . समाज-गृह है। गोरखनाथ आदि शिरचित भजनो को व्यवहारसे भी दूर रहते हैं। ये अपनेको निर्गुण ये गाया करते हैं। उपासक कहा करते हैं। फिर भी राम गौर कृष्णके शैव शाक्त मादिकी तरह इनका भी एक तरहका गुण भी गान करते हैं, किन्तु राम और कृष्णका विष्णु. चक्र होता है और उससे अतीव गुह्य व्यापार संघ का अवतार नहीं मानते । परब्रह्म का नाम ही राम रित होता है। शुक्लपक्षीय १४ को इस चक्रका अनुः और कृष्ण हैं। ये देहको कौशल्पा, दश इन्द्रियको दश छान होता है। कोई भी वीजमार्गी अपने घरकी किसी रथ, कुमति या देषका कैकेयी, उदरको भरत और स्त्रीको किसी साधु अर्थात् उदाम्री विशेष के साथ सह सत्त्वगुणको शत्रुघ्न कहते हैं। देहके अभ्यन्तरस्थित वास करा कर उसका वोज निकाल लेता है 1* उसी रामरस नामक पदार्श विशेषको राम और लाहा नाम वीजको शोशीमें बन्द कर रखने और चक दिन यह स्थान विशेषको लक्ष्मण कहते है। घोज समाजगृहमें ला कर एक वेदी पर पुष्पशय्याके योच - इस सम्प्रदायको अनुष्ठित परक्रिया आदि पल्टुदासी एक पानमें रखते हैं। इसके बाद उसमें दुग्ध, मधु, : सत्नाभी भादिकी तरह है। पल्टुदासी देखा। धृत और दधि मिला कर पञ्चामृत तय्यार कर पुष्प और वीजरत्न (स० पु०) वोज' रत्नमिव यस्य। माप. मिष्ठान्न मिला कर उसका भोग लगाते हैं । भोग लगानेके कलाय, उदकी दाल। . बाद समाजके सबको यह परिवेशन किया जाता है। ये चीजरुह ( स० पु०) वीजात् रोहतोति संह इगुपधात् चमस्थलमें जाति पांतिका विचार न करके सबका बनाया क। शालिधान्यादि। मभी खाते हैं। वोजरेचक ( स० पु०) जयपाल, जमालगोटर। . _ गिर्नारक मञ्चल, काठियावाड़में भी इनकी यस्ती वीजरेचन (स० क्ली०) बीज रेचन रेचक' यस्य । ' है। ये अपनी मत प्रणालीका विसामारग कहते हैं। जयपाल, जमालगोटा । इनके महन्त गृहस्थ हैं। सुना जाता है, कि परमार्थ- बीजयपन (स० लो० ) योजानां वपनं । क्षेत्रमें चोज . साधनाके उद्देश्पसे एक बीजमागी अन्य चीजमागी को डालना, जमोनमें बीज बोन!।. ..: भार्यास सहवास करता है। किसोका विवाह होनेसे शास्त्रमें वीजवपनका नियम इस तरह लिखा है:- उसकी भार्साको महन्तके साथ तीन दिनों तक पूर्वफल्गुनी, पूर्वापाढ़ा, पूर्वभाद्रपद, कृत्तिका, भरणी, रहना पड़ता है। महन्त उस स्त्रोसे सम्भोग करते चित्रा, आर्द्रा और अश्लेषा भिन्म नक्षत्रों में , चतुर्थो, और उसे मन्त्रोपदेश देते हैं। नयमी, चतुदशी, अष्टमी और अमावस्या भिन्न तिथियों- ये ऐसे व्यभिचारी हो कर भी सर्वथा स्वेच्छाचारी में ; मिथुन, कन्या, धनुः, मीन, वृश्चिक और नृपलग्नमें नही है। शुद्धाचाराभिमानी अन्यान्य वैष्णयोंको तरह शनि और मङ्गल भिन्न धारको शुभयोग और शुभकरणमें गृही अपनो चन्द्रशुद्धि अवस्था पवित्र देह तथा दृष्ट

  • इनके घर किसी साधुके आने पर अपनी स्त्री अथवा चित्तसे उत्साहके साथ नाचतं नाचते पूर्वाभिमुखी हो

कन्याको उसकी सेवामें नियुक्त करते हैं, उसके साथ सहवास करा | जलसे भरे घडे और सुवर्ण जलनिधिक्त घीजको तीन कर साधुका पोज अर्थात् शुक्र ग्रहण कर एक शीशीमें रख मुट्ठी ले। पोछे मन ही मन इन्द्रदेवका स्मरण कर यह धीज प्राजापत्यतीर्थ द्वारा क्रमसे भूमिमें गिराधे और निम्न ___ और भी सुना गया है, कि महन्तके पास अपनी खीको लिखित मन्त्रका पाठ पारे। वीज वपनके बाद उस दिन भेज कर दोनों के परस्पर सहवास करा कर बीज बाहर करा लेते हैं और वह वीज तथा पारस्य वीज एकत्र मिला कर उसकी Jला करते हैं।

  • कनिष्ठा मालिके निम्नभागका नाम प्राजापत्यतीर्थ है।