पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६

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बातम्यादि

उदरामय दिखाई देता है। समय-समय में यशनको क्रिया , और सल्टका प्रयोग करनी चाहिये। हम पोहामा विशेष

यामा उपस्थित होती है और उसमें घसा उत्पन्न होता औषय कल्विकम् है । यह वाइकार्याने या पसिटेड.मार है। गले और जिला में अनेक परिवर्तन देखे जाते हैं। पोटास अथा कार्यानेट माय लिथियाफे साथ मिला विशेषता यह होती है कि जीभके भीतर दर्द हो जाता है। देना उचित है । घर रहने पर उक्त दवाये लाकर पमो. हत्कम्प गौर हपिण्ड के स्थानमें मस्वछन्दता और निया एसिटेटसके साथ देना उचित है । उत्ताप मधिक रहने समय समय मूर्छा और शरीर ठण्डा हो जाता है। हत्-,पर एएटोफेरिन, एण्टोपारिन. या फेनासिरिन स्वता पिण्डका स्पन्दन कमी तो अति मृदु और ठहर ठहर मातामें व्यवहार करना चाहिपे। कभी कमी सेलिसि और को तेजीके साथ होता और नियमित होता है। लेट माय सोडासे उपकार होता है। पारिजाइन तो नाड़ी अत्यन्त दुर्यल गौर क्षोण रहती है। किसी किसी विशेष उपकारी है। चमड़े को किया वृद्धि करने के लिये जगह वनाशूल (Angina : Pectoris) पोड़ा गर्म जल पोया और गर्म जलसे स्नान किया जा सकता

उपस्थित होती है। तरूण वातरोगमें हपिएडके भीतर है.। घेदना निवारण लिये अफीम और माफियाका

जो सब गरियर्तन होते हैं उसमें वैसे नहीं होते। किन्तु प्रयोग करना चाहिये। गिद्राके लिये पारपाल्हिास वेध सादा दाग और पालयों में प्राचीन प्रदाह या अप या माल्फानालु विशेष उपकारी है। पहले लघुपोक फरता चिह मौजूद रहते हैं। | आहार देना चाहिये । रोगीके दुर्बल होने पर शौरया दुग्ध दमा, खुश्क खांसी गौर कभी कभी एम्फिसिमा गादि वलकारक द्रव्य और घोड़ी ब्राएडी (शराब) देना आदि खांसी रोग भी हो सकते हैं। श्लेष्मामें यूरिक / जरूरी है। पार्ट या पियार मय (शराब) देना मना है। पसिएकी सूक्ष्म कणिकायें दिखाई देती है। कभी कमी शाकान्त सन्धियोंमें भोपियाई, येलेना:या पानाइट, . हिचकी लाती है। ..: - लिनिमेएट मल कार फ़लालेन (कपड़ा) गारा दाह कर । भूतयन्त्र में पूर्वयत् नानाविशति उपस्थित होती हैं। रखना चाहिये । रक्तमोक्षण करना उचित नहीं किन्तु सिया इसके प्राचीन सिटाइटिस् और मूवमें पत्थर भी कमो.कभी ब्लिएर लगसे उपकार होता है. माह कम होने पर भी पाण्डेज :बांधना उचित है। योकि . सममें पुराना पकाजिमा, सोरापेसिसा भाटि- उससे गांठोंकी सूजन कम हो जाती है । करिया, रागो और एकनी आदि चर्मरोग और कमा . विरामको आयस्था अधया पुरानो पोदाम रोगीको कभोपारराइटिस या दृष्टिी याचा उपस्थित होती है। सदा फलालैन पहनने, नियमित माहार और व्यायाम माटितम् और रूमाटिक माइटिसके साथ इस करनेका परामर्श देना चाहिये। कभी कमी इसके द्वारा शेगमा हो सकता है। विशेष विवेचनाकं , साथ भी रोग मारोग्य होता है। मधिक मांस, धोनीको कोई सकामलगाव करना आवश्यक है।, . चीज, शराब या फल खाना अच्छा नहों। :मांसमें भेष्ट गठिया यारारोगको प्रयल अवस्था कमी कमी मृत्यु और पक्षीका मांस व्यवहार किया जा सकता है। कुछ जोहोमातोह। किन्तु भीतरी पन्तीक माशान्त दोने लोग शाक-सम्जोफे प्याहार करने का परामर्श देरी है। पर विपद मानेको सम्भावना रहती है। पारंवार या सारेट, मोजल या सेरी थोड़ी मात्रा दी जा सकती है। पविक्रमसे या फोलिक आपसे होने पर शरीर धोरे गथया चाय या काफीका सामान्य रूप से व्यवहार किया पौर शोर्ण होता है। मूवयम्स में पुराना प्रशद रहने । मासकता है। इससे उपकार तो होता है। न जगहोंगे पर पोड़ा कठिन-समझना..चाहिये। साधारण नमककी अगदसेन्यानमध्यपहारसे फायदा रोगधारण्यार, भागमणको अवस्थामै रातको एक होता है ।सादा साफ़ अलका व्यपहार करना चाहिये। विरगन परिका (पिल कमसिग्यो ३ मेम मोर पल सोसायटर पोमा फतः मगा कर देना चाहिये । ममापी डरम) का दूसरे दिन सवेरे पिरेननार्य, सेना, क्रियाको पद्धि करने के लिये टकिंस का गर्म जलमेशर , आता है।