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वीतसूव-वीथिका
"त्यामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव। .. वीषिका (स० स्त्री०) बोधिरेव स्वार्थे कन् तताए।
पिवामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु ॥" (तिथितन्य) | . .. वीप देखो !
वोतसून ( स०क्लो) पछोपवीत, जनेऊ। । पोथी (स'. स्त्री०) विधि ङोप या। १ राजपथ, बड़ा
घीतहज्य (सपु०) स्वनामप्रसिद्ध अङ्गिरसव शोभय रास्ता, सड़क । २ नाटकाङ्गभेद, दृश्य काय या रूपक-
पिभेद, एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ऋषि जो अगिराके वंशमें | फे २७ मेदोंमसे एक भेद। यह पफ हो शङ्कका होता है
थे। ( मा ६।१३०१) २शुनके पुत्र का नाम । ३ एक | और उत्तम, मध्यम वा मघम जिस किसी प्रकारका हो,
गनाफा नाम । (वि०) ४ दत्तहविष्क, पछमें आहुति | एक ही नायक कल्पित होता है। इसमें माकाशभापित
देनेवाला।
और शृङ्गाररसकी अधिकता रहती है। अन्याय रस
धीतहोत्र ( स० पु०) वोतिहोत्र देखा।
यहुत थोड़े रहते हैं। किंतु मुखादि पञ्चाङ्ग सन्धि
चीताशोक (सपु०) अशोकवृक्षभेद ।
सार्थकताके साथ सम्पूर्णभावमें विद्यमान रहती है।
वीति (मस्त्रोक) वो-किन् ।१ गति, चाल । २ दीप्ति, ____ मनोपियोंने बोधोके निम्नलिखित तेरह अग निर्देश
चमक । ३ प्रजन, गर्भ धारण करनेको क्रिया । ४ असन, 'किपे हैं, यथा--उद्घात्यक, अवल गित, प्रपञ्च, विगत,
खाना। ५ धावन, दौड़ना। ६ पान, पीना। ७ प्राप्ति । | छल, याकलि, अधिगएड, गण्ड, अयस्यन्दित, नालिका,
८ पज्ञ | घोटक, घोड़ा।
असत्प्रलाप, पायहार और मृदय । उनके लक्षणादि
घोतिका (सं० स्त्री०) यष्टिमधु, मुलेठी। २ नीलिका, साहित्य दर्पण में इस प्रकार लिखे हैं-. .
नीली निगुड़ी। (वैद्यक नि०) ।
उद्घात्यक-दूसरेके वापयका महत भाध सहज में
योतिन् (सपु०) ऋषिमेव । बहुवचनमें उनके घंशधरका - समझमे न आयेगा, इस कारण द्वार्थ घटित शम्द
शोध होता है।
द्वारा कोई पाषय प्रयुक्त होनेसे यदि कोई उसका प्रकृत
योतिराधस ( स० वि०) दत्तधम, धन देनेवाला । .
अर्थ समझ कर दूसरे पद द्वारा उसी समय उसका
(फ ६६२।२६ मायण)
यथार्धा भाव वाक्त कर दे, तो उसे उद्घात्यक कहते हैं।
यातिहोत ( स० पु० ) वी गतिकान्स्यसनणादनेषु यो ।
जैसे, "ये सब सफेतु करग्रह सम्पूर्णमण्डल चद्रको पल.
तिन, योतिः पुरोडाशादिः यतेऽस्मिन्निति । हुयोमा.
पूर्णक अमिभव या परास्त करनेकी इच्छा करते हैं" मुद्रा-
शुभसिभ्यस्तन इति-एन ( उण ११२७) अथवा पीतये
राक्षसके सूत्रधारको इस गूढार्श-यांजक उक्तिके वाद हो
पानाय होत हव्यं यस्य। १. अग्नि । २ सूर्य।
नेपथ्यमें कहा गया कि, "मेरे जीते जी कौन चन्द्रगुप्तको
३ प्रियव्रत राजाके एक पुनका नाम । (भागवत
अभिभव या परास्त कर सकता है? जिस उद्देश्यसे
५।१।२५) ४ एक राजाका नाम । ( महाभारत ६८९०)
वाफ्यका प्रयोग किया गया था, दूसरे वाक्यसे ठीक यही
५ हैहयवंशीय एक राजाका नाम । (हरिवंश ३३५०)
भाव व्यक्त होनेके कारण यहाँ उद्घात्यकाङ्गक घीयो हुई। .
६ कान्तयज्ञ । (ऋक् २२३८४१) (लि०) ७ मासयक्ष, जो
यज्ञ करता हो।
• अवगित-जहां एकत्र समावेश होने के कारण एक
धोती-वीतिन देखो।
कार्य के याद दूसरे कार्यको सूचना होतो यहां अपल्गिता. .
योताशययन्ध ( स० वि० ) उन्मुक्तप्रन्थि ।
ङ्गक योधि' होती है। जैसे, 'शकुन्तलामें नटरी के प्रति
. (किरात ८५१) सूतधारको उक्तिके बाद ही राजाका प्रवेश वर्णित हुमा
वोतोचर ( ( सवि०) उत्तर देने में मनिच्छु। .
वीत्त (सं० वि० ) यिदा-क्त। वित्त, धन । '
___ प्रपञ्च-परस्पर मिथ्याभूत हास्यजनक बायका
योथि (स': स्त्रो०) विध्यतेऽनया विध-इन इगुपधात् । व्यवहार करनेसे उसको प्रपञ्च कहते हैं। जैसे, विक
किदितीन वाहुलकात् । पंक्ति, श्रेणी २ गृहाङ्ग।।
मोर्वशोर्मे बड़मोस्य. विदुषक और ; चेटीका ' परस्पर
३ बम, राजपथा
.
..
. . . . . ! कथोपकथन ।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६४
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