पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६५

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. : ..वीयो ७५७ विगत-जहां ध्वनिकी समता प्रयुक्त अनेक अर्थों, प्रधु नका यक्ष मीर तो पया, स्वर्ग और मा तक भी को कल्पना की जाती है वहां विगताक वीधी होती । उत्पाटित करू गा" इस स्पर्धाजनक उक्कियो याद पद्युम्नने है। जैसे, "हे पर्वतश्रेष्ठ ! पया तुमसे सङ्गिामुन्दरी भी वैसा ही कहा, "२ असुराधम ! अधिक धड़बड़ मत कर । -उर्वशी देखी गई हैं !" उर्वशीविरहित पुरुरवा कत्तक । मेरे इस भुजदएडनिहित कोदएडसे निकले हुए भरोसे पर्वतके निकट इस प्रकार प्रश्न होने पर प्रतिध्वनिमें मी निहत दैत्यकुल शोणितसे भाप्लुता पृथ्वो जिससे रक्त- वे सब शब्द श्रुतिगोचर होने के कारण देखो गई है। यह मांसलालुप राक्षसोंकी दर्पयदिनी हो माज निश्चय हो - अन्तिम शब्द मानो उस प्रश्न के उत्तरमें परिणत हुआ, मैं जैसा हो करूंगा।" यहां दोनों ही समान स्पर्धा- मतपय यहां देखी गई है। इस शन्दके प्रयोगकाल में जनक वापयों का प्रयोग किया गया है, इस कारण तथा उसकी प्रतिध्वनिमें एक हो रूपसे ध्वनित हो एक अधियल बौथी हुई। वार प्रश्न और दूसरी बार उसोका उत्तर कहिात हुमा ! गएडयक्ता जिस उद्देशसे एक विषय कहते हैं उम है, इस कारण अनेकार्थ पोजनाके कारण त्रिगताङ्गक । समय यदि कोई उसको छोड़ किसी दूसरे उद्देशसे योथी हुई। महसा कोई वाक्य प्रयोग करे तथा यह वाक्य पूर्वोक्त - छल-मिपसदश अप्रिय वाक्य द्वारा लाम दिखा . पाक्यके साथ अर्थासङ्गत हो, तो यहाँ गण्डयोथी होगी। कर प्रतारणा करनेका नाम छल है। जैसे, देणी- जैसे, घेणोसंहारमें दुर्योधनफे 'अयि ! भानुमति ! संहारमें भीम और अर्जुन भृत्योंसे कह रहे हैं, "धूत- सदाके लिये ही तुम्हारी जांधके ऊपर ममोर अर्थात् कोड़ा और जतुगृइदाइका प्रवर्तक, अङ्गरोज कर्णका । मेरा उम्" इतना कहते न कहते कञ्चुकी घबराया मित, दुशासनादिका बड़ा भाई, द्रौपदीफे फेशाकणिका | हुआ आया और सहसा योल उठा, "भग्न भान" प्रयोजक और पाण्डका प्रभु, यह अति अभिमानी यहां पर दुर्योधनका "ममोरु विन्यस्त होगा" यहां तक राजा दुर्योधन मभो कहां है? तुम लोग यह कहते हो, कहनेका उद्देश्य था तथा कम्युको कहने पर था, "देय ! हम अभ्यागत नहीं, केवल उसके साथ मिलने आये हैं ।" एकेतन भग्न हुआ है" किन्तु समयके गुणसे 'ममी' यहां प्रियभाव परुष पाप कहने के कारण छल समझा शब्दके ठीक बाद ही 'भग्न भग्न' भन्दके के साथ गया। ध्वनित होनेके कारण तथा ईश्वरेच्छा फलस भी ___याक लि.दो या दो से अधिक प्रत्युक्ति के द्वारा बद्दी होने कारण दोनों शब्द घिभिन्न उद्देशसे प्रयुक्त हास्यासको उत्पत्ति होनेसे उसफा पालि कहते हैं । होने पर भी उनका अर्थ सुसङ्गत हुआ है, अतएव यहां जैसे, '६ मिक्षक ! या तुम मांस खाते हो १ दिना मद्यक गएडवोधी दुई। यह मांस गृपा है, तुम क्या मध पसन्द करते हो? मद्य अवस्यन्दित-जहां दूसरे वाफ्य द्वारा स्वभावोक्त पान घाराङ्गणाओं के साथ ही सुसङ्गत है, किन्तु घे लोग वाफ्यका स्वोय अर्थप्रकाश न करा कर यदि अन्यथा तो नितान्त अप्रिय है। तुम्हें धन कहाँ १ चोरी या मायने अर्थात् दुसरे अर्थ में उसकी व्याख्या की जाय, तो उकेतोसे हो धन मिल सकता है। तुम क्या चोरी या वहां भयस्यन्दित घीधी कधी जाती है। जैसे, "माता ! सफेतो करना जानते हो ? अभाव होने पर ही सब कुछ। रघुपति क्या हमलोगोंके पिता है ?" लयफे इस प्रश्न पर किया जाता है। यहां प्रत्येक. प्रश्नकी प्रत्युक्तियां सीताने उत्तर दिया, "इस विषयमें कोई शङ्का न करो, हास्यरसाहोपक होने के कारण धाक लि हुई। केयल्द तुम्हारे नहीं, सारी पृथियोफे पिता है ।" यहां पर अधिवल-परस्पर सपजनक वाफ्यप्रयोगको मीताने पितृशब्दसे पालनकर्ता अर्यका आमास दिया , अधिकता दिखानेसे अधिवलालक वीयो होती है। जैसे है,. इस कारण यह ग्यधामाधमे ब्याण्यात होनेसे प्रभावतो नाटकके , यमनामकी "मान तुममें किसीफा! . भवस्यन्दितधोयी हुई। . न मान कर इस गा द्वारा थोड़े हो समयके मध्य नालिका-हास्यरसयुक: प्रहलिका नाम पालिका 'Vol, . AXI 190