पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६८

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. योर चोरकेशरी सान्तिकमाविशेषतालमतमें दिय, बोर गौर । "दिव्पयोरमयोभावः कन्नौ नास्ति कदाचन। । । .. पशु पे तीन भाव हैं । साधक इनमें से किसी एक भायको केवल पशुभावेन मन्धसिद्धिर्भवेन्नृणाम् ॥" साधना करे। (महानिर्वाणतन्त्र ) वोराचार शब्द • देखो। "भावस्तु विविधः प्रोक्ता दिव्यवीरपशु क्रमात । । २१ तण्डलीय, चौलाईको साग । २२ वराहकन्द, गुरवस्तु विधा चात्र तब मन्त्रदेवता" गेठी ।,२३ लताकरस । २४ करवोर, कनेर । १५ अर्जुन (रुद्रयामा ११ पटल) वृक्ष । ( राजनि०) २६ यज्ञाग्नि । ( भरत ) २७ उत्तर २८ रुद्रयामलतन्त्रमें लिखा है, कि प्रथम पशभाय, सुभ, हुशियार । २६ प्रेरणाकारो, यह जो भेजता हो। इसके बाद वोर और इसके उपरान्त दिव्य इसी तरह । ३० भल्लातक वृक्ष, भिलावा । ३१ शुक्लादेर्भ, कुश। ३२ तीन भाय स्थिर करने होंगे। दिन आदिमें पहले दश | पातारएटा, पाला कटसरया । ३३ अपभक नामफ औषधि । दण्ड पशुभाय, धोचक दश दण्ड, बोरभाव और शेष दश ३४ काकोली । ३५ तोरई । (वि.) ३६ श्रेष्ठ । ३७ फर्मठ, दिव्यभाव हैं। जो जिस भाषफे साधक है. ये उसी कमशाल । भावफे समयानुसार कार्य करेंगे। वीर आचार्य-गणितशास्त्र और गणितसारसंप्रद नामक ____घामकेश्वरतम्नमें लिखा है, कि जम्मसे ले कर १६ ।। .. दो पुस्तकों के प्रणेता । आप एक जैन आचार्य थे। वर्ष तक पशु, १६ से १० वर्ष तक वीर और इसके बाद वोरक (सं० पु०) वीर पव स्वार्थ कन् । १ श्वेत करयोर, दिव्यभाव होता है, इस तरह तीन भाव स्थिर करने सफेद कनेर । २ विक्रान्त, शूरवीर। (ऋफ ८८०२) होंगे। ३ मपलट देशविशेषयासी, घह जो किसी निन्दित देशका | निवासी हो। ऐसे व्यक्ति के साथ किसी प्रकारका २० वीराचारविशिए, जो साधक चौराचारको मतसे | सम्पर्क नहीं रखना चाहिये। (भागपत ८।४।४२). साधना करते हैं, उसको वोर कहते हैं। वोराचारी ४ चाक्षप मश्वस्तरीय मुनिविशेष । ( भागवत ८1५15) सर्वदा कुलाचार और कुलसङ्गो बने । सब समय संविद् पान करें। घे सादा उद्ध, तमना होंगे और उनकी पोरकरा ( स० स्त्री० ) पुराणानुसार एक नदीका माम ।, चेटा सदा उन्मत्त की तरह होगी, उनका अङ्ग भस्म द्वारा | इसका दूसरा नाम योरंकरा भी है। धूसरवर्ण तथा वह सदा मद्यपामरत और पलिपूजा- परायण रहेंगे और अपने इष्ट देवताको नर, वकरा, भेडा, घोरका ( पु०) १ रेत, पौर्य । २ वह जो बारीकी भैस भादि पलिद्वारा पूजा करेंगे। इस तरह पूजा भांति काम करता हो, घोरोचित कार्य करनेवाला। .. करनेसे शीघ्र उनका मन सिद्ध होगा। फेवल मद्यपान | ३ पोरोंका कार्य। करनेसे ही धीर नहीं होता, पर घोराचारीका भी मद्य- वीरकाटी (सं० स्त्री० ) नदिया जिलेके अन्तर्गत एक पानमें निषेध है। कलिकाल में इस भारतवर्गम घर घर | प्राम। . . . मद्यपान करनेसे वर्णभ्रष्ट होता है, अतएव मद्यपान | वीरकाम ( स० वि० ) पुत्रकामना, ' पुत्रकी इच्छा निन्दित है। रखनेवाला। महानिर्माणतन्त्रमें विशेषरूपमे लिखा है, कि कलि- / चीरकुक्षि ( स० स्त्री० ) वह नी जो पीरपुत्र प्रसय करतो फालमें वीर और दिव्यभाव निषिद्ध है। अर्थात् साधक इन दो भाषोंकी साधना नहीं करें, केवल पशुभाव द्वारा वीरकेतु ( स० पु० ) पाञ्चाल राजपुत्रभेद। ही साधना करें, इसीसे उनका मन्त्र सिद्ध होगा। इस , (महामा० द्रोणपर्व) वचन अनुसार कलिकाल में दिव्य और वीरमाय 'विल. घोरकेशरी ( स० पु० ) वीर केशरीव । १ वीरश्रेष्ठ, जो कुल निषिद्ध है। । यो में श्रेष्ठ हो। राजपुत्रभेद ।' . . . . . . . . .