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वारत रिका-चारदव
वोरचारिका (स' स्रो०) छुरिकाविशेष, एक प्रकारको । गर्भसे पांच हजार योर पुत्र उत्पन्न हुए थे। इन सब
छुरी। . : ..
| पुत्रोंसे सृष्टि बढ़ी थी । ( हरिवश ३ म०), ४ एक ऋषि,
.पोरगति (स' स्रो० ) योरस्य गतिः। १ वर्ग। २ यह वोरणीके पिता। ५ यजुर्वेदामिश एक आचार्य । .
'उत्तम गति जो पोरोको रणक्षेत्रमें मरनेसे प्राप्त होती है। योरणक (स.पु. ) नागभेद। (भारत आदिपर्व )
- कहते हैं, कि युनक्षेत्रमें योरतापूर्वक लड़ पर मरने वोरणाराध्य-चोलरेणुकासम्यादफे प्रणेता।
वाले लोग सीधे स्वर्गको जाते हैं।
योरणिन् (सं० पु० ) एक मुनि। पे बैदिक आचार्य
पोरगोन (सं० फ्लो०) योरस्य गोल । योरका गोत्र,
माने जाते थे।
वीरका यश। (मार्क पडेयपु० १२५१७) .
वीरतन्त्र (स• लो०) तन-विशेष। । .
पोरनी (सं० स्त्री० ) योरहा। पोरनाशिनी ।
योरतम ( स० नि०) अयमेषामतिशयेन वीर धौर प्रश-
(भथर्य ७।१३३।२)
स्त्याथै समप। अत्यन्त वीर।
योरङ्करा (स' स्त्री०) नदीभेद । (विश्णुपुराण )
| वीरतर (स' क्लो०) १ वोरण, उशीर, खस। २ शर,
तोर। (त्रि०) ३ सामविशिष्ट, शक्तिमान् । ४ दो.
वीरचकेश्वर (स' पु०) विष्णु। (पभरल)
में श्रेष्ठ।
- वीरवानामत् (सं० वि०) विष्णु ।
चौरतरासन (स० क्लो०) पीरतराणां साधकष्टानां
(रामायण ॥२१)
आसनम्। आसनविशेष, वह भासन जिस पर यैठ कर
वोरचरित (स'० पु० ) योरको जीयनी ।
श्रेष्ठ पुरुष साधना करते हैं।
बोरवा (स' पु०) राजपुत्रभेद । (तारनाथा)
मृदु, कोमल, संग्राम या किसी जीव जन्तु द्वारा
बोरवा (सं० स्रो०) घोरका कार्य।
मृत नरकप आसनको वीरतरासन कहते हैं। गर्मच्युत
. . . . . (कथासरित्सा० ८२३०)
शय या नारियोंका योनिज त्या अथवा युवतियोंका
थोरजयन्तिका (सं० स्त्रो०) वीराणां गयन्तिकेय । युद्ध स्वकप आसन, यह भी वीरतरासन है । ये सब आसन
स्पलमें चोरोंका मृत्य।
सिद्धिप्रद तथा अति समृद्धिदायक है। इस मासन पर
वोरजात ( स० त्रि०) १ योरसमूह । २ अपत्यजात । पैठ कर साधन करनेसे घोडे दो दिनों में सिद्धिलाभ
(प्रल् १०३६।११) होता है।
घोरजित् (स'• पु० ) व्यकिभेद । ( कथासरित्सा वीरतरू (सं० पु०) वीरस्तन्नाम्नाख्यातस्तक १
५४११६३) | अर्जुन गृक्ष ।२ कोकिलाक्ष वृक्ष, तालमखाना । ३ दिल्या-
धोरण (स' क्लो०) १उशीर तृण, खस। पर्याय-टा- तरक्ष । ४ भल्लातक, मिलायां । ५शरतुण, शर.
पन, वीरत, योरमद । गुण-पाचन, शीतल, स्तम्मन नामक घास। ६ प्रियाल वृक्ष, पियासार नामक वृक्ष ।
लघु, तिक्त, मधुप ज्यर, वमन और भेदनाशक, कफ
. (वैद्यकनि०)
भोर पित्तप्रशमक, तृष्णा, अत्र, विष, विसर्प और | वीरता (सं० स्त्री० ) योरस्य भावः तल्टाए। वीर
'कच्छदाहयुक प्रगनाशक ।
होनेका माय, शूरता, वहादुरी।
कुशादि सृणगण, कुश, दर्भ, कांस और दुव भादि चोरतापिन्युपनिषद-उपनिषद्भेद।
को जातिके तृण । (अर्फ चि० ) (पु०) ३ प्रजापति वीरदत्त (सं० पु. ) एक प्राचीन ऋपि।
विशेष, वोरण प्रजापति। (भारत १२॥३४८१) इन वोरदामन (सं० पु०) शकानप राजपुत्रभेद ।-
को कन्याका नाम मसिनो था। दक्ष प्रजापतिने स्वय. चौरदेव ( स० 'पु०) एक कवि । क्षेमेन्द्र ने मुस्तविलकमें
भुके कहने से उसमें साइकिशथा। इस कम्पाक! इसका उल्लेख किया है।
Vol. rxi. 191
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८६९
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