पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८७२

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“७६४ वीरभद्रक-चौरभूपत्ति वीरभद्रक ( स० लो० ) पीरमद्रमेव स्वार्थे-कन् । १ घोरभद्ररस ( स०.पु० ) सन्निपातज्यरोक्त एसोपध. योरण, खस। २ पीरभद्र देखो। . . . विशेष । ... . वीरभदकालिकाकपच-महौषध धारणीभेद । इसे धारण | घोरभवत् (स' पु०) वीर देशों । यह प्रयोग द्वितीय पुरुप- करनेसे रोग, भय आदि दूर होते हैं। घोरमद्वतन्त्रमें इस में हुआ है। (कथासरित्सा० १०४४). . . . . . . मन्त्रात्मक कवचका उल्लेख है। | चीरमानु (सं० पु०) राजपुत्रमेद। . ...' . वीरभद्रदेष-वघेल व शोय एक हिन्दू रामा |-- इन्होंने चौरमायां ( स० स्रो०) बोरस्य भार्या। थोरकी स्त्रो।' १५७७ ई०में कन्दर्पचूड़ामणि नामक कामसूत्रकी टीका चोरभुक्ति-जनपदभेद, योरमम। ' . . ". प्रणयन की। प्रन्थकारने प्रन्यमें अपना यशपरिचय : इस प्रकार दिया है,--शालिवाहनफे.पुत्र वीरसिंह, धोर. पारभुज ( स. पु० ) राजमद ! ( कथागारमा ३६३३ ) सिहफे पुत्र वीरभानु, घोरमानुके पुत्र रामचन्द्र और : वोरभूपति ( स० पु०) विजयनगरके एक राजा । इन्होंने इन्ही रामचन्द्रफे पुत्र कुमार वीरभद्रदेव थे । चन्द्रालोक- १४१८से १४३४ ई० तक राज्य किया था। ये युषवाके टीकाके प्रणेता प्रद्योतन भट्ट इनके माधित और सभा-पुत थे। प्रयोगरत्नमालाके प्रणेता चौण्डपगाचार्य इनके पण्डित थे। आश्रित थे। . . '. 'एकविंश माग सम्पूर्ण ... . .....