पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/८९

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वातच्याधि-वातहत ८५ । पौछ लेनेकी तरहका मान ( Hot Bath) कराया जा । पातशी (सं० लो०) यातस्य शीर्षमिव । यस्ति, पेट् । __सकता है। निरन्तर किसी विषयको चिन्ता या रातका वातशूल ( ० क्लो० ) वह शूलरोग जो पातसे होता । शागना मच्छा नहीं । जहां वायुका परिवर्तन नहा होता शून शम्द देखो। ऐसे गर्म प्रदेश में रहनेसे विशेष फल लाभकी माशा रहती| वातशोणित (२० फ्लो०) वातज शोणितं दुष्टरक्त यच । है। विरामके समय कविनेट आफ पोटास या लिपिया- वातरोग। वातरक्त शब्द देखो। के साथ पाइनम् अथवा एकठाक कलचिकाई दिनमें तीन | वातशोणितिन् (सं० त्रि०) यातरक रोगी, जिसे घातरक्त 'घार सेवन करने के लिये दिया जा सकता है। 'अन्यान्य रोग हुमा हो । भोपों में कुनाइनटो यो इनफ्यूजन सिनकोना, लौह | वातश्लेष्मज्यर (सं० पु.) एक प्रकारका ज्वर। पात घटित मौषध; नार्सेनिक, गोयकम, पोटाशी गाइगोडिट और कफवर्धक आहार तथा बिहार द्वारा घायु और "याँ नोमि येझायेर यावं एमोनिया, फस्कटे भाव सोडा कफ द्धित हो कर आमाशयभाती है। पीछे यह यो-पमानियां, नाइट्रेट आय एमाइल निम्बूका रस. गौर । ' दूषित वायु और कफ कोष्ठकी अग्निको थाहर ला कर विविध धौतय जेल व्यवहार्य है। . . . ज्यर उत्पादन करती है। यातश्लेष्म ज्यर होनेके पहले पीड़ित गांठों पर पाडाइन लीनोमेएट मलना यातज्वर और कफज्यरके सभी पूर्व लक्षण दिखाई पड़ते मोर पुराने दर्द में पट्टी बांधना उचित है । क्षत होने हैं। इस ज्यरमें शरीर भीगा कपड़ा पहनने के समान पर कार्योट भाव पोटास या लिथिया लोसनम कपड़े - मालूम, पूर्वभेद अर्थात् प्रग्धिवेदमा, निंद्रा, शरीरको का एक टुकड़ा भीगा कर उस पर धरनेसे फायदा : गुरता, शिरापोड़ा, प्रतिश्याय, खांसी, "अधिक पसीना, बनता है। पोडाफे सम्घिस्थलको छोड कर किसी सन्ताप तथा घरका मध्यम घेग होता है .... अभ्यन्तर यन्त्र में जाने पर सन्धिस्थलमै उत्तेजक लिंनी विशेष विवरण पर शन्दमें देखा। मेएट मलना उचित है। मस्तिक मान्ने होने पर पातसन (सं० पु०) घातस्य सखा रच समासान्त । "र, मसक, कम्फर, इत्यादि व्यवहार किये जाते हैं। वायुसखा, अग्नि, हुताशन । ( भागात ६२१) ।

कभी कमो गांठमें ब्रॉप या पट्टी बांधने पर उपकार| वातसङ्ग (सं०,०) पातरोग!... . .

होता है। ....... यातसह (सं० लि. ) पावं वातजनितरोगं सहते मह मच सामाय पीतगमें मनसापजे अग्न्युत्तापमें संक कर अत्यन्त वायुयुक्त, वायुरोगप्रस्त,.२ पायुधेग सहन २ उसका रस प्रदाहयुक गांठ पर मलनेसे पकार होता है।। करनेवाला । · कभी कभी येरको लकड़ी या कन्द लकड़ी की माग जला, वातसार (सं० पु. ) विषयक्ष, येलका पेड़। ( येद्यकनि०.) कर उस स्थान पर से'कनेसे फायदा होता है। माकका | वातसारधि (सं० पु. ) यातः सारथिः सहापो यस्य । पता यो कदमका पता सेक कर सूजी हुई गांठ पर अग्नि । छोधनसे गांठ की सूजन कम होती है। ऐसे स्थल में कोई | घातस्कन्ध (सं० पु०) वातस्य स्कन्ध इय | आयाशका दोई गोडापालों गांठ पर तारपोनका तैल, कपूर, सरसों. यह भाग जहां वायु चलती रहती है। "का तेल या कोई लिनिमेष्ट मल फर नमक मिले हुए यातस्तम्मनिका (सं० स्त्री०) चिश, इमली। कंचुके हरे पत्तेकोटुाड़ा टुकड़ा कर बांधने की सलाह पातखन (सं. लि.) यात पय समः शम्दो यस्प ! नि । देते हैं। इससे गांठका सञ्चिन मिशन र परिष्कृत ' (भूक 18६) दो जाता है और पीडा कुछ कम हो जाती है । गन्ध यातहत (सं० लि०) पातन हतः। १ यायु द्वारा हत । मालियाका पत्र जल पा कर उसको मापसे सेंकने- २ यातुल, यायुके कोपसे जिसको युदि ठिकाने महो। से इस रोग विशेष फल मिलता है। पातहतवर्मन् ( से० लो० ) नेत्रयर्मगत रोगमे। इसके यातशख (शं० पु. ) भनि। . . .... . . - लक्षण:--जिस नेत्ररोगमे येदनाके साथ पा घेदना न हो क Vol xx1, 22,