पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/९४

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पातहन्यातापि पर्मसग्धिविश्लेपप्रयुक्त निमेप उम्मेघरहित होता है, प्रकारका होता है। पर्याप-पातपैरो, नवोपरफल, AATH • तथा पशतसा कारण नेत्र पंद नहीं होता उसे घातहत- गुण---उष्ण, सुस्निग्ध, पातन, शुक्रकारक, गुय । मजा. . गर्म करते हैं। नेत्ररोग जम्द देश।। । का गुण-मधुर, गृष्य, पित और. वायुनाशक, सिंध, पातहन (सं० वि०) घातं हन्तीति हन किए। यातघ्न, उष्ण, कफकारक सथा एफपित्त विकारके लिए. विजय . यातनाशक औषध। उपकारक है। (भाषप्र०) मशिम देखो। पातहर (म० पु० ) हरतीति हमच्, घातस्य हरः पात- | माताधिष (स० पु०) वातस्य अधिपः । पायुका आधि. नाशक पातहरयर्ग (संपु०) यातनाशक दृष्यसमूह। जैसे- | घाताध्यन् ( स० पु.), याताय यातगमनाय : महानिम्ब, कपास, दो प्रकारके परएड, दो प्रकारके वच, यातायन, झरोबा। . .. दो प्रकारको निगु एडी तथा होगा। यातानुलोमन ( स० वि०) यातस्य भनुलोमनः । पायुका यातहुशा (स. रमो० ) १ पात्या। २ पिच्छिलस्फोटिका । अनुलोम करना, पायु जिससे अनुलेग हो उमका पार ३योगित, औरत। करना, धातुओंके ठीक रास्ते से जानेका अनुलोमन करते पानदोम (म पु० ) होमकालमें सञ्चालित घायु। । (रामपथना० ४२१) पातानुलामिन् ( स० नि ) पातानुलाम. गस्त्य इनि , घातामय (सलो. ) यात-गाण्या यय । यास्तुभेद। घायुका- अनुलोमयुक्त, जिनको यायुको मनुलाम गति पूर्व मार दक्षिणको घोर घर रहनेसे उसको याताप पास्तु होती है। ( सुभुत पु०) कहते हैं। यह पाताप यास्तु Zरफि लिये शुभप्रद | पातापह ( स० नि०) यातं भगदन्ति दन-क। यातन, गहीं है, क्योंकि इससे कलह और उद्वेग होता है। २) पारानायकारक ! . ... .. पात माण्यास युक्त, पातमामयिशिष्ठ। यातापि (स.पु०.) एक असुरका गाम I .. यह मसुर पासाट (सपु०) पास इय आरति गच्छतीति गद-मन्त्र ।। हादको धमनी नामको गत्मोसे उतान दुमा था! सगस्टय १ सूर्याभ्य, सूर्यका घोड़ा। २ याप्तमृग, हिरगा। । पि इसेगा गधे। (माया) म भरने दूसरे पाताएड ( पु.) यातपिती भएडी यस्मात् । मुष्का का पिचित्तिके मौरस और सिंहिका गर्मसं जगा रोगविशेष, संयोगका एक रोग लिममें एक मंच प्रण किया था। (मत्स्प०.९ म०, मरिम कारवीय श). चलता रहता है। महाभारतमें लिया है, कि, मातापि मोर यातापियो माई पातातपिक (सो०) प्रकारका रसापनका मेद।।। दोनों मिल कर पियों को बढ़त माया करते थे। घातातीसा (स.) पामजन्या गतीसारा । थायुजन्य यातापिता भेड़ बन जाता था और उसका भाई मातापि मतीसार रोग! मतीमार रोग देखो। उसे मार कर माहोको माग कराया करता था। जब पातामह ( ) थारा ममा यम्प, कप समा. | ग्राण लोग मा घुाते. संब याद यातापिता नाम लेकर सान्ता। यातप्रकृति । पुकारता था और यह उसका पेट फाटकर निकल माता पातारमा ( स.पु.) चातस्य मात्मजः। घायुपुत, था। इस प्रकार उग योनी तसे प्रामीको मार 'नूमान, भीमसेन। डाला। एक दिन भगय पि उगवानोंक पर शाये। पातारमान (स'०सि०) पातरूप प्राप्त । . भातापिने याताविक मार कर भगस्यानिलाया मोर (शुभ: REE महीपर)। फिर नाम लेकर पुकारने लगा। मगरपीने 'याता (स.पु.) पाताप यानिवृत्त अपने पति पद ले कर कहा, किपद त मेरे पेटो कमीका पगा । । धम् । पनाविशेष, बादामएस (Prunus amygdnlas)/ मय उमको भाशा छोड़ दो। इसी प्रकार सम्स्यो पद बादाम कद मिट और बादाम भेइसे तीन! यातापिका संहार किया। (भE TARO 650) :