पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/९५

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घातापिद्विद- पाताच. . . गरत्यको प्रणाममन्त्रः- वृक्ष, रेड । २ शतमूली। ३ पुत्रदातो नामको लता। .: वातापिहिता येन पानापिञ्च निराकृतः। शेफालिका, निर्गुण्डी । ५ यवागी, अजवायन । ६ मागी, - : समुद्री शेोषित! येन समेऽगस्त्यः प्रसीदतु ॥" , . मारंगो। ७ स्नुहो, थूर विहङ्ग, पायचिह। भरण, २ स्थूल शरीर | "धातापे पोय हद्भय' (मृफ ॥१८५)| जिमीकन्द, बोल । १० भल्लातक, मिलावा । ११ तुका. यातापिदिट (सं० पु.) यातापि देशोति द्विप पिश्य। जन्तुका लता। १२ शतावरी, मतायर । १३ श्येत निर्गुण्डो, अगस्त्य मुनि । सफेद सिंहास। १४ पोन लोध, पोलो लोध । १५ शुक्ल यातापिन् (सं० पु० ) घातापि नामक मंसुर । रसोग, सफेद लहसुन । १६ तिलक वृक्ष । १७ पृथुनिग्य- पातापिपुर-प्राचीन चालुपयराम पुलिफेशीको राजधानी योणक, श्वेत एरण्ड, सफेद रें। १८ नील पृक्ष, नील. साज कल इसे बादामी कहते हैं। बादामी शब्द देखो।' . | का पौधा, । । घातापिसूमन (सं० पु० ). वातादि सूदते इति सूदल्यु। यातारि (सं० पु०) मुकरदि मौर प्रणाधिकारोगमें मौषध गिस्त्य : . . . . विशेष । प्रस्तुतप्रणालो-पारामाग, गन्धक २ माग, घातापिहन (सं० पु. ) पातापि हन्ति हम पिच। त्रिफला ३ भाग, चितामूल ४ भाग, गुग्गुल ५भाग, इन्हें 'मेगस्त्य . . . . . . । .. । रंडीके तेल के साथ घोंट कर गोली बनाये। अनुपान-- च ताप (सं०नि० १. वायुपूर्ण । (पु.) उदक, सौंठ और रेहके मूलका काढ़ा या अदरकका रस और अल। सोम( 18३१५ साया) तिलतैल है। इस भोपघका मेघन करा कर रोगोकी,पीठ पातामिष्यन्द ( स.पु.) वायुमित नेत्ररोग, पायुफे | पर रेंडीका तेल लगा स्वेद प्रदान करे । पोछे विरेचन कारण माखका माना।' इस रोगमें आंखों में सूई धुममे होनेसे स्निग्ध मौर उष्ण द्रष्य भोजन पराये। इससे पृद्धि को-सी बेदमा होती और उनसे शीतल शस्त्रांच नधा रोग प्रशमित होता है। रोगोफे शिरमें शूलं और रोमांश्च होता है। ... । (भैषज्यरत्ना० मुलद्धि और प्रणापि.)

(भावप्र गाधि )मियरोग देखो। घातारिगुगुलु (सं० पु० ) १ पाराणाघि रोगाधिकार,

पाताम्र (स'लो. ) वायसे सम्ताहित मेधशाला : . औपविशेष । २ भामघात रोगाधिकारमें मोषधपिशेष। पाताम (पु. ) वादाम . .., . . :) प्रस्तुतप्रणालो-डोका तेल, गग्धक, गुग्गुल और पातामोदा (स० स्त्री०) पातेन प्रसूत मामोदो यस्या त्रिफला-इन्हें एक साथ पीस उचित मालामें एक मास तक लगातार प्रातःकाल में उष्णलके साथ सेवन पाताय.(सलो . ).पन, पेड़का पत्ता। .. ..... करनेसे मामपात, फटिशून भौर पङ्गता मादि नाना पातापन (.सं. लो०) यातस्य अयम गमनागमनमानी।। प्रकारके रोग शान्त होते है। .१ गवाह, भरोजा। (पुं०)पासस्पेव अपनं गतिर्यस्य । (मपज्यरत्ना० भामवातरेगाधिः) घोटा, पोहा (त्रिका०) ३ अनिल के गोबसे उत्पन्न । | याताप्य (सं०नि०) यात द्वारा पाने योग्य । अक १०१६८ सूक्तके मन्नद्रष्टा ऋषि थे। ४ उसके गोत्रो । गि भाष्य सायण १२॥ ) स्पन्न । पेशक १०११८६ एकफे भन्नाटा पिथे।५) यातारितण्डुला { सं० पी०) विडला (गानि०) (रामायण के अनुसार एक नगरका नाम। धांतासी (सं० श्री.) वानस्य मालो पहा पात्या, यायु । यातापनोर (मं० पु०) घातायन यवर्तित घेदको पक, याता (सं० पु० ) यातमश्नति प्रश यम्। गयनाश, शामा।... . . . . . . . . वायुका पोना। . जासायु (सं०पू०) पातमपते इति अय पाहुन्टकार ठण। यातागिन् (सं० वि०.) निमश्नाति मग-जिनि । हरिण, दिन। पवनाशिन, यापी पर रहनेवाला। . . . घातारि (सं.पु.) यानस्य.यातरोगस्य अतिपण्ड । यांतारण (सं० पु. ) पात व शीनगो गया । फुलोन