पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१०३

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ऑपरी- साना डविरो ( सी.) पुत्री, कन्या, बेटी। शताब्दीको परासी विश्वके समय प्रान्सर भाधारण डॉवर (हि.पु०) बाधका बच्चा। मनुबो भी डाक-प्रथा प्रचलित हो गई थी। डॉवाडोल (हि. वि०) चपल, विचलित । १५१५ में पहियाके राजावे अनुरोधसे प्रांज डाँगपाहिद (ह. पु०) मद्रतासके ग्यारह भदौमी एक। (Franz Von Thun) पोर टेसिस (Taxis) ने सार्व इसमें पाघात के बाद १ शून्य होता है। जनिक डाकविभाग खापन किया। पहले उन्होंने ब्रसे. डॉस ( पु.) १ बड़ा मच्छड़, दंगार मवैथियोंको लस पोर भियानाम मवाद पचान लिए बहुतसे दुःख देनेवाली एक मक्खो। डाकघर निर्माण किये। ग्रामगः नौक. यासे बहुत डॉमर (हि.पु.) इमलीका बोज, पिया। दूरखित नेपल्स पोर भिनिय तक डाकविभाग स्थापित डाक (Eि स्त्री०) १ वह स्थान जहाँ घोड़े गाड़ी पादि हुषा था। बदले जाते है। २ सरकारको पोरसे चिड़ियों के पाने वो पताब्दीमें, शेरशाहक यनवे धोड़ेका डाक तथा जानकी व्यवस्था ! १ चिोपवी। ४ वमन, उसटी, के दिनोखर पकाबरके यनसे मुगल साम्बाज्यके सभी खानों- डाक ( पु.) १ समुद्र किनारका वह स्थान जहाँ में थोड़े ही समय में संवाद से जाने के लिए डाक विभाग जहाज पा कर ठहरता है। २ नीलामकी बोली। खापित एमा। काफोयाँ नामक एक मुसलमानने रति- डाक-हिन्दीके एक प्रसिद्ध कवि। इनका दूमरा नाम हासमें लिखा है, बादशाह अकबरने जो सब नवे धाध है। मषिसम्बन्धीय इन्होंने बहुतमी कवितायें खड़ी | नियम चलाये उनमेंसे 'डाकमेवड़ा' हो एक ओखयोग्य बोलीमें लिखी है। उदाहरणार्थ एक नीचे दी जाती है है।खान खान पर समका पहा था।" पशुलफजल- "जों शुकरकी बादली रहै शनीचर छाय। को पाइन-ल-पकबरोमें लिखा है, मवड़ा मवाटके कहे डाक सुन कनी बिन बरसै कधी न जाय ॥ घाघ देखो।। अधिवासी थे। वे चलनेमे बहे तेज थे। बहुत दूरसे डाकखाना (हिं. पु.) वा स्थान जहां मनुथ भित्र भित्र थोड़ेही समय बाद ला देते थे। उत्तम राहचरों में स्थानों पर भेजने के लिये चिटो पत्री आदि छोड़ते है।। मो उनको गिनती थी। पौर जहाँसे पाई हुई चिठिया लोगीको बाँटी जाती है। गोजके राजा रम पास समय टनिटेनमें डाक विभागको प्रथा अत्यन्त माधुनिक नहीं है। । डायविभाग स्थापित एषा। बुरिमान पिटको मन्वित्वक पहले राजा अपने राजकीय कार्योकी सुविधाके लिये डाक | समयमें राकको पत्यावश्यकता पंगरेजों ने सम्यक रूपले प्यादा रखते थे। वे सवादनापक पत्रादि ने कर बहुत | उपलबिकी। इसो समयदे डाककी बति पारम्भ हुई। तेजोसे एक स्थानसे दूसरेको जाते और फिर वहाँसे दूसरा १८वीं शताब्दीको परिवाके बुतरायने डाक पादमी उन सब पत्रोंको लेकर दूसरो जगह जाता था। प्रचलित हुचा। सो सरहथोड़े ही समय में बहुत दूर दूर देयो में संवाद डाकसे वाणिज्य व्यवसायियों के पनेक उपकार होने पहुंचाये जाते थे। यहां तक कि भारतवर्ष में और पर भी पहले बणिक गर रसको प्रयोजनीयता उपलधि पमिरिकाके मेक्सिकोवासी प्राचीन जातियों में भी इसी कर न सके। तरहसे संबादके पादान-प्रदानका नियम प्रचलित था। वौं सताब्दीके मध्यभागसे, डाक विभागनी बहुत रोमसाबाज्यको समृषिके समय वहां भी पनेक सरहके कुछ सवति की गई। पहले डाक विभागसे राजा और डाकविभाग थे जिन्हें ( Cursus publicus ) करत | राजपुरुषोंकी तो सुविधा थी। पब खां राजा क्या प्रजा सभी एकसा उपकार पाते। डाबके होनेसे वाणि- १वीं शताब्दीकी फ्रान्समें डाक विभाग स्थापित ज्यादिम के सा नाम पावर वर्णनातीत है। पा। १७वीं शताब्दीको फ्रान्सके राजा १४ सुवि. १८४० में रासह हिलने एक घटॉक तौलको समयमें सस विभागमे बहुत उबति हुई। १८वी • Khali Khan, I. p. 248, A nni