पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/११

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उकोरा-टंक टकोरा (हि. पु० ) नगाड़े का पाघात, डस को चोट। टखना ( हिं० पु. ) पादग्रन्थ पैरका गहा। टकोरी (हि. स्त्री० ) वह छोटा तराजू जिममे मोमा टगण ( स० पु० मावाहसमें तेरह भेदात्मक गणविशेष, पादि तौला जाता है, छोटा कोटा। मात्रिक गणोंमसे एक । इसके पाकार और पधिष्ठात्री टक्क ( स० पु० ) टक्कक पृषोदरादित्वात् उपधालोपश्च। देवताके विषय में इन्दोग्र थमें इस प्रकार लिया है, देश-विशेष, एक देशका नाम । यथा-(s) १ शिव, ( nss) २ समो, (isis) ३ दिन. टकटेश (स'• पु०) टकका टकक इति नान्ना ख्यान: देशः, पति, (sis) ४ सुरपति. (IS) ५ शेष, (ish कर्मधा०। पञ्जयस्य चन्द्रभागा घर विपाशा नदी परि, (ISI) सरोज, (ust ) ८ धाता. (II) मध्यवर्ती प्राचीन जनपद-विशेष। गजरङ्गिग्गोमें टक्क- ८ कन्नि, ( 50 ) १० चन्द्र (IN) ११ ध्र.व, (sum) देशको गुर्जर ( गुजरात ) राज्य के अन्तर्गत लिया है। १२ धर्म , ( ॥ १३ शालिकर। टकजाति किसो समयमे अत्यन्त प्रतापशालिनी और मारे ! टगर (मंपु.) ट: टङ्गणः क्षारविशेषः गर इव । १ टक्षण. पञ्जाबमें राज्य करती थी। चीन-परिव्राजक यएनया हुने । क्षार, मोहागा। २ विलास, कोड़ा। ३ तगरका पेड़। टक राज्यका तथा उमके अधिपति मिहिरकलका उल्लंबन (त्रि.) ४ केकराक्ष, चा, भेगा। किया है। उनके लेखमे यह राज्य विपाशाके पशिमोटगरगोड़ा (•ि पु० ) लड़कों का एक खेल । इममें कुछ किनारे पड़ता है। यहाँको जमीन उर्वग थी। मोना कौड़ियां चित्त करके जमा देने है फिर एक कोडीमे उन्हें मारते है। चांदी, तांबा और नोहा यथेष्ट मिन्नता था। जलवायु : • टगग (हि. वि. ) में गा, गेचा तामा । उगा था, माथ माथ तुफानका डर मटा बना रहता था। लोग बई कामकाजी तथा माहमी थे, इन लोगोका ।

टधरना (हि. क्रि० ) १ चित्त दशा प्रादिका मत्त्व

परनावा लाल रेशमी वस्त्र था। टक्कको राजधानी गर्मी के कारण वीना, पिघलना । 'हाना, हृदयका पिधम्न जाना। घो, परवी पाटिका शाकलसे १४।१५ लो अर्थात् ३ मोल उत्तर पश्चिममै '. टकराना (हिं० कि० ) द्रव करना, पिघलाना । अवस्थित थी। युएनघुयाङ्गके लेखमे पता चलता है, कि : ट ( म० पु.) टक-पञ् । १ कोप, क्रोध, गुम्मा । उम ममय टक्कमें बौद्धधर्म का उतना प्रभाव नहीं था। । २ कोष, ग्वजाना। ३ खड़, तलवार । ४ ग्रावदारण. पत्थर केवल १० सङ्घाराम थे। यहांके लोग अत्यन्त प्रातियेय । काटनेका पोजार, टॉकी। (को०) ५ जना, जोव । थे। यहां तक कि वे अतिथिशाम्नामें आगन्तुकी और परिमाणविशेष, एक तोल जो चार माशको होतो है, दोनहीन यात्रियों की मेवा शुश्रुषा किया करते थे। । कोई कोई इसे २४ रत्तीको मानते हैं। टक्कदेशीय ( स० पु० ) टक्कदेशे भव: इति छ । (प.को.) ७ नोलकपित्य, नीला कंथ, खटाई । १वास्तुकशाक, बथा नामका माग। (त्रि.)२टक- ८ नित्र, कुदाल। ८दर्प, अभिमान । १. परश देशोत्पत्र, टक्कदेशका। साड़ो. फरसा! टक्कर ( हि स्त्रो० ) १ दो वस्तुओंके जोरभे एक दर में . दातां चैव टंकोप: स्खनित्रैश्च पुरी दुतम् ॥" : हरिवंश ९२ मिलना, ठोकर। २ नड़ाई, भिड़त, मुकाबिला। ३. अ०) ११ राजाम, एक बड़ा पाम । किमो कड़ी वस्तु पर सिर पटकनेका प्राधान। ४ मति, - "शीतं कषायं मधुरं टंकमारुतकृत् गुरुः ॥" ( पृथुतसूत्र ) हानि, नुकमान। १२ पर्वतका प्रान्तभाग । १३ पर्वतका उन्नत टकारिका-चन्देलराज भोजवर्माके 'अजयगढ़के शिना.. प्रदेश, पहाड़को चोटो। १४ विदीर्ण 'तर भाग, लेख में लिखा हुआ एक प्राचीन नगर। उस लिपिके पत्थरका कटा हुश्रा टुकड़ा। १५ गगविशेष. म पूर्ण मतसे यह नगर कायस्थ-निबामभूत छत्तीस नगरोंमें मबमे . जातिका एक राग। यह श्री, भैरव पोर कान्हड़ाके प्रधान तथा वास्तव्य कायस्थोंके पादिपुरुष वास्तुका वास योग बना है। इममें कोमल ऋषभ लगता है और खान था। . इसका सरगम इस प्रकार है-