पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

.. मईमाना . . , हंगा,गाना (हिं. त्रि.) चमड़ेसे मढ़े हुये बाजको अधिकार पोर कमीती प्रभाव वामूल करके लिए लकड़ोसे बजाना। कल्पना करने लगे। इस समय इस देश की डुगडुगी (हि.सी०) एक प्रकारका बाणा. डोंगी, जगह बटिय पोर पोलदाणीको भो. कोठी बन गई थी उगी। तथा वाणिज्य व्यापारमें भी य लोग खूब पढ़े बड़े थे। डग्गी (हि. स्त्री० ) डुगडुगी देखो। इने विचारा कि, बाविध विषयमनको साथ दुगरी (म. स्त्री० ) लौकी, कद्द । प्रतियोगिता करके वे कभी भी अपने पहखको कार्य- डरका (हि.पु.) एक रोग जो प्रायः धानके पौधेमें ही में परिणत न कर सकेंगे। इसलिए ये पायान्तर इषा करता है। अनुसन्धान करने लगे। उन्होंने अपने पभ्यस्त बुद्धि- डुगड, (#. पु. ) हिमुख सर्प, दो मुंहवाला सॉप। बल पौर में पुखगुणके सहारे धीची देशीय लोगोको ड,गहुभ (स• पु०) डण्ड: सन् भातिला- । सविशेष, | रोति नोति जान लो पोर देशीय राज्यों की राजनीतिक पानी में रहनेवाला माँप । इसमें बहुत कम विष होता है, अन्तम्तम्समें प्रवेश कर मनकामना सिद्ध करने लिए ' डडहा साप, थोड़ा साँप । इसका संस्कृत पर्याय-राजिल, उपाय निकाल लिया। दुण्ड भ, मागभृत् पौर डुण्ड है। इस समय मुगलसाम्राज्यका स पक्यभावी हो डुगडुल (सं० पु०) हुण्ड रिति शब्द लाति ला-क । बुद्र गया था। इनके अधीनस्थ मुविदारगण अपने अपने अधिक्षत पेचक, छोटा उन्न । पर्याय-क्षुद्रोल क, शाकुनय, पिङ्गल, प्रदेगोका खाधीन भावसे शासन करते थे और नवाबग वृक्षायो, वृहद्रावो, विशालाच और भयर। भी सूर्यदारों के दृष्टान्सका अनुकरण करते थे। वास्तवमें डु,न्टुक (हि. पु.) १ हरिभेद, एक प्रकारका उस समय मुगल साम्राज्य में सर्वत्र विशाखा फैल गई हरिण। २ पविभेद, पानी में रहनेवाला एक पक्षो। थो। दुर्बल शायनकर्ता विसी वसवान सूर्वदारक पात्रय- हुने- इनका असली नाम था फ्रान्सिस जोसेफड। में पोर महायतासे अपनी साधीनता प्रचारित करते भारतवर्षीय फरासीसी अधिकारमें प्रसिद्ध शासनकर्ता और थे। फरामोसो गवर्नर डुझे भी इस समय अपनी चिर. सेनापति। ये फरासी इष्टइण्डियन कम्पनी के अन्यतम पोषित पाशा फलवती करनेके लिए सबेष्ट हुए। डिरेकरके पुत्र थे। सौभाग्यवश उनकी सामिपीन इस विषय में उनकी थोडो ही उनमें ने भारतीय फरामोमो अधि | यथेष्ट सहायता पहुंचाई। सोको सहायताये.औने कारक प्रधान शहर पूदिवरोको मन्त्रिसभाके प्रधान अपनी मनोरथ पूर्ण करनेका सहज पोर उत्तम प्रयोग सदस्यका पद प्राप्त कर लिया। दश वर्ष इस पद पर कार्य निकाला । उनको खोने भारतवर्ष में हो जन्म लिया था एवं करने के उपरान्त १७३० ईमें ये चन्दननगरको कोठीक भारतमें हो प्रतिपालित और पिषित हुई थी। बहुतसी पधाक्ष नियुक्त हुए। इस कामको प्रत्यन्त दक्षताके साथ भारतीय भाषा भो वे जामतो थी, इसलिए उमोंने करनेसे शीघ्र ही ये कम्पमोके अध्यचों के विश्वासभाजन ! अपने खामी पौर पधिवासिवर्गका मनोभाव हो गये। १७४२ में ये शासनकर्ता नियुक्त हो कर प्रकाशन और परामर्थका पच सुगम कर दिया था। इस पूदिरी भेजे गये। अब तक फरासीसो इष्टः | तरहसे अपनी सहधर्मि पोको सहायतासे ने करा- इण्डिया कम्पनीको वाणिज्यधिके लिए यथासाधा चेष्टा | मोमी राज्य और चमता विबरने के उपायोंको गुण करते पा रहे थे और इसमें इनोंने काफी सफलता भो पाई भावसे परिपुष्ट करने लगे। थी। किन्तु रस पदको पा कर उनका मन दूसरी तरफ ११४४१.में यूरोप में फरासीसी और जाम सम- चला गया। ये स्वभावतः अतिशय उवाकांक्षी और रामल प्रज्वलित एषा, साथीरम देशमें भी दोनों पारी, किन्तु असाधारण प्रतिभाशाली थे। दि: कम्पनियों में मुम्ही मर खाबोनने परामोसो रणः । परीको बासनकर्ता हो कर वे प्राचभूमिमें फरामोसो पोती प्रभावी बार भारती पाये। वे भी फरासोनों Vol. Ix. 28