पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१२४

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१२. किये गये। बाद कार एक राजाओं को सहायताले शत्र: करना पड़ा था । ये बड़ विज, प्रतापी और प्रजा- की हार तो हुई सही पर अगले तीन साल तक राजामें वत्सल राजा थे । डूगरपुर राज्यका नो योचनीय एक तरह अराजकता फैलो रहो । पन्होंने प्रतापगढ़के अवस्था में चला पा रहा था पापहोने संस्कार किया। महाराबन मावसमिझके पौत्र दलपतसिंहको गोद लिया धर्म को भोर भी प्रापको यहा कम न थो। सङ्गीतक धापोर जोतजी राज्यका भार उन्हों पर सुपुर्द भी कर भी पाप पच्छे प्रेमी थे। प्रजाको भलाई के लिये पाप दिया था। उचित उत्तराधिकारी न होने के कारण फिर पच्छे पच्छे काम कर गये हैं। इस थोड़ोसी अवस्थामें राज्यम विप्लव उपस्थित हुआ। दिन दहाड़े डाके पड़ते आपका मेल जोल भारत के प्रायः मभो मुकुटधारो रईसों. थ और ठाकुर लोग पाततायियों को उत्तेजना देते थे। के साथ ख ब बढ़ गया था। पन्तम १८०२ ई में जमवन्तमिहको मासिक पेन्शन १८१२ मे सम्राटके वार्षिक जन्मदिनके उत्सव पर १२०० रु. देकर वृन्दावन भेज दिया गया । इधर भाप के, मी, पाई,ई' को उपाधिसे विभूषित हुए थे। दलपतमिहने भी विवश हो सावली ठाकुर साहबके १८१४०३ विश्वव्यापी युद्ध में आपने गवर्मेण्ट के प्रति पुत्र उदयसिंहजोको अपनी गोद में ले डेंगरपुरका अधि- सच्चो भति दिखलाई थो। सारे राज्यमें सुख-शान्ति कारो खोकार कर लिया। सभोसे मभो गड़बड़ी मर स्थापित कर १८१८ ई०के १५ नवम्बरको पाप इस लोक- मिट गई। से चल बसे। बाद इनके बड़े लड़के लक्षणसिहजो १८५७२ में महारावल श्रीष्ट यसिंहजोने डगरपर बहादुर राजति हासन पर आरूढ़ हुए। ये सभी नाबा. राजसिंहासनको सशोभित किया। राजके सुधारको लिग है और मेयो कालेज अजमेर में शिक्षा ग्रहण कर और इन्होंने घटट परिश्रम किया। इस समय भोलोंने रहे हैं। ये भो योग्य पिताके योग्य पुत्र जैसे माल म फिर एक बार उत्पात मचाना शुरू कर दिया। अन्समें होते है। उनको पूरो हार हुई, कितनोंके तो सिर भी धड़से अलग राज्यभरमें कुल ७७३ ग्राम लगते हैं। लोकसंख्या कर दिये गये। १८७० ई में एक भयङ्कर अकाल पड़ा। प्रायः १८८२७२ है। अधिवामियों में अधिकतर भोल महारावल माहवन दुभि सके निवारण करनेका अच्छा हैं। इसके सिवा यहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, मुसलमान, प्रवन्ध किया। जगह जगह पर Relief work खोले गये, बौहरे पादि भी रहते हैं। मुख्य धर्म जो राज्यमें प्रच- हारों तालाब, बावड़ी पादि खोदो गई। १८७७ ई में लित है, वह वैदिक-हिन्दूधर्म है। इसके सिवा जैन प्रथम दिलो-दरबारके उत्सव पर राजराजेश्वरी महा- और महम्मदो भी है। जैन भट्टारककी गहो भो है। गणी विकोरियाको पोरसे डुगरपुर दरबारको एक यहाँको मुख्य उपज मकई, धान, मूग, उरद, तिल झणा प्रदान हुमा । १८८० में पापने तुलादान किया सरसों, गेह, चना और जो है। पहले अफीमको खेतो जिसमें लगभग १ लाख रुपये खर्च हुए। पहलेसे यहां जितनी ही अधिक होती थी, अब उतनीही कम गई है। शिक्षाका कोई प्रबन्ध नहीं था। इन्होंने हो पहले पहल वनाविभागकी पोर उतना ध्यान भाकर्षित नहीं पाठशालाएं स्थापित की। होता। पतरोलो जमीन होनेके कारण उपयोगो वृक्ष पापके बाद श्रीमान महारावल साहब श्रीसरविजय बहुत कम दिखाई पड़ते हैं। फलदार नोंमें मचा सिंहजी बहादुर के. मो. आई.ई.राज्यके उत्तराधिकारी और पाम खब होते हैं। राज्यभरमें लोहे और साँवकी हुए। पितामहके मरते समय पापको अवस्था केवल खाने सही, पर उम पोर राजका वाम ध्यान रहता ११ वर्षकी थी। नाबालगी तक राज्य प्रबन्ध के लिये है। बोडीगाममें एक नकली हीरका पत्थर पछा होता मेवाड़की देखरेख में चार मेम्बरोंकी कौनिल नियुक्त और बहुत पाया जाता है। it और पाप मेयो कालेज अजमेर पढ़ने के लिये मजे यह राज्य मविप्रधान देश है। सैकड़े पोहे ७६ गये। इनके समय में भी प्रजाको दुर्भिचका सामना खेतीवारी करके अपनी जीविकानिर्वाह करतोई