पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१३

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टंक (तोंक)-टंकण लगी है। लोकमख्या प्रायः २७३२०१ है. जिनमेंमे बरके ममयमें जयपरके मानमिहने पम पर अपना अधि- मकड़े ८२ अर्थात् २२५५३२ हिन्द्र में कडे १५ अर्थात कार जमाया. किन्तु थोड़े समय के बादको यह गयमिक ११०८. मुसलमान और ६६२३ जैन है। यहाँके अधिः शिशोदिय के अधिकारमें आ गया । पोछे यह परगना कोश ममलमान सबो मम्प्रदायक हैं। इम राज्यमें ब्राह्मण, १६.६ मे १७०७ ई. तक हार राजपूत के अधीन रहा । महाजन, चमार, पठान मोना गुजर और प्रोग्य जानिके अब यह जगपुर के मवाई जयमिडके अधिकारभुत एमा मनण रहते हैं राजपूताना परगगे के लोग माधारण नः तव जयपुर, टोल कर और मिन्धिया इसे पानेके लिए हिन्दी, मारवाडी और उर्दू भाषा तथा मध्यभारतके श्रापममें नहाने लगे। अन्तमें यह १८०४ में हटिश लोग मालवी बोलते हैं। यहां के अधिकांग अधिवामी ____गम गट हाथ लगा ओर उहोंने फिर जयपुरके राजा- कषक है। यहाँ के उत्पन्न कास्य में गेल, बाजरा, चना और को ममपण किया। १८०६ ई. में राजाने यह परगना जुम्हगे है। पाम और अफोम भो यहां बहुत उप अमोर वॉको दे दिया। तभोमे यह उन्हों के उत्तराधि. जाई जाती है। कागे अधीन चला आ रहा है। यकी प्रधान उपज इम राज्य के मम्म, ग भागमें मूतो का कपड़ा प्रस्तुत ज्वार, बाजरा, गेह चना तिन ओर काम है। प्राय होता है। यहां जट और शराबका कारग्वाना भी है। प्राय: तोन लाख रुपयेमे अधिको है. इस राज्यमे अनाज, कपाम गफोभ, चमई और मतो ३ राजपूताने के अन्तर्गत उक्त टाङ्ग राज्यको गज. कपडे को रफतनो होती और दूमी दूमर रेशमि नमक, धानी । यह अक्षा० २६१० उ० पोर देशा० ७५ ४८ चोनी, चावल, तमाक ओर लोहे की आमदनो होतो पू० बनाम नटोके दो मोल दक्षिण और जयपुर शहरमे है। इस राज्यमें ४२ मोन तक पक्को मनुक और ४७० मोल तथा देवलो छावनोमे ३६ मोल उत्तर-पूर्व में मील तक कच्ची सडक गई है। टासे जयपुर जानेको अनस्थित है। नगरका प्रायतन बड़ा है तथा चारों भोर मड़क ही मबमे पधान है। प्राचोरभे घिरा है। पवाट है, कि १६४३ ई० में भोन्ना नवाब और उनके मकारी वजीरम तथा एक मभाम नामक किमो ब्राह्मणने इमे स्थापित किया था। इसके विचार कार्य चलाया जाता है। उक्त मभामें केवल दक्षिण अमगर नाका किला और पोसारको मरम्य रहते हैं। टिया गवर्मगट के नियमानमार पो. मो.। यो नोकमन्यः यः ३५ कामो मानकाय चलता है। न मिवा र जिम ५३ मनलमान और ४४गे अधिक हिन्द द्रमरेको मृत्य दगड देनेका अधिकार नहीं है। तथा कुक दूमरो दूसरी जाति है। यहा दश सामान्य यहां ३ अस्पताल, ५ औषधालय और सरकारी कल तथा एक स्कन, एक कागगार और एक डाकघर हैं। चिकित्सालय है। २ राजपूतान के पूर्व टङ्ग गज्यका मवमे वापर- टङ्गक ( म० पु० ) टङ्गाने टक व जाया कन् । रजत- गना । यह अक्षा० २५' ५२ मे २६.२.उ. पोर रेशा० मा, चाटोका शिका रुपया। मे ७६१ पू में अवस्थित है। डमा भूरि टङ्गकति . म पु ) टङ्गम्य पी, तत् । रूपका माण ५७४ वग मौन है। उत्तर पश्रिम के अतिरिक एमके यत, टकानका मालिक । चारों ओर जयपुर गज्य है। यौँको प्रधान नदी बनाम टङ्ककगाला ( म स्त्रो० ) टङ्गकम्य शाला, ६ तत् । मुद्रा और हमको शाखा माशो तथा मोन्टू है। इममें एक टम, टकमान्न घर। शहर और २५० ग्राम लगते हैं। यहांको लोकमच्या टटोक (म0पु० . ट व टोकले टोक। शिव, प्रायः ८५७६८ है। प्रवाट है, कि यर परगना पहले महादेव। टोरी जिलेके अन्तर्गत था ।१२वीं शताब्दी के मध्य सातूजी टङ्गगा ( म० पु० ) टक ल्य, पृषोदरादित्वात् णत्व । १ नामके एक चौहान राजपूतने इसे दखल किया। अक- क्षारविशेष, सुहागा। इसके पर्याय-पाचनक, मालतो- Vol. LX.3 ..