पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१५. के बदले में दिये जानेका धन। सकारी-बम्बई प्रदेशको पत्थर काटनेवालो एक जाति । सकाला ( पु०) १ तगादा, मोगना। २ कोई ऐसा पहमदनगर जिले के जामखेड़ा, कर्जटनगर पादि स्थानों में काम करनेके लिये कहना जिसके लिये वचन मिल चुका इनका बास । सम्भवतः ये तेलिङ्गसे यहाँ पाकर बसे हो। ३ प्रेरणा, उक्तजना। है। ये बलिष्ठ. कर्मठ पौर काले हैं। दूसरों के साथ मगठो तकान (हिं खी०) थाकन देखो। घोर पापममें तेलङ्गो भाषामें बातचीत करते है। ये सकाना (हिं.क्रि.) दिखाना, बतलाना। गाय और सूपर पादिके मांस के सिवा पन्ध मांस खाते तकार (सं० पु०) त स्वरूप कार । तस्वरूप वर्ग, त पक्षर। पोर शराब पोते है। पुरुषोका पहनावा धोतो, चादर, "एव ध्यात्वा तकारन्तु तन्मन्त्रं दशधा अपत्" ( कामधेनु०) कुर्ता, जता पोर मराठो पाती है। स्त्रियां मराठो स्त्रियों- तकारा–बम्बई प्रदेशको एक पत्थर काटनेवालो मुमलमान को भाँति माड़ो पोर चोला पहनता है। पर कांच नहीं जाति । प्रवाद है कि, यह जाति शोलापुरको धन्धफोड़ा लगाती । क्रियाकागड मोर उत्सव पादिमें ये कुछ अच्छे अर्थात् पत्यर-काटनेवालो जातिसे उत्पन्न हुई है। तकार और माफ कपड़े तथा उत्कष्ट गहने पहना करते हैं। लोगोंका कहना है कि, सम्राट् पौरङ्गजेबने उनको मुमल- सकारोगण साधारणत: माफ-सुथरे, परिश्रमी, मिताचारी मान धर्म में दीक्षित किया था। इनको पालति पोर और पातिधेय होते है, उनमें बहुतमे गॅठकटे भी होते पोशाक मसमामानों के समान है। ये परस्पर में हिन्दो तथा हैं। स्त्रियाँ कडे पोर लकड़ी संयह तथा सहखोवा दूसरोंके माथ मराठो बोलते हैं। पुरुषगण मध्यमाकति काम-काज करता है। पुरुषगण पत्थर काट चको बना सुगठित और काले होते हैं। तथा मस्तक मुडाते और कर जीविका-निर्वाह करते हैं। कोई कोई जाषि और लम्बी या छोटी दाड़ी रखते हैं। पहनावमें ये धोतो, मजदूरी भी करते है। ये भैरवोदेवी, पोर खण्डवाकी जाकट गडी व्यवहार करते है। स्त्रियों मराठो प्रतिमूर्ति घरमें रख कर हर एक हिन्द-त्योहार उनकी कामिनियों जैसो पोशाक पहनता है। अभिप्राय यह है पूजा करते हैं। पूजा पोर विवाह पादिक समय उनीं. कि, ये गन्द रहते हैं । खानसे पत्थर उठाना और उसमे मेंसे एक पुरोहितका कार्य करता है। विवाह के समय चक्की, मूर्ति पादि बनाना ही इनको उपजीविका है। कन्याका पिता वा कन्यापक्षीय कोई प्रौढ़ व्यक्ति वर पोर ये मितव्ययी पौर परिश्रमी होते हैं। काम न होने पर कन्याके वस्त्रम गाँठ बाँध देता है। इनमें विधवा विवाह गरीब तकारा लोग जगह जगह चक्की खोदते फिरते हैं। और पुरुषोंका बहुविवाह प्रचलित है। ये धर्मानुष्ठानके इनमें जिनको अवस्था कुछ अच्छी है वे घर बैठे लोगोंको समय वेद वा पुराणादि नहीं पढ़ते। पनकाशम ये फरमाइशके अनुसार पत्थर दिया करते है। इस समय कुनवियाँको तरह सन्तानों को पढ़ाते नहीं पौरन किसो कामकी कमताईसे प्रायः सभी गरीब हो गये हैं और नये व्यवसायमें हो प्रवृत्त करते हैं। बहुतसे कषि, मजदूरी, नौकरी पादि करने लगे हैं। तकावी (प० स्त्रो०) सरकार या जमींदारको पोरसे ये सुवि सम्प्रदायक होते हुए भी शूकरमांस भक्षण गरोष ग्रहयौको दिये जानका धन। यह ऋणखरूप करते हैं तथा सटाई और मरियाई देवताको मानते हैं। दी जाती और नियत समय पर सूद समेत वसल को नियमानुसार सब नमाज भो नहीं पढ़त। मुसलमान- जाती है। धर्माचरणमें सिर्फ सुबत पढ़ कर ही शान्त होते हैं। तकिया ( फा• पु.) १ कपडं का बना हुषा गोल या उनमें समाज-पति कोई नहीं, ये काजीको मानते हैं। चौकोर थैला। इसको कई इत्यादिमे भर कर सोनेके काजी ही एनके विवाह पादिमें रजिष्टरो पौर सामाजिक समय सिरके नीचे रखते हैं, बालिश। २ हजे, रोक विवादको मीमांसा करते । ये सड़कों की पाठशाला या सहारके लिये लगाई जानेको पत्थरको पटिया, महौं भेजते। धीरे धीर इनको संख्या घटती हो जातो मुसका। विधामका खान, पाराम करनेको जगह। पात्रय, सहारापासरा। ५मारके बाहरयावाद Vol. Ix.42