पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१७८

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१७४ तगरपादिक-गा-नौर और मन्दिर गुलादि वाग ने यह बहुत प्राचीन के : जिन्लोमें पाये जाते है। इस जाति विषम भिव भिव जेमा स्पष्ट अनुमान किया जाता है। फिर यह बहुत : बिहानीका भित्र भित्र मत है कि त उनमें जो मङ्गत प्राचीन कालमें भी बाणिज्य का स्थान कह कर विख्यात प्रतीत होता है। इसोका यहाँ वर्णन किया जाता है- नया शिलाके गजभवन के निकट अवस्थित था । शिलाभ: पहले ये लोग गोड़-ब्राह्मण ही थे, पीछेसे मषिकार्य करने वनके नामानमःर मा अनुमान किया जाता है, कि और ब्राह्मणकर्म भूल जानसे लोगों ने उन्हें यज्ञोपवोतका यह शिन्नाहार गजाओं का बना हुआ है। शिलाहारगण सङ्केत दिलाते हुए कहा -"आप लोगोंने नाममात्रको भो नगर नगरको अपना आदिम वामन्थान मानते हैं। यज्ञोपवीत रूप 'सागा' पहन रक्खा है। सबसे लोग इन्हें पुन: यह जुबार नगरके लेनादि, मानमाड़ और शिवनेर । 'तगागोड़' कहने लगे। इन तीन पर्वतों अर्थात् विगिरिका मध्यवर्ती है। सुतरां महामहोपाध्याय पण्डित लक्ष्मण शास्त्री लिखते हैं कि त्रिगिरि शब्दके अपनशमे तगर होना असम्भव नहीं है। "गोड़-ब्राह्मणों का एक भेद 'तगा' भो है। इनका ऐमा इम मतके विपक्ष में यह आपत्ति उठ मकती है, कि नाम इमलिए पड़ा कि ये लोग नाममात्रको तागा पर्थात् जुबार नगर पठान ( प्रतिष्ठान ) नगरमे १०० मील ! जनेऊ पहनते हैं, पर काम किसानोंका करते है और ब्राह्म- पश्रिममें अवस्थित है, किन्तु टन्नेमी और पेरिप्लम-लेखक | गोंके कमासे अनभिज्ञ हैं। ये लोग न तो शास्त्राही पढ़ते ऊपरमें कहते हैं, कि तगर नगर प्रतिष्ठान ( पेठान ) मे हैं और न पगिडताई ही करते हैं। अन्य जातियां इन्हें १० दिनक गस्ते पर पूर्व को और अवस्थित है। फिर भो! अन्य ब्राह्मणों की तरह नमस्कार नहीं करतो, वरन् राज मम्प्रति निजामको राजधानो हैदराबाद नगरमें १७वों । पूत और बनियोंको तरह 'गम राम' कहतो है।" मि. शताब्दीका एक शिलालेख मिला है। उम शिलालेखमें आरबन आई० मी० एम० अपनी रिपोर्टमें (पृष्ठ २२०) मगर मगरवामोंके एक ब्राह्मण को भूमिटान करनेको लिखते हैं, कि “मर्व साधारण अमसमुदायको साति कथा लिखी है। इसमे फिर वत मान हैदरावाद है कि तगा और भूमिहार ये दोनो या तो ब्रह्मवशोय है प्राचीन तगर नगरके जैमा अनुमान किया जाता है। अथवा ब्राह्मण या क्षत्रिय रन दो वीके बीचमेसे कोई टलेमीका भूगोल और परिणामका निर्दिष्ट अवस्थान भो एक होंगे।" हैदराबाद के निकट पड़ता है *। इस जातिको आभ्यन्तरिक अवस्था पर सत्य देनेसे नगरपादिक (म० क्लो) तगरस्य पादो मूल्मस्तान मालम होता है कि इनमें क्षत्रिय समुदाय भी सम्मिलित इनि ठन्। सगर। है, जैसे-चौहान, बरगला, चण्डल, वैम प्रादि । इमो सगरपादो (म' स्त्रो० ) तगरः गन्धद्रव्यदः पादे मुले. प्रकार इनमें कुछ ब्राह्मण वंश भो सम्मिलित है, यथा- ऽस्या: जातित्वात् डोष । तगरहन्न । मनाव्य, दीक्षित, गौड़, वशिष्ठ श्रादि । इसलिए तगामात्र मगला ( हि पु० ) १ नकला। २ दो हाथ लम्बो सर- को ब्राह्मण मानना भूल है, किन्तु ब्राह्मणोंको ब्राह्मण कडे का एक छड़। जुल हे इमसे माथा मिनाते हैं। और क्षत्रियोको क्षत्रिय मानना उचित है। तगमा (हि.पु. ) एक प्रकार को लकड़ो। पहाड़ो लोग मि. सो० एस० इग्ल्यु. सी• तथा राजा लक्ष्मणसिंह- इममे जनको हातमिमे पहले माफ करनेके लिये पीटते ने लिखा है, कि, "एक राजाके यहाँ यह नियम था कि जो कोई बाण पत्री सहित उनके राज्यमें पाते थे वे सगाई (हिं स्त्री० ) १ मिलारका काम। २ सिलाई का बहुत दानदक्षिणासे सम्मानित किये जाते थे। लोभवश एक भाव । ३ मिलाई को मजदूरी । अविवाहित ब्राह्मण एक वेश्याको अपनी सी बना कर सगा-गोड़-गौड़ ब्राह्मणको एक शाखा। ये विशेषत: उनके राज्यमें पाया पोर दानदक्षिणा ले कर चला मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाट, महारनपुर बुलन्दशहर बाटि गया । पोछेसे यह भेद खुला, सो राजाने वेश्याको उसकी • Bombay garetteer, but XVI, palt 2, .211 । स्त्रो बना दी पोर उससे उत्पन हुई सन्तानको नाममात्र.