पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१८८

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१८४ तटस्प-तड़कना जो कमीका परग्रहण न करे । ३ तोरस्थ, किनारे पर बद्धको भी उन दोनों लक्षणों मे ममझाया जा मकता गनवाला। व्यस्त। ५ चमकत. पाश्चर्यान्वित है। ब्रह्म चित्स्वरूप है. मत्स्वरूप है, पनन्तस्वरूप है विम्मित । (१०) नक्षणविशेष किमी पदार्थ का वह इत्यादि कहनमे उनका स्वरूपलक्षण प्रकट होता है, क्योंकि लक्षण जो उम म्बकाको नहीं वरन गुण और धर्म को हमके द्वारा उस हा विशेष कुछ ज्ञान नहीं हा चित ने का कहा जाय । लक्षण देलो। कहनेमे जितना बोध होता है, मत् क हमसे भो उसना हो प्रत्येक वन दो प्रकार के लक्षणों हाग ममझी जा ज्ञान होता है तथा ब्रह्म इत्यादि कहनेमे भी उतना हो मकती है--एक स्वरूप-लक्षण और दूमग तटस्थ नला। बोध होता है। हाँ, जब यह कहा जाय कि. वे कत्ती किमो चातका अर्थ ममझाते ममय जिम विशेषणके हैं, हर्ता हैं और विधाता हैं तो कट त्व, सट त्व, विधा- कहनमे विशेष कुछ ममं न ममझा जाय मिर्फ एक हो त्वादि गुणोंको महायतामे उन का लक्ष्य किया गया, तरहका अर्थ ममझ पडे अर्थात् पडले को बानसे जिम प्रतएव यह तटस्थ लक्षण हा। क्योंकि कट त्वशक्ति अर्थ का बोध हो दमरो बार माझाने पर भी उतना ही और पान्नयित्वादि शक्तियों प्राकृत पदार्थ अर्थात् प्रक ममझ प:. उसको स्वरूपाननग विशेषण करते हैं। तिमे विकाशित होतो हैं । इमलिए वह ब्रह्म का कोई एक उदाहगा दिया जाता है, कन्नम और कुम्भ, इम गुण वा शक्ति नहीं है, वह तो ब्रह्ममे विभिन्न ही पदार्थ जगह कुम्भ, कलमका स्वरूपन्नक्षा विशेषण हा. तथा है। अतिरिका वा पृयकभूत किमो वस्तुको महायतामे कलम भी कम्भका स्वरूवलक्षण विशेषगा होमकता है, किमो वस्तका प्रकाश किया जाय तो तटस्थलता कारण यहाँ कुम्भ गब्दहाग कलमका वा कन्नम विशेषण हा करता है। स्वरूपलक्षण देखो। दके हारा कुम्भका विशेष मम नहीं मालम पड़ता। तटाक (म.प्र.) तट आकन वा तट अति प्रक कुम्भ कहनसे जितना ज्ञान होता है, कन्नम कहनमे भी अण । तड़ाग, मरोवर, तानाब । उतना ही ममझ पडता है। कुछ विशेष ज्ञान नहीं तटाघात (म पु० ) तटे आघात:, 5-तत्। वाकोड़ा, होता। और भो एक दृष्टान्त दिया जाता है, किमोने पशीका अपने मोंगो या दांतामे जमोन खोटना। पापसे पूछा, "पोल क्या चीज है ?" आपने कहा, "पोन तटिनो । म स्त्रो. ) सटमस्त्यस्याः तट इनि ततो डोप । शून्य पदार्थ है ।" किन्तु इस शून्य शब्दमे पोलका नदो, मरिता, दरिया। कुछ मर्म नहीं मालूम हुआ। पोन करनेसे पहले तटो (म स्त्रो० ) तट-प्रच-ततो डोष । १ तोर, तट, जितमा ज्ञान हुआ था, शून्य करनेमे भो उतना हो किनारा। २ नदो, दग्यिा । ३ तराई, घाटो। जान हमा। अतएव शून्य शब्द पोलका स्वरूपलक्षण सव्य (स.पु. ) तर उच्चाय' मह ति तट-यत। शिव, हा। यह तो हा स्वरूपन्नक्षणका वर्णन, अब महादेव। "नमस्तटाय तटयाय " (भार० १२।२८४१३६) म्य लक्षगाका वर्णन किया जाता है। किमो अन्य तड़ (दि. १०) १ पक्ष, तरफ। २ स्थल, जमोन । ३ वह वस्त को महायतामे यदि अन्य कमो वस्तुका लक्ष्य किया शब्द जो थप्पड़ आदि मारने या कोई चीजके पटकनेसे जाय तो मे वाक्य को तटस्थलक्षण कहते हैं। उत्पन्न होता है। ४ लाभका आयोजन । यह नट म्यन्न क्षण भी उक्त पोल वा शून्यके दृष्टान्तमे तड़क (हि, स्त्रो०) १ तड़कनेको क्रिया । २ वह चित्र समझा जा मकता है। जो तडकनेके कारण किसो चोज पर पड़ जाता है। . पापमे किमोके यह पूछने पर कि, पोल वा शून्य ३ खाद लेनेको इच्छा, चाट। ४ धरन, कड़ी। पदार्थ क्या है, पापन उत्तर दिया कि इस घरमें यहासे तड़कमा (हि. क्रि० ) १ चटकना, कड़कना। २ किसो लगा कर भोत तक पोन वा शून्य है। यहां भोतको चीजका मूखने आदिक कारण चट जाना । ३ उच्च सहायताले शून्य पदार्थ को समझाया गया. इसलिए यह स्वरसे शब्द करना, जोरकी पावाज करना। ४ चिढ़ना, वाक्य तटसलक्षण एमा। झंझलाना, विगढ़ना। ५ सछलना, सपना, कूदमा।