पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/१९३

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चतुरित संतरि (म त्रि.) तुर्व हिमायां कि हित्व पृषोदादिः । अनारोपित स्वरूप परमामा : "सर्व खल्विदं ब्रह्मवेद स त्वात् साधुः। १ हिंसक, हिसा करनेवाला । २ तारक, (श्रुति) यह ममस्त जगत् ब्रह्ममय है । जो कुछ भी है तारनेवाला। वह सब ब्रह्म हो है। ५ विलम्बित वाद्यादि। ६ चेतः। तहपि- तातृवि देखो। ७ वस्तु । ८ पंचभूम। सारवत, सारांश । १० सांख्योत ततैया (हिं. स्त्रो०) १ बरे, भिड़, हडडा । २ जवा मिर्च प्रति प्रादि, जगत्का मूल कारण। सत्व, रजः पौर जो बहुत कड़ाई होती है। (वि.) ३ तेज, फुरतोला। तमः । ४ बुद्धिमान्, चालाक। इस परिदृश्यमान जगतरूप कार्य को देख कर इसके तत्कार ( स० वि०) तत् करोति तत्क: ट। तत्पदार्थ- कारणका.भो अनुमान होता है। वस्तु के बिना विमो भो कारक। वस्तुको उत्पत्ति नहीं हो सकतो। जैसे मनुषके सींग तत्काल (म' पु०) स चासो कालवे ति, कम धा । १ वर्त- होना असम्भव है, वैसे हो पासत् अर्थात् पवस्तुमे कुछ मानकाल। २ उमो समय, तुरन्त, फौरन । (त्रि.) म उत्पन्न होना असम्भव है। क्यांकि प्रत्येक वस्तुका हो कालो यस्य, बहुव्रो । ३ तत्कालवृत्ति। एक न एक उपादानकारण है, यह मतःप्रसिद्ध है। तत्कालधी (स'• त्रि० ) तस्मिन् काने कार्य काने धो उपः जमे --मिट्टोमे घड़ा को पार समसे कपड़े को उत्पत्ति स्थिता बुद्धिय स्य, बहुव्रो०। प्रत्य त्यवमति, उपस्थित इत्यादि । अतएव यह मानना पड़ेगा कि इस जगत्का मूल कोई तव है, वह तत्व प्रथमतः प्रकति पोर तत्काललवण ( स० को) विटलवण । पुरुष है। तत्कालसक्रान्त ( मत्रि) तस्मिन काल सक्रान्त, पादिकारण से क्रमश: कार्य परम्पराको उत्पत्ति हुई ७ सत्। जो उस समय हा हो। है, इसलिए माख्यशास्त्रवित् विहानाने पादिकारणको हो तत्काल सम्भूत (म त्रि० तस्मिन् काले सम्भ,:, ७-सत् । जो उस समय उत्पन्न हुया हो। का पुन: अन्य कारण, इस प्रकारको यदि कारणपर- तत्कालीन ( स० त्रि.) उमो समयका। म्परा हो, तो भो एक स्थान पर जा कर कारणका पन्त तत्किय :सं० त्रि०) वेतन विना स्वभावतः सा क्रिया कम होगा। प्रकृति उस पादिकारणको सामान है। इस यस्य, बहुव्री० । कर्मकरगा शोल, जो बिना कुछ लिये भार प्रतिमे समस्त सत्व प्राविभूत हुए हैं। प्रतिमें उत्तम, ढोता हो। मध्यम और अधम अर्थात् सुख, दुःख पौर मोह ये तीन तत्क्षण (स• पु०) स चासो क्षणः कालः, कर्मधा । मद्य, गुण पाये जाते हैं। इसलिए प्रकृति से उत्पन्न तत्त्वमि भो उसो समय, तत्काल । ___ उक्त गुण देखनमें पाते हैं, इसो लिए जगत्को मुख. तत्प्रतिमान ( सं० ला०) जैनमतानुसार मान, उन्मान, दुःख और मोहमय कहा गया है। अवमान, गणिमान, प्रतिमान और तत्प्रतिमान इन तत्व पदाथ गुण होना असभव है, कारण गुणसे लौकिक मानके छ भेदमिसे एक । तरङ्ग अर्थात् घोड़ पदार्थ वा तत्वको उत्पत्ति नहीं हो सकता । किन्तु आदिके मूल्यको तत्प्रतिमान कहते हैं। (त्रि.स.) मत्व, रजः ओर तमः ये तीन प्रण-द्रश्य नहीं बल्कि तत्तत्य ( स० वि०) तत्महय, उसके समान। पदार्थ द्रव्य है। तत्ताथ बो ( हि पु० ) १ दमदिलासा, बहलावा । सत्व, रज और तमोगुणामिका प्रवति, महत् (बुधि- २ झगड़ा शान्त करना, बोच बचाव । तत्व ), अहहार, मन, चक्षुः, कण, नासिका, जिला, तत्त्व ( स० क्लो०) तनोति सर्वामिद तन-विप् तुक्च स्वक, वाक. पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, शब्द, स्पर्श, रूप, पृषो०, माधुः । तस्य भावः सत्त्व । १ यथार्थता, वास्त. रस, गन्ध, क्षिति, अप, तेज, वायु, पाकाश और पुरुष विकता, असलियत । २ स्वरूप। ३ बध। (अमर) ये २५ तत्व है। Vol. ]X. 48