पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२०

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टलस्टय (लियो) उनका अन्तर्निहित धम भाव जाग्रत हो गया। १८५५ । अश्रद्धा हो गई। उस समय रूमिया के मिहामन पर ई०के एप्रिल माममें वे अपने रोजनामचेमें भगवान्मे य अनेक मन्दर बैठे थे (१८५५ ई.)। सम्राट, (२य) प्रार्थना करनेको बात लिव गये हैं । युद्धकै भोषण दृश्यमे अनेक सन्दरने जनमाधारणके हितके लिए टलस्टयको अपने मनको हटाने के लिए उन्होंने ग्रन्थरचनामै मन अधिकतर समता देने का प्रयास किया। उममें मम्मान्त. लगाया । इम सिकष्टिपोल के विषयमें उन्होंने जो तोन ग्रन्थ वंशीय और उच्चपदस्थ व्यक्तियोक वाधा उपस्थित करने निखे हैं, उनमें एक तरफ जैमा वास्तव जीवनका सुदर पर भो, रूपियाके अधिकांश लोगों ने उनके मतका सम. चित्र है, दूसरी ओर वैसो हो प्रतिनिके मोन्दय का मधुर र्थन किया। इम ममय बहुतसे लेखकों ने जनसाधारण के वर्णन है । युद्ध करना अन्याय है, हम बात को उन्होंने लिए ले खनो धारण को थी। परन्तु टलम्यक द्वारा बड़े जोरके माथ लिखा था; जिम के लिए मम्राट् जारने साधारण के लिए जेसा प्रयत्न हपा, वैमा और किलोमे उन्ह सेण्ट पिटर्म वग को नोट आने को पाना दो यो। भो न हुअा। उन्होंने Polikushka नामक एक ग्रन्थ- इम बाद उन्होंने फिर युद्धक्षेत्रमें पदार्पगा नहीं किया। में दामभावापन क्लष कोंको सम्पप दुर्द भाका वर्णन टलस्य नये भावोंको लेकर देश लाटायडकी वोभ- बड़ी खबो के माथ किया। उन्होंने कृषकों को उतिक मताको बातें याद करके उनका मन चहा विवाहा।। लिए उन्हें शिक्षित बनाने का मकल्प किया। किन्त वे परन्तु मेनामे जो मृत्य का अवहे नन कर वोरत्व माथ स्वयं शिक्षा प्रणालोके विषयमें कुछ जानते न थे, इसलिए अपना कर्तव्य पालन करतो है, उनका प्रेम हो गया। जर्मनी में जा कर इम विषयको शिक्षा प्राप्त करनेका स्वार्थ पर मम्भान्त व गोयों के चरित्र के. माथ मनिकोको निश्रय किया। तुलना करके, उन्होंने मैनिकीमें हो श्रेष्ठला प.ई। मेगट _____टलमय १८५७ मे १८६१ ई. के भीतर इटली, पिटर्स वर्ग में उनको रचनाको ख्याति पहलेमे हो यो ।। जमनो, फ्रान्स आदि नाना देशमि घूम आये। १८६१ अब मभोन आदरकै माथ उनको अभ्यत्र न' को। सप्र- ई० में वे अपने ग्राममें पहुँचे. प्रथम ही उन्होंने अपनी मिड उपन्याम-लेखक दर्गनिभर्ग टनस्टयको छ तोसे विपुल सम्पत्तिके प्रधो । जितने दामभावापन कपक थ, लगा लिया और निमन्त्रण-पूर्वक उन्ह अपने घर ले गये। ; मवको मुक्त कर दिया। उनको अमाधारण पदान्यताको समाजमें सर्वत्र उनका सम्मान होने लगा। टस्टयन युद्ध- देख कर सभा विम्मित हुए। उनके दम महत् कार्यका के जीवन का जो वणन अपने ग्रन्यमें दिया था, उम पर अनुरण र रूसिया सम्राट न वाँक ममत कर ..ओ मुग्ध हो गये थे । गजधानी के प्रधान प्रधान राकम कांका वा निता दे दो। जम नाम जिा प्रणाला कं चारिगणा भोटलमय को निमन्त्रण दे दे कर जियान रंग।। ग्राम्य विद्यालय है, टलम्यने उमो प्रणाली को रूसिय में इन पादर अभ्यर्थना प्रोम टलमय ।। माधु भाव जाना प्रवत न करना चाहा । किण्डर-गार्ड न-प्रथाका अनुमरण रहा । वे पुन: विलाम और आनन्दकै सतमें वहन निगे। कर उन्होंने यमाया पलियानामें एक विद्यालय ग्वोला । परन्तु इतने पर भी उन्हें शन्ति न मिनो । वे सत्यपय- वे शिक्षाके विषय में सम्म गा स्वाधीनतावादी थे । इमलिा के यात्री धं-सन उनमा मदा पत्य ६ अन्वेषणमे लगा। उनके विद्यालय में छात्रों के लिए कोई वेतन निर्दिष्ट नहीं रहता था। यही कारण या जो रू.सयाक राजधाना ! हुअा, छात्र चाहे जिम ममय भारी ओर चले जाते थे तथा के माहित्यिकामे, जो मत्यको अपेक्षा चिगनुगत प्रयाको चाहे जिस विषय को शिक्षा लेना चाहें ले मते थे। हो अधिक सम्मानको दृष्टि से देखते थे, उनका वन्धुत्व उनके विद्यालयमें किमोको भी किसी प्रकारको मजा न अधिक दिनों तक स्थायी न रहा। विशेषतः टर्ग निभक दो जाती थो। टलट्रय स्वयं चित्राङ्गमविद्या, मट्टीत साथ उनका मतभेद बहुत से बढ़ गया । परन्तु स्टेट और वारवेलका इतिहास पढ़ते थे। १८५२ के नामक एक कविमे उनकी आजीवन मित्रता निभी थो। अकोवर मासमें राजकीय परिदर्शकोंने उनके विद्यालय इस प्रकारसे टलमयको पारिपाखिक अवस्थासे के विषयमें इस प्रकार अपना अभिमत प्रकट किया,-