पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२१३

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प्रायश्चित्त ले कर उसे फिर जातिमें मिला लेते हैं, जिन्तु . पुरक तन्तुवाय ठाकुर समीनारायण पालामको पूजा भिव जाति के साथ संभोग करने पर वह सदा के लिये करते हैं। उत्सव बाहर होने के समय पारी की छोड़ दो जाती है। इस जाति की टि कोई स्त्री स्वजा. हायो पोर पोछे नवाबदस पत्रों पर्थात् मुहर्रम समय. तीय किसी पुरुषर्क उपवनी ते रूप में रहे और यदि उमके की प्रतिमसि रहतो है। इसके बाद चतुर्दोलमें बहुतमो गर्भ में सन्तान उत्पन्न हो तो पहले वे दोनी ममाजमें देव मूर्तियो रख और पाप गाड़ी रत्यादि पर चढ़ पनेक नहीं लिये जाते. बाद गांवके मुखियों को एकत्र कर भोज तरहके नाच गान करते हुए, कवि प्रभृति कोतुकजनका देने तया कुछ पर्थ प्रदान करने के बाद फिर वह स्त्रो । गोत गाते हुए तया पाभङ्गो हारा मनु को सात पौर उसको सन्तान समाज में ग्रहण को जाती है। हुए बाहर निकलते हैं। भासपास के ग्रामों पमब बङ्गालके प्रायः सब ताँती वैष्णव है और वे वाद. मन य यह उत्सव देखने के लिये ढाका नगरको वामो गोस्वामियों के शिष्य में । टाढो रखना ये ममानमें प्रति है। निषि मम्झी हैं: जो कहो. प्राजकल अधिकांश वङ्ग तातो बहुत समारोह के साथ कामदेवको पूजा युवक हो दH Fमस्कार में लगे र रते हैं। पूर्व बङ्गालके करते हैं। बङ्गाल के तन्तुवाय माधार पत: तथा झंपनिया. तॉतियों में कोई पञ्चायत या महाजपति नहीं है। मबमे के तोतो बिलकुल हो इस उत्सवको नहीं मनाते है। अधिक ऐश्व शालो मनुष्य अपने मन्नान के अन्यान्य निर्धन परन्तु भावाल, कामरूप और उसके पासपामक स्थानों में ताँतियों के अपर अपना प्रभुत्व जमाते और कनकादिको अाज तक भो यह पूजा प्रचलित है। मदनचतुर्द शो मीमामा कर देते हैं। व्यवमायक्रान्त विषय बड़े अर्थात् चैत्रवण चतुर्दशी के दिन यह उत्सव किया जाता बड़े दल ओर दलपतियों के हाग निहारित होते हैं। है। पहले यह उत्सव सात दिनोसा होता था। वङ्गा बङ्गामें मब जगह तन्तुवायगण भाद्रम ममें श्रोता- मब जगह तन्तवायगण भादमाममें श्रोसगा- तातो जन्माष्टमोका उत्सव करत महो, किन्त वह की जन्माष्टमों के उपलन में उत्सव मनाया करते है । विशेः उममे बहुत भिव है। दो लड़काको कण पोर नन्दगोप षत: ढाके के तन्तुबाय (तांतो) इम उपलक्षमें बहुत रुपये बना कर उन्हें बहुमूल्य पाभूषण इत्यादिसे मजा धूम खर्च करते हैं। पहले जब ढा में नवाब घे.' तब उनके धामकै माथ गाते बजाते बाहर निकलते हैं। समस्त मैन्यदल और वाद्यकरगण इम उपलक्षमें योग देते थे। तन्तुवायगण पहले कुलदेवता विश्वकर्माकी पूजा करते यद्यपि उनको चमक दमक भाजकन बहत कम गई है बाद कपड़ा बुननेके उनके जितने यन्त्र । उनको पूजा तो भी पूर्व बङ्गालमें ढाईका जन्माष्टमी उत्सव मन्चमे करते हैं। विश्व कमांको पूजा मूर्ति बना कर नहीं को प्रधान है। यह उत्सव ढा में दो अश में किया जाता जातो है। अन्यान्य शिल्पकारोंको नाई यन्वादिमें हो है। वहाँके ताँतो बहुत दिनों मे तातोबाजार पोर नवाब. विखकमोका अधिष्ठान जान कर पूजा की जाती है। पुर नामक नगरके दो छोटे गांवों में रहते आये हैं । इन पश्चिम बालके भो प्राय: समस्त तातो वैष्णव है और दो गाँवोंसे नन्दोत्सव के दिन एक एक जुन स बार शिव, दुर्गा, कालो व्यादिको पूजा किया करते है, किन्तु निकलतो है । १८५३ ई० में इन दो दलामें रस्पर विरोध उनके मामने छागको वलि नहीं देते हैं। हो जानेके कारण पापसमें लड़ाई झगड़ा प्रारम्भ हो बिहार में बहुत थोड़े ततिा वैष्णव देखनमें पाता। गया। १८५५ को गर्म गटने भविष्यमें रम तरहका अधिकांश हो शक्ति-उपासक है। कनौजिया ताँती महा. दंगा फसाद रोकनेके लिये एक नियम बनाया कि पंक मायाके रूपमें दुर्गाको उपासना करते है। बङ्गालवामी ही दिनमें दो दल बाहर नहीं निकल मकते तथा एक बिहारी ताँतो दूर्गा पूजा करते है, कालोपूजाके दिन उन एक वर्ष के क्रमसे एक एक दल पहले दिनमें और दमरा के मामने छागको बलि पोर मचकुमार नामक उनके दस दूसरे दिन शुलुस निकाल सकता है तातोबाजार- पूर्व पुरुषके नामसे एक नसोको बलि दे। बहुतमे के तब्वाय राणाकी मुरलोमोन मत्ति की और नवाब- वितिया नातो पासो, दुर्गा, महादेव प्रतिको उपासना Vol. Ix. 58