पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२२

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१८ टलस्टय (लियो) है, म्वास्थ्य अन्झा है, नैतिक पार दंशिक शक्ति भो । परम्पर विवाद विमम्बाद करता और युद्ध एव प्राण काफी है। मैं कषकाको तरह बाना और काटना जानता दगड का अनुमोदन करता था, इमलिए ये उससे बाहर दश वगटं सक स्थिरचिनमे काम करनं पर भो मझे निकल आये। इन्होंने ईसाके उपदेशर्ममे निम्नलिखित शामिनही मान्न म पड़ता। किन्तु महमा मरे जावन वाक्य ग्रहगा किये--- गांतक गई। मैं श्वाम प्रवान ने मकता है, खा ) क्रोध न करना । मता है, मो सकता है. परन्तु यह तो जापन नहो (२) व्यभिचार न करना । • मझ अब धिमी चातको इच्छा नहीं है। इच्छा (३) शपथ न करना। न का भा कुछ नहीं है। श्रार ता क्या. मत्य जानन. (४) दुःख वा काष्टको पानसेन रोकना । को वासना भी नहीं है ! में गवरक पाम या चुकाह. (५) मनुष्यसे शत्रता न करना। मृत्य के भिवा, मैर मामनं पार कल भी नहीं है। मैं और एक उपदेशमं उन्होंने उक्त वाक्यों का मार पाया ना सवो होने पर भी ममझ रहा है, कि जोन मे यथा 'भगवान् और अपने पड़ोमियों पर उतना ही प्रेम डि नाम नहीं है। न मान म कोन मुझं मन को करो, जितना तुम अपन पर करत हो।' । पोर वाचे लिये जा रहा है." धम जीवन उन्नति प्राम करने के लिए स्वावलम्बी ___ इसके बाद एक दिन टनाटय पर भगवानको कृपा और मरन्न स्वभावी ननिकी आवश्यकता ममझ टन्नस्टय । आप निम्वत हैं-एक दिन वमन्तऋतुम ) में ! कृपकीको जीवनयात्रा-प्रणालीका अनुकरण करने लगे। ना जगन्नमें बैठा हा पत्ताको मर्म र ध्वनि मन बहुत मब बिकोनमे उठ कर ये खेतमि जातं और

। श्रा---अपन जावन के अन्तिम तीन वर्ष के दावोंकी शम्यादि काटते भोर रोपत थे। अपने पहनने का जूता

कर रहा या---भगवान को अनमन्धान, अानन्दसे ! स्वयं बना मकै, इसके लिए उन्होंने चमारका काम भो तामांग पतन इत्यादि बदतमी बातों को उधंडवन कर ! माग्वा । म तरह सबहम शाम तक ये कठोर परिश्रम राया। महमा मन देवा, कि जिस ममय में भगवान करते थे। सरलता तो इनके जीवन का व्रत हो गया। ये विश्वास करता , उमा ममय पालभ होता है कि श्राहार व्यवहार में मंयत हो गये मांसाहार छोड़ कर मजावित हैं। भगवानका स्मरण करते ही वृदय निमिशभाजी बन गये । यहाँ तक कि मादक श्रेणी- मानन्दका स्रोत बह चन्ना । चारों और के मम्म ण पदार्थ भक्त होने के कारण उन्होंने तम्बाकू पीना भो छोड़ दिया। व में दीखने लग-मध मार्थ क मानलम पड़न नगे। परन्तु इतना करन.पर भी वे अपने को कषकंकि ममान ! :: जिम मुहत में अविश्वामन हृदय पर अधिकार न बना मके। टलस्टय इस बातको समझते थे, कि जमा लिया, उसो समयमे जोवनको गति रुक गई। तो किमान दिन भर काम करने के बाद अपनी छोटो मो चालानी में क्या ढढ़ रहा हभोतरसे न मालूम झोपड़ोमें जा कर बहुत दुःख भोगत हैं, और वे शाम को मिनि कना-उमको ढूढ़ रहे हो, जिमके बिना मनुष्य प्रासादमें जा कर आरामसे सोते हैं। टलस्टयन अब बन्धु- को नहीं भकता। भगवान को जानना और जीवित्र , बान्धव वा लोक-समाजमें जाना प्रामा प्रायः छोड़ दिया। रचना, दोनों एक ही बात है। क्योंकि भगवान नी "अर्थ ही अनर्थीका मूल है" ऐसा समझ कर हमारे राम- औवन है। तबमे फिर मुझ अन्धकारमें नहीं जाना। कृष्ण परमहंमको तर उन्होंने उसका म्पर्श करना छोड़ पड़ा।" दिया। जीवनको साधनामें श्रानन्द पान के लिए इन्होंने ग्रोक १८८० ई में लोकगणमाके समय गवम गट टलस्टय- वाचेकी सम्म गण प्राचार पति को अपनाना चाहा; परन्तु को महायता पहुंचाने के लिए आमन्त्रण दिया। टल- वाहा पाचारको ये युक्ति वा हृदय किमीमे भो न मान स्टयने देखा, इस मौके पर वे अनायास ही मक विशेषत: उमा धम-मम्प्रदाय दूसरे धर्म सम्प्रदायोंसे । जनसाधारणको अवस्थाका परिज्ञान कर सकते है,