पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२४९

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उत्तम पुरुष इसका सेवन करते हैं तथा राजस्व । गैसे भैरवखरको पूजा करें। कोटि कन्धा दान करनेसे चौर भानन्द-जननका या कारण है, इसलिए इसका तथा भूमि और एक बोझ सोना दान करनेसे जो फल नाम सुरा है। इससे देवताओं का मन पानन्दित पोर होता है, कोलिक कार्य में इसको एक बूंद दाम करनेसे द्रवीभूत होता है तथा इसके देखनेसे पर खरी भो तना हो पुण्य होता है। सुवर्ष संयुक्त प्रथिवो दान देनेसे व्याकुल होती है, इसलिए इसका नाम मुद्रा है। जो फल होता है, प्रथमयुक्त तोय द्रवा वा प्रथमयुक्ता ___ पञ्चमकारका फल महानिर्वाणतन्त्रक ११वे पटलमें हितीय द्रवा दान देनसे भो यो फल होता है। इस प्रकार कहा है- माताएं , योगिनो और भैरवादि मभो इससे हम होते "अष्टैश्वर्य पर मोक्षं मद्यपानेन शैलजे । हैं। कोटि गो-दान करनमे जो पुण्य होता है, पचमकार मांसमक्षणमात्रेण साक्षापारायणो भवेत॥ प्रदान करनमे भो मनुषाको उतना ही पुण्य होता है। मत्स्यभक्षणमात्रेण काली प्रत्यक्षतामियात। जो माधकाधम पञ्चमकारको छोड़ कर अन्य द्रवा कल्पित मद्रासेवममात्रन भूपुरो विष्णुरूपधृक् । करता है. उसको सब कुछ निष्फल है। इसको अत्यन्त मैथुनेन महायोगी मम तुल्यो न शयः ॥" मत्य मानो। मद्यपान करनेसे अष्टे खर्व और पगमोक्ष तथा मामः चाण्डालो. चम कारी, मातङ्गो, मत्स्यकारिणो, मद्य- के भक्षणमात्रसे माक्षात् नारायणत्व लाभ होता है। कर्ती, रजको, सौरको पौर धनवानमा, ये पाठ स्त्रियाँ मत्सा भक्षण करते समय ही कालोका दर्शन होता है। कुलयोगिनी है। ये ही समस्त मिहियों को देनेवाली है। मुद्राके सेवन मात्रसे विष्ण रूप प्राप्त होता है। मेथ न पचमकारका विषय वर्णित हुपा, किन्तु पञ्चमका. हारा मरे (शिव) तुला होता है, उसमें मंशा नहीं। एका शोधन किया जाता है। पश्चमकारकै दानका फल- "संशोधनमनाचर्य स्त्रीषु मधेषु साधकः) "द्रव्य मधु: तथा मत्स्य मांसं मुद्रा च मैथुनम् । आचर्यः सिद्धिहानिः स्यात् कद्वा भवति सुन्दरी॥" मकारपश्वसंयुक्तं पूजयेत् भैरवेश्वरम् ॥ ___ जो साधक पञ्चमकारका शोधन बिमा किये मद्यादि कन्याकोटिप्रदानस्य हेममारशतानि च। व्यवहार करता है, उसके कार्य में हानि होती है और फलमानोति देवेशि कौलिके विंदुदानतः ॥ उस पर देवो भी अपहातो है तथा वह कभी भी पृथिवी हेमसम्पूर्णा दत्वा यत्फलमाप्नुयात्। मिडि लाभ नहीं कर पाता। तत्पुण्य कौलिके दत्वा तृतीय प्रथमायुतम् ॥ पंचतत्व । -तान्त्रिकके लिए प्रत्येक कार्य में जिस द्वितीयं प्रथमायुक्त यो दयात् कुलयोगिने । प्रकार पचमकारमाध्य है उसी प्रकार समस्त कार्योमें तृप्यन्ति मातरः सर्वाः येगिन्यो भैरवादयः ।। पञ्चतत्वको भी आवश्यकता है। अश्वमेधादिकं पुण्यमन्त्रदानान्महर्षाणाम् । "पूजयेत् पहुयत्नेन पंचतत्स्वेन कौलिकः । तत्फलं लभते देवि कौलिके दत्तमुद्रया॥ एवं कृत्वा लभेत् सिद्धि नान्यस्य दृष्टिगोचरे। गर्वा कोटिप्रदानेन यत्पुण्यं लभते नरः। शैवे शाके गाणपत्ये सौरे चान्द्रे सुलोचने । तत्पुण्यं लभते देधि पंचमस्य प्रदानतः ॥ तत्त्वज्ञानमिदं प्रोक वैष्णवे शृणु यमतः॥ पंचमेन बिना द्रव्यं य: कुर्यात् साधकाधमः । गुरुतस्त्र मन्त्रतस्व' मनस्तख' मुरेवरि । तत्सर्व निष्कलं देवि सत्य सत्य न संशयः ॥ देवतत्त्व ध्यानतस्त्व चतरस्व वरानने ॥" चाण्डाली चर्मकारीवमातगी मांसकारिणी। कोलिकको चाहिये कि, पति यनसे पञ्चतत्व बारा मयकत्री च रजकी क्षौरकी धनबालभा । पूजा करें। ऐसा करनेसे ही सिधि प्रान होगी। थैव, अटैताः कुरुयोगिन्यः सर्वसिद्धिप्रदायकाः ॥" शाक, गाणपस्य, वैष्णव, पून मभो सम्प्रदायाँके लिए पर मा, मका, मांस, मुद्रा और मैनम पांच मका। सवका जानना जरूरी है। गुरुतत्व, ममतच, मन. - Vol Ix. 2 .