पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२६०

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२५६ पूजायोगच देवेशि स्वयमुत्पत्तिकारणम् । प्रायोत्तरदेहस्तु पिंडदानादिकं कथम् । पेन रूपेण ब्रह्माण्टा जागते शृणु तत् शिवे । शिव उवाच । आकाशाजायन वायुयोत्पद्यते विः ॥ शृणु देवि प्रवक्ष्यामि मायादेह तदैवहि । खपाने काय नोगात्ययते मही। मायादेह परमेशानि वायुरूपेन चान्यथा ॥ पंचभुना बह्माण्डा वेयुः पर्वता-मजे ॥ वायुरूपो यतो देह आकाशस्थो निराश्रयः । अवारस्थापनार्थाय कूमपृष्टयनन्तकः। तनव विण्डदानेन वाय: स्थिरतरो भवेत् ॥ नन्मन वायुगकाग ब्रह्माण्डा वह स्थिताः ॥ प्रथमे मस्तक देवि जायते च कमावधि । कारण वारिमध्येनु कूर्गश्राति नित्यशः। ततो यमपुरं गत्वा धर्माधर्मादिक'च यत् ॥ अहमव त्रिशूलेन पालगाम पुनः पुनः ॥" नद्भुक्त्वा चापरे किंचित् यदा कर्म न विद्यते । हे देवश : निगक र, निगा, स्तुतिनिन्दाविवजित तदाज्ञया तदा जीव: प्रययौ ब्रह्म शासनम् । वर्गातीत, मनियन, मजाविरहित यह किम अाकारम तस्मात् कर्मानुसारेण यदित्याद्र्लभ तनुम् । प्रतिष्ठित है और कॉम हमको उत्पत्ति हुई है त । महाविद्या भावात् यदि प्राप्नोसि सद्गुरुम् ॥ उत्पत्ति हुई तो किम अ'का में हुई ? यह मा कह कर । तत्वज्ञान महेशानि यदि भाग्यवशालभेत् । मेरा मशय दूर कीजिये। महादेवने पावकों के प्रश्न के ! तदव परमं मोसं यावयूह्माण् तिष्ठति ॥ उत्तर में कहा है पापति ! थेठवा में वर्णन करत । ब्राहाणस्थ महामोरं पायुज्य क्षत्रियस्य च । है और जिस तरह इम ब्र मा गडको उनि हुई है.. सारून्य चोरुजातस्य शूद। सहलौकिकम् ॥ उमको क या भो कहता हूं, तुम ध्यान दे कर सुनो। । म.निद्याप्रसादेन पुनरागमन' नहि । गुणाल्या, गुणातीता, स्तुति और निन्दाविवर्जिता. पहत्ब्रह्मांड नाशे तु सर्वमोक्ष' यदा शिव ॥ प्राकारगिता नित्या, गेगशाकविव'जना गत स्वयं को तदा सर्वस्य निर्वाण' भवत्येव न संशयः । उत्पत्तिका कारण है. उसके बाद जिम ताः ब्रह्मा गडक) श्रीच डि कोवाच । उत्पत्ति हुई है वह कहता है। पर ने भाका गमे वायु वृहत्ब्रह्म ण्डवाय तु कि पुन: परमेश्वर । वायुसे रवि, रतिमे जन्न, जलमे महो वा पत्रिवो उत्पत्र तत्पर्य श्रोतुमिच्छ मि यदि स्नेहोऽस्ति मां प्रति । हुई है। ये पाँच पन्नभून हैं. इन्हीं पञ्चभूतमि ब्रह्मागडको शिव उवाच । उत्पत्ति हुई है। कूम पृष्ठ पर ब्रह्माण्ड में स्थापित है तथा ब्रह्माण्डस्य वाह्य देहो ब्रह्माण्डो वहवः स्थिताः । अनन्त के मस्तक पर वालकाकार अनेक ब्रह्माण्ड अवस्थित अनन्तस्य प्रमाणतु किं वक्तु शक्यते म ॥ है। कारण-वारिम कूर्म विचरण करते है, में त्रिशूल स एव निर्मित पर्व सैव सर्व महेश्वरि ।' हाग पुन: पुन: पालन करता है। मनुष्य केमे तो जन्म लेते हैं और कैसे उनको मृत्य 'श्री चण्डिकोवाच । होतो है इम विषयको सुननेकी मेरो बड़ी इच्छा हुई है। कथ वा लभते जन्म कथ मृत्युभवेत् प्रभो। है शिव ! आप इसका यर्थाथ विवरण कहिये । महादेव तत्प्रकार महादेव श्रोतुमिच्छामि तस्वत ॥ पार्वतोसे कहने लगे-"हे शिवे : मनुष्य इस जगत्म जो श्रीशंकर उवाच । कर्म करते हैं, अर्थात् पाप और पुण्यका सा अनुष्ठान इह यत् क्रियते कर्म तत्परत्रोपभुज्यते। . करते हैं, उन्हीं काँक अनुसार परलोक में स्वर्ग नरकादि जीवस्तृण जलौकेव देहाई हान्तर व्रजेत् ॥ भोग करते हैं। जॉक जैसे तृपसे हृणान्तरको गमन संप्राप्य चीत्तम दे देहं त्यजति पूर्वकम् । करती है, उसी प्रकार जीव भी देशसे देशान्तरको गमन इति श्रुत्वा च सा चण्डी पप्रच्छ परमेश्वरम ॥ करता रहता है। जैसे जोक एक तृणका बिना पात्रय श्रीचंडिकोवाच । लिये पहला वह नहीं छोड़ सकती, उसी प्रकार जीव भी