पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२६४

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"द्वितीये जायते पुत्री विष्णुः सवंगुणाश्रयः। ६, तुम उसका अनुष्ठान करो। तुम्हारे मिवा दूसरा शृणु पुत्र महावी ! विवाह कुरु यत्नतः। कोई पुरुष नहीं है और न मेरे किवा अन्य कोई स्त्रा तव दर्शणमात्रेण निष्कामी जायते पुमान । हो है, इमलिए तुम मेरे माथ विचार करा। महादेवन कथ करोमि हे मातः मोहिनी देहि मे शिवे ॥ उत्तर दिया- 'हे मात ! आप सिवा अन्य स्त्री अथवा देहान्छक्ति निर्गत्य ददौ तस्मै च कालिका । मेरे सिवा अन्य पुरुष नहीं, यह सत्य है। किन्तु जब तक श्रीवैष्णवीं महाविद्यां श्रीविद्यां परमेश्वरीम् ॥ आपको यह देह र गो. तब त में अपसे विवाह न नामाश्रित्य महाविष्णुः पालयत्यखिलं जगत् । कर सकूगा। यदि मुझ पर अपको ‘रुणा है, तो आप तृतीये जायते पुत्रो महायोगी सदाशिवः । इस देहको छोड़ कर अन्य शरीर धारण काजिये।" इम तं दृष्ट्वा सा महाकाली सुष्टियुक्ताभवन् मुदा । पर महाशक्तिन भुवनसुदरोगा रूप धारण किया। भुवन शृणु पुत्र महायोगिन् मद्वाक्यं हृदये कुरु॥ सुन्दरो और महायकि एक ही हैं। महायोगा शिवने ला विना पुरुषो कोवा म पिना कापि मोहिनी । इन भुवनसुन्दरोगा पाश्रय ले कर अखिल जगत्का अतस्त्वं परमानन्द विवाह कुरु मे भिव॥ संहार किया। शिक्षक र विनाग है.महाशक्ति भी कालो, शिव उवाच- तारा प्रादिक भेदमे पाठ भागामें विभक्ता हैं । हे पावति ! यदुक्तं मयि हे मातम्वा विना नास्ति मोहिनी । इसोको ब्रह्मका स्वरूप समझो। यह अत्यन्त गोपनीय सत्यमेतज्जगन्मातः मानिा पुरुषो न च । अस्मिन् देहे संस्थिते च न करोमि विवाहकम। "श्रीचण्डिकोवाच । कुरु देहान्तर मात: करुगा यदि वर्तते । त्वत्प्रसादाछु नाथ पर ब्रह्मनिरूपणम् । सत्क्षणे सा महाकाली ददौ भुवनसुन्दरीम् ॥ इदानि श्रोतुमिच्छामि क्षितो सृष्टियता भवेत् ॥ तामाश्रित्य महायोगी संहरत्यखिलं जगत् । श्रीशिव उवाच: शम्भोरष्टविभागश्व शक्तिश्चाष्टविधा भवेत् ॥ शृणु देवि । प्रवक्ष्यामि यथा सृष्टिः प्रजायते। कालिकाद्या महाविद्या बनेन परमेश्वरि । सत्यलोके महाकाली महारुण संयुता ॥ इति से कथितं कान्ते यथा ब्रह्मनिरूपणम। चनकाकृतिविाताग चन्द्रसूर्यादिरूपिका । गोपनीयं प्रोन विद्योत्पत्तिर्यथा प्रिये ।" अनादिरूपसंयुका तदंशा जीवमंज्ञकाः । उसके बाद हितोय पुत्र हुये। जिनका नाम विष्णु चलदर्यय देवी स्फुरन्ति विस्फुलिंग हाः । है ; ये अत्यन्त सत्वगुग्णप्रधान है। इन विष्णु के उत्पन्न तस्याश्च्युतं परं ब्रह्म गदा भूमौ पतत्यपि ॥ होने पर महामायाम उनसे कहा-“हे पुत्र ! तुम विवाह तदैव सहमा देवि शक्त्यायुको भवत्यपि । प.रो, क्योंकि तुम्हारे दर्शनमात्रसे लोग निष्कामी होंगे।' स्थावरादिषु की टेषु पशुपक्षिषु शैलजे। विशुन उत्तर दिया-- 'हे मातः ! कमे में विचार करू? चतुरशीतिलक्ष वै नाम चानोति सोऽव्ययः। आप मुझ मोहिनोशक्ति प्रदान करें।" इस पर महा. ततो लभेत् परेशान मनु दुर्लभ तनम् ॥ कालोन अपने शरोरसे शक्ति निकाल कर उनको दो पौर यतो मानुषदेहत्तु धर्माधर्माधिपश्च सः। कहा- "इस शक्ति का नाम वैषणवी और श्रोविद्या है। ततोऽपि लभते जना पुनमृत्युमवाप्नुयात् ॥ तमाम शक्तिका आश्रय ले कर जगत्का पालन करना।" जायन्ते च मृन्ते व कर्मपाशानयन्त्रिताः। विण, इसमें प्रवृत्त हुए । पश्चात् वतीय पुत्र उत्पन्न हुए, चतुर शीतिसहस्रेषु नानायोगिषु शैलजे " जिनका नाम था सदाशिव, ये महायोगो थे। इनको देवदेव ! तुम्हारे प्रमादसे मुझ परब्रह्मतत्त्व जात देख कर महाकालो अत्यन्त प्रक्षित हुई। इनाने एमा, पब इस शितितसमें किस प्रकार सृष्टि होतो है मदाशिवसे कहा--"ह पुत्र ! मैं तुमसे जो कुछ करती यह जानना चालतो । मादेवीबा - देवि!