पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२६७

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२६३ बुधमत प्रतिपाय बौदशास्त्रम पामकारको निन्दा । कार्योंके उद्देश्य से कोई एक कार्य करमा, कोई ऐसा है और उनको यहण करनेका निषेध है। किन्तु बौह कार्य करना जिससे अनेक उद्देश्य सिद्ध हो। तान्त्रिक उसमें अन्यथा किया करते हैं। पञ्चमबारको जिस तरह पास्त्रानुसारसे नान किये बिना कोई सेवा बोहतका एक प्रधान अङ्ग है। जिस मद्य और काम करना निषिद्ध है, परन्तु एक ही पादमो पूजा. मांसको ग्रहण करमा बोलशास्त्रमि विशेषरूपसे निषिद्ध सण और होम कर सकता है। बतलाया गया है, जौहतत्रोंमें उमीको मुख्याति पाई 'अस्नात्वा नाचरेत् कर्म जपहोमावि किंचन ॥" (दक्ष) जाती है। इस शास्त्रीय वधनानुसारसे उसके प्रत्येक कार्य के "नित्यं महामांसभोगी मदिराप्रवचूर्णितम् ।" वाद स्नान करना पावश्यक जान पड़ता है। उसके ".........महामांसे पीत्वा मद्यं प्रिया सह। लिये तंत्रता स्वीकार कर समस्त कर्मोई शसे एक बार स्वच्छचित्तो मृतांगारे भावयेत्वीरनायकम्।” सान करनमे काम चल सकता है। प्रत्येक कार्य के बाद ( अमिधान०४५०) मान करने का कोई प्रयोजन नहीं। बौद्धत त्रों में पशु और वोर, इन दो भावों का उल्लेख यदि किसीने अनेक ब्राह्महत्या की कों, तो उम है। जो वास्तविक सिद्धतांत्रिक हैं, बौहत बॉमें उन्हीं को ब्रह्महत्या पापनाशके लिये एक एक प्रायश्चित्त न करके बोरनायक कहा गया है । मोडतांत्रिकगण भी इस जगत्- महिशसे एक प्रायश्चित्त कर लेनमे की ममस्त ब्रह्म को वामोद्धव मानते हैं । बौद्धतम चक्रपूजा, वोरयाग, हत्याका पाप नाश हो जाता है। ( स्मृति ) भगपूजा आदिका विषय भी वर्णित है। वर्तमानके तम्बधारक (म पु० ) तत्र तत्रज्ञापकपहतिग्रन्य धारः मात्विक बौद्धगण प्रायः जातिभेद को नहीं मानते, किन्तु यति धारि-गव ल । पुस्तकधारक, यज प.दि कार्यों में वह जौलतात्रिकगण चतुर्षण का विशेषरूपमे विचार करते मनुष्य जो कम काण्ड पादिको पुस्तक ले कर याजिक है । ( क्रियासंप्रहपलिका १म अ० द्रष्टव्य है।) आदि के माथ बैठता हो। याधिक कमाही पार तांत्रिकविषयने जिस तरह भारतीय हिन्दुओंका दर्गा क्यों न हो तो भी तबधारक के विना पूजा यन्त्र हृदय अधिकार किया है, उसी प्रकार वौडतांत्रिकविषय प्रभृतिका अनुष्ठान नहीं करना चाहिये । पूजादिमें एक भी तिब्बत और चोनके बहुसंख्यक बोडमि पयं यसित पूजा करने के लिये बैठे और दूभरको चाहिये कि काम हुआ है। पद्मक नाम तिब्बतवामी एक लामान (ई० पुस्तक ले कर उसके अनुसार पढ़ात जाय । को १६वीं शताब्दोमें ) कहा है-"जो याथ तत्र एकस्तत्र नियुक्तस्यादपरस्त त्रधारकः।" । स्मृति ) तत्त्वसे वाकिफ नहीं है, वह मोक्षमाग में राहभूले पथक तम्बयुक्ति ( म ० स्त्रो.) त्रायते शरीरममन त चिकि- को भॉति है, इममें मन्देह नहीं। वह भगवान् वच- सित तस्य युक्तयः, ६-तत्। सुश्रुतोक्त ३२ प्रकारको मत्वके निर्दिष्ट मार्ग बहुत दूर विचरण करता है।* युक्ति। इनकी महायतासे किमो वाक्यका अर्थ पादि तन्त्रक (सं० क्ली०) तन्त्रात् सूत्रवापात् पचिराहतं तब- निकालने या ममझनमें सहायता ली जाती है। ३२ कन् । तंत्रादचिरापहृते । पा २७ । न तन वस्त्र, नया युक्तियोंके नाम-अधिकरण, योग, पदार्थ, हेत्वर्थ, प्रदेश, कपड़ा। प्रतिदेश, अपवर्ग, वाक्यशेष, अर्थापत्ति, विपर्यय, प्रमंग, सम्बकाष्ठ (म.ली.) तवयं काष्ठं । तवस्थित काष्ठ एकान्त, अनेकाम्त, पूर्वपक्ष, निण य, अनुमत, विधान, भेद, तातमेकी एक मकड़ी। भनागतावक्षण, प्रतिक्रान्तावेक्षण, संशय, व्याख्यान, तषणा (स.की.) शामन या प्रबन्ध प्रादि करनेका खसंचा, निर्वाचन, निदान, नियोग, विकल्प, समुच्चय, उद्य, उद्देश, निर्दभ, उपदेश और प्रपदेश। इन तन्त्रता (स• स्त्री.) तवस्य भावः तब-तल-टाप । कई ३२ प्रकारको तन्त्रयुक्तियोंसे वाक्य और अर्थ योजित होते .E.Sehlagintereitry Buddhism in Tibet, p. 49, है। जहाँ पर असम्बन्ध वाक्य रहता है, वहां उस काम।