पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'पवित्व गुस्म), "हार्वा पेनिसिया" "हार्वा डिलाइन" ग्रन्थमें इसका कुछ सोखनहीं मिलता तथा एशिया पोर "मिएल पाम्बल्याडियर" (दूत गुल्म) इत्यादि। भारत में सर्वत्र इसका बैदेशिक नाम होनेसे पौर भी पोर्तुगालसे कार्डिनाल साण्टाक्रोश से इटली में ले गये, विश्वास होता है, कि यह इस देशमें कहीं भी को वहाँ इसका नाम उनके नामानमार “आर्चा माण्टाक्रोग' १७ वों शताब्दोसे पहले परिचित न हो। किन्तु सिद्धान्त- पड़ गया । इटलीमे इसका क्रमश: उत्तर-यूरोपमें विस्तार मारावलो नामक वैद्यक प्रन्योत "कसान" शब्दका अर्थ हो गया। "तमाकू" है, इस बातको मब मानते हैं । “कसम'. १५८४ ई में मर वाल्टार सलेमें भाजि याना टन"-का प्रथ चुरट हो पनुमित होता है। फलन कलान राल्फ लेन नामक किमो व्यक्ति के अधीन क उप देखो। इसके मिवा इयन और वानखदेशीय शब्दके निवेश स्थापित किया। वहाँ चौपनिवेशिकानं इसको इतिहासमें १९०४ में लिखित पासाट-बैग विवरणसे खेती को। १५८६ ई में कमान माहबने से पहले पन भो समाकूको बात जाहिर होती है। इंग्ले गड भेजा। उम ममय तमाकू पर २ पन्म शुल्क भासाद ग लिखते हैं - "बोनापुरमें मैंने तम्बाक गता था, किन्तु १७ वर्ष बाद प्रथम जम्मन १६०३ देखः । भारतवर्ष में अन्यत्र कहौं भी इसका पोधा नहौं ई० में इसको बढ़ा कर ६ शिनिङ्ग १० घन्म कर दिया । पाया। मैंने कुछ साथमें ले पाया और जवाहरातको एक कुछ दिनों तक यूरोपमें इसका प्रचार व ब श्रादा ननो बनवाई। अकबर बादशाह मेरे उपहारोंको पा माय होता रहा, मभो विचारते थे कि इमका भेषज-गुग कर बड़े मन्तुष्ट ओर विस्मित हुए। उन्होंने कहा-'त. अति प्राचय फलाद है. मानसिक पोड़ाको यह एक तर ने थोड़े ममय में प्रापर्ने इतनी अचमेकी चोजें कैसे हमे अथर्थ महौषध है । अन्त में कुछ दिन पोछे यह भ्रा इकट्ठो को इसी समय डालोमें धूमपानको नको और दूर हो गया। उस समय मबाट, राजा पोर पोपोको एम. अन्यान्य चीजोको देख कर उन्होंने पूछा, कि 'यह क्या का व्यवहार घटाने के लिए पति निष्ठ र दण्डको व्यवस्था और पापन कहासे प्रान को है। करनी पड़ा था । तुकिस्तानमें धमयायियों के लिए प्रोष्ठा- नवाब खाँ पाजमने उत्तर दिया-सका नाम है घर छेदम और नस्य ग्राहकाके लिए नामाच्छदनको सम्बाकू ; यह मक्का पोर मदीने में विशेषरूपसे व्यवाहत व्यवस्था हुई। किमो किमो जगह तो प्राणदगड तक होती है। हकीम माछब आपको दवाके लिए इसे साये होता था । इतने पर भो तमाकू का व्यवहार घटा नहीं। हैं। बादशाहने उसे देखभाल कर. मुझे उमके बनानेके अन्त में यह प्रायः प्रत्ये कको व्यवहार्य वस्तु हो गई। लिए कहा। वधम्रपान करने लगे। उस समय चिकि- विटेशो तमाकूका भामदनोमहसूल बहुत हो बढ़ गया था, मक उन्हें तमाकू पोनेके लिए निषेध करने लगे। मेरे आखिर १६६० ईमें वह भी उठा दिया गया। १८३० पाम समाकू कुछ ज्यादा थी. मैंने धमोर-उमरावों के पास भो ६.को पायलण्ड में भो महसुल उठा दिया गया और कुछ कुछ तम्बाकू-मज दो। सेवन करके सभीने पोर पाने. १८८४ में कुछ बधे हुए नियमांक अनुमार इंग्लै गड को पच्छा प्रकट की। इस तरह तम्बाकूका व्यवहार प्रच- पोर स्कॉटलण्ड में शस्यरूपमे तमाकूकी खेतो करनेके लित हुआ। इसके बाद सौदागरोंने इसका रोजगार कानून तन गये। करना शुरू कर दिया। मगर बादशाहने रसके पौनेका भारतम तमा-य रोपियोंके मतसे अकबर बाद अभ्यास न डाना।" शाहक राजत्वज्ञे बाद पोतु मोज लोग १६०५ में इसे भारतमें भी इसके कुछ दिन बाद यू रोप जैमो घटना भारत में लाये थे। बहुतमे ऐसा भी कहते है कि अम हुई। अकबर के समयमें समावूका व्यवहार प्रचलित विका पाविष्कारके बहुत पहले एशिया और भारतमें इबा था यही ठोक है, किन्तु जहाँगोरने रमको अनिष्ट- धूमपान प्रचलित था; परन्तु पाज तक इसका कोई प्रमाक कारिता समझ कर उसके व्यवहारको बन्द करनेके लिए को मिला। मरोपियोंका बाना कि सात ऐसा पादेश दिया था कि-"तमाके पोनसे युवकोंका .. . Vol. Ix.18