पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३०३

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२९५ था, उन्हीं के नामानुसार इसका 'तम्बौर' नाम हुपा है। कान पामती सरस गानेका जो भाग कानके भीतर पहमदाबाद ग्राम सम्बौर नगरके मध्यम है। यह भी रहता है वह ताड़के पत्ते को गोल लपेट कर बनाया कुर्मी पंचायत के हस्तगत है। इस शहर में एक स्कूल, जाता है। इसीसे याद 'ताई' से निकाला इमा बाजार, महादेवका मन्दिर पौर एक महामाको कन प्रतीत होता है। संस्कत शब्द 'ताड़ से भी यहो सूचित है। वहाँका टेका बना हुमा प्राणसरोवर धोरे होता है। कहीं कहीं इसे तालपत्र भी कहते है। इस धौर बरबाद होता जा रहा है। पहले इस शहरमें एक गहनेका व्यवहार छोटी जातिको बियोंमें पधिक दुर्ग था। होता है। सम्म ( म त्रि. ) ताम्यत्यनेन तम करण र । ग्लानिमाधन. तरकोज-(प० स्त्री० ) १ सयोग, मिलाम, मेल । २ युक्ति, जिसे लज्जा उत्पन हो। उपाय, ढंग । ३ रचनाप्रणाली, यलो, तरीका । ४ बना. तय (प.वि.) १ ममाप्त, पूग किया हुआ। २ निश्चित, वट, रचना।। स्थिर, मुकर्रर । ३ निर्णीत, फेमल। तरकोचार-एक प्रकारको नीच हिन्दू जाति। ये लोग तर ( म० पु० ) तू-भावे अप । ऋदोरप् । पा॥३। विशेष कर ताड़के पत्तोंसे 'तरको' नामका गहना जिसे १ तरण, पार करने की क्रिया। २ वयानु, पग्नि। नीच जातिको स्त्रियाँ पहनतो है, बनाते हैं। इसोसे जन- ३ वृक्ष। ४ प्रत्ययविशेष, एक प्रत्यय का नाम, टोमे का नाम तरकोहार पड़ा है। मुजफ्फरपुरमें जो तरको एकका उत्कर्ष या अपकर्ष समझ जानेसे गुणवाचक हार है वे अपनेको वैश्य राजपूत और गोरखपुरमें ब्राह्मण शब्दके बाद तर प्रत्यय पाता है। ५ पथ, रासा । ६ गति, बतलाते हैं। लेकिन बामण वा राजपूत होनेका रमको, भाल। ७ नावको उतराई। ८ सन्तरण। कोई प्रमाण नहीं मिलता है। जो कुछ हो, अवश्य ये तर (फा० वि०) १ भाद्र, भीगा हुमा, गोला। २ शोतम्न, लोग हिन्दू है पसमें सन्देश नहीं। क्योंकि मर्दुमशमारोमें ठण्ठा। ३ हरा, जो सूखा न हो । ४ मालदार, भरा भी इन्हें हिन्दू ही बतलाया है। ये लोग पाँचसे ले कर ग्यारह वर्ष की अवस्थामें तरक (हि स्त्री० ) १ तडक देखो। (पु.) २ विचार, लड़कोका विवाह करते हैं। इनमेमे यदि कोई पहली मोच विचार, उधेड़बुन, जहापोह। ३ तर्क, उल्ति, स्त्रोके रहते दूसरा विवाह करना चाहे, तो जब तक चतुराईका वचन। ४ पृष्ठ वा पना समाप्त होने पर पचायत सलाह नहीं देती तब तक वह विवाह नहीं कर उसके नीचे किनारको भोर लिखा हुआ अक्षर वा सकता है। विधवाविवाह भी इस जातिमें प्रचलित है। शब्द। यह शब्द भागेकं पृष्ठके प्रारम्भका अक्षर वा। मरवरिया वशकं तिवारो ब्राह्मण रनके पुरोहित होते शब्द सूचित करने निए लिखा जाता है। ५ व्यतिक्रम, हैं। इनका प्रधान व्यवसाय 'तरको' बनना है। कभी भूलचूक । कभी ये लोग सिन्दूर और ठिक ली ले कर भो मेलेमे तरकना (हि. क्रि०) कूदना, झपटना, उछलना । बेचने जाते है। इस जातिके लोग शराब पीते, भेड़े, तरकश ( फा• पु० ) तूणीर, तौर रखनेका चौगा। बकरे तथा हरिणमांस खाते हैं। ब्राह्मण केवल इनक सरकस (घि पु०) तरकश देख।। हाथका जल ही पीते हैं और कुछ नहीं। सरकसी (फा० स्त्री.) बुद्रतूणीर, छोटा तरकश। तरकुला (हि. पु. ) एक प्रकारका गहना जो कानमें भरका (हि.पु.) तडका देखो। पहना जाता है, सरको। तरकारी (फा• खौ.) १ वह पौधा जिसको पत्ती, जड़, तरकुलो (हि. स्त्री. ) कानका एक गहना, तरको। "ठल, फल, फल पादि पका कर खानेके काममें पाते तरको (प्र. स्त्रो.) वधि, उबति, बढ़तो। . १।२ याक, भाजौ। ३ खानयोग्य मास। तरक्ष ( स० पु० ) मरतु पूषोदरादुलोपः। तरक्षु देखा। तरको (हि.सी.) एक प्रकारका गामा किन चियाँ तरण (संपु०) सरबत मार्गबाजियोति शिण-छु ।