पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३०४

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पाविशेष, लकड़बग्धा, चरग । पर्याय-त, मगाटन माल स्त्रीलिङ्ग हो जाता है। इस प्रकारके पौर मो पोर तालुक। ( शब्दा बहतसे प्रलोक उपाख्यान हैं, जिनसे ग्रोक-ऐन्द्रजालिक- या मामाशो हिंस्रजन्तु है। इसका पाकार बाधक गण हमको हण्डो, चमड़ा, लोमादि, आदू आदि विष- ममान और सर्वाङ्ग खादि हारा चित्रित हनिमे, इमको यौम पाययं शक्तियुक जान कर पादाक साथ रकवा हायना (IISima Striata) भो कहते हैं। यह कतं. करते थे । से कुछ बड़ा होता है, उसके घरोरका चमडा पिङ्गन- तरक्षक (म' पु. ) तरक्षु स्वार्थ कन्। तरच देखो। वर्ण मोमोंमे ढका है तथा स्कच कपिश रेवान्वित और तरवा (कि स्त्रो० ) तोवप्रवाह, तेज प्रवाह। पोठ पर केशरको सरह दोघलोम। इसके मामनका तरखान (दि. १०) बढई, वह जो लकड़ोका काम पैर पीछेसे बाछ बड़े और छोटी होती की करता हो। तरगुलिया (हिं स्त्री. एक प्रकारका छिछला बरतन धारियां सुस्पट होती हैं; पोठका रंग घोर होनक कारण जिम में अक्षत रखा जाता है। वहाँको तिरको धारियाँ स्पष्ट नहीं दीखता। तरङ्ग (म० पु. ) तरति प्रवत इति तु अङ्गच । तर त्यादि । रमको दोनों डाढ़े (दांत ) अत्यन्त मचल प्रोग् दृढ़ इच। उण ।।१९। अमि, लहर, हिलोर । वायु द्वारा है और तो क्या यह उनसे हडडी तकको कतर मकता नदी इत्यादिका जन्न उछाने जाने पर वह निर्यकरूप है। ये भारतवर्ष, सिंहल, अफरीका, अरब, आदि बहने लगता है, इस प्रकारको गतिका नाम तरङ्ग है। स्थानों में रहते हैं। ये धने अङ्गालोमे गहना पमन्द करत एकमात्र वायु हो तरङ्गका कारण है। इसके पर्याय - है। विरल गुल्मपूर्ण पर्वतको गुहा, नदीतोग्य वनक भङ्ग, कर्मि, ऊर्मी, बोचि, वोचो. हलो. विलि, लहरि, प्रास प्रादि स्थानों की इनका वाम है । दिनको पर्वत. मनहरी, जललता, भृङ्गि, उत्कलि का और अमि का है। की गुहा या जलके गहों में सोते हैं तथा मध्याक बाट २ वस्त्र, कपड़ा। ३ अश्व प्रभृतिका समुत्फान, घो; श्मशानमें, लोकालयकं किनारे वा प्रान्तरमै अाहारको पाटिको फलांग या उछाल। ४ चित्तको उमङ्ग, मनका खोज में निकलते हैं। ये मुर्दे बात और उनको हड्डी मौज। ५ एक प्रकार को चूड़ी जो हाथमें पहनी जाता चबाना पसन्द करते हैं। कुत्ता, बि, गाय, बगै है। ६ स्वरलहरो, मङ्गोतमें स्वरोका चढाव उतार । इत्यादिको पति हो पकड़ ले आते हैं। . तरङ्गक (म० पु. ) तरङ्ग स्वार्थ कन् । १ पानोका मको गर्जनसे एक प्रकारका विकट शब्ट होता है, लहर, हिलोर ! २ मङ्गोतम स्वरोंका चढाव उतार । कर्स भी उसे सुनते ही उमौको पोर भागते हैं. बमो तरङ्गभोरु ( म० ए० ) तरङ्गेन भारु, ३ तत्। चतुर्दश मौके पर यह कुत्तीको पकड़ता है। स्वभावतः यह मनुका पुत्रभेद, चौदहवें मनु क एक पुत्र का नाम । डरक होता है। यह मनुष्य पर प्राय: पाक्रमण नहीं तरङ्गवतो । म स्त्री०) तरङ्गिणो, नदी। करता। समतल स्थानमें ये उतनी तेजी मे नहीं दौड़ तरङ्गालि ! म स्त्रो०) नदो। सकतं किन्तु पार्वत्य स्थानमें इसको दौड़ देखने से नरङ्गिणो (म स्त्रो० ) तरङ्गिन स्त्रिया डोप । नदी. विस्मित हाना पड़ता है। बचपनसे पालनमे यह हिलता सरित्। है पर ज्यादा उजित करने वा के डनसे यह भयानक तरङ्गित (म त्रि. ) तरङ्गः सञ्जातोऽस्य तारकादित्वादि हो जाता है। नाना खानोंमें नाना प्रकारकै तरक्षु सच। १जाततरङ्ग, हिलोर मारता हुमा, लहगता देखनमें पाते हैं। उन सभीका स्वभाव प्रायः एकमा है। हा। २ चञ्चल, चपल। ३ भङ्गिविशिष्ट । सके गुवहारके मौकी थैलोको चमड़ो सिकुचो । तरङ्गिन (स.वि.) तरङ्गोऽस्त्यस्य तरङ्ग इनि। १ तरङ्ग रहा इसालय पहल गोकक लाग इसका भय IAF युत, जिसमें लहर हो। २ पामग्दो, मनमोजो। समभाते थे। शिनि, रलियम पादि प्रमिद अन्वकाराने सरचयी (हि.सी.) एक प्रकारका पोधा । यह सजा लिखा,शियह एक वर्ष तक पुलिरहता है, सगै' बटके लिये अचानमें लगाया जाता है।