पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३२०

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करें। इस प्रकारके तव मे हो यथार्थ ज्ञान होता है। त यदि मिथ्या है, तो लोगों का प्रवृत्ति-निवृत्ति वाय- मौलिए वेदान्तदर्शनमें तर्क का विषय इस प्रकार हार किस तरह होगा? लिखा है ---"तको प्रतिष्ठ'नादिल्या दि"। ( वेदान्तसूत्र ) हम देखते हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति भविष्य में सुख दुःख- जो वस्तु शास्त्रगम्य है, तामात्रका अवलम्बन कर को प्रान और परिहार के लिए शवदा वेष्टमान है। वह उस वस्तु के विरुष्ट उद्यम नहीं करना चाहिये। कारण, चेष्टा भो तर्क मुनक है। पुरुष शास्वावलम्बन के बिना बुद्धिमानसे जितने भो तक का दूसरा नाम है कल्पना, तक में मत्यता न होता तकोका उद्भावन करता है, उन सकों को प्रतिष्ठा नहीं तो उसका व्यवहार न रहता, अब तक वह उच्छिन हो होतो. क्योंकि कल्पनामें कोई भाग ( नियामक) जाता । श्रुति के अर्थ में सन्द ह हानि पर वाक्यवृत्तिनिक- नहीं होता। जो जहाँ तक समझता है, वह वहाँ तक पणरूप तर्कके हाग उसके तात्पर्य अर्थ का निर्णय होता कल्पना करता है। अनुमन्धान कानमे देखा जाता है, है। भगवान् मनुन भो ऐसा हो कहा है - कि एक विद्वान्ने बहुत यात्रसे एक तर्क छेड़ा, अन्य विद्वान- जो धर्म शुद्धिको रच्छा रखते हैं, उन्हें प्रत्यक्ष अनु- ने उसी ममय उसको मिथ्या बता दिया और उनमे भी मान ( तक ) और विविधशास्त्रका उत्तमरूपसे ज्ञान अधिक विहान्न उनके तर्क को भो मिथ्या मिड कर दिया। रखना चाहिए । जो पुरुष वेदशास्त्र के अविरोध तर्कका मानववृद्धि विचित्र है, इसी लिए प्रतिष्ठित तक अम- अवलम्बन कर ऋषिमे वित धर्म विधिको खोज करते हैं, भव है। जब कि मानवबुद्धको अनस्थित है, एक प्रकार उन्ह हो धर्म का वास्तविक रहस्य माम पड़ना है। नहीं, तब उमसे उत्पन्न तर्क भी पनवस्थित होगा एक अप्रतिष्ठित तर्क की शोभा दोष नहीं है। जिम तक में प्रकारका नहौं । इसी लिए तर्क अप्रतिष्ठादोषसे दूषित दोष हैं, उसे छोड़ देना चाहिये निर्दोष तक ग्रहणीय है अर्थात् स्थिरतर तर्क नहीं होता । अतएव तर्क अवि- है। पूर्व पुरुष गढ़ थे, इसलिए इसका भी मूढ़ होना श्वास्य है। तक का विश्वास करके शास्त्रार्थ निर्णय पड़ेगा, ऐसा कोई नियम नहा। एक नर्क में दोष देख करना अन्याय्य है। मान लो, प्रसिद्ध कपिल देव मर्वन कर समस्त नकीम दोष बतलाना बड़ा अन्याय है। थे, इस कारण उनका तर्फ प्रतिष्ठित था, ऐमा कहनेमे सम्यकजान एक हो प्रकारका होता है नाना प्रकार- भी कहेंगे कि. बस भो प्रतिष्ठित था अर्थात् वह बात का नहीं। मेरे एक तरह का और तुम्ह दूरो तहका भो तर्क में अन्यरूप हो जाती है। कपिल सर्वन थे और हो. ऐमा भो नहीं ; क्योंकि सम्यक ज्ञान वस्तु के अधीन है, गौ-म असतंज, उस विषयमें क्या प्रमाण है। कपिन्न. न कि मनुषाके । जैसे-अग्न उगा है। प्रग्नि उष्ण है कणाद, गौतम, ये मभी ख्यातनामा १, मभी महात्मा या ज्ञान एक हो माँ ता अर्थात् सब ममय और सन और सर्वविदित हैं परन्तु तो भो इनके मतम परस्पर पुरुषांके लिए ए4 सा है। सलिए सम्यक ज्ञानमें मता. विरोध पाया जाता है। मत (तक) का होना असम्भव है। त बुद्धिसे उत्पन्न कपिनके मतमें कणाद और गौतम को आपत्ति है है। इसलिए वह माना व्यक्तियां का नाना प्रकार है तथा तथा कणाद और गोतमके मतमें कपिल को आपत्ति है। विरुद्ध तक जनित जान मा विभिन और परस्पर विरुष यदि कहोगे, कि हम ऐसे एक तर्क का अनुमान करेंगे, होते है, किन्तु सम्यक ज्ञान एक हो प्रकारका होता है। जिपमें प्रतिधा-दोष नहीं पायेगा । ऐसा नहीं कहा किसी हालसमें भो विभिन्न नहीं होता। मकता कि, प्रतिष्ठित तक है ही नहीं। एक न एक एक ताकि कने तक बलसे कहा कि यही सम्यक - प्रतिष्ठित तर्क है, यह अवश्य हो स्वीकार करना पड़ेगा। शान है और दूसरे ने उसका सहन कर कहा कि नहीं, हो, ऐमा कह सकते हो कि, किमी किमो तर्क को अप्र- वामन्यमान नौं, यस सम्यक जान है । पतएव जो तिष्ठितव देख कर समावमें प्रतिष्ठितत्वको कल्पना एक प्रकारका नहीं, बस पखिर तकसे उत्पब है, ऐमा , करनेसे व्यवहार उच्छदको पापत्ति हो सकती है, सभी जाम किम तरह सम्यक हो सकता है।