पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३२६

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३२२ पामोयवर्ग का 'तीन' को उपाधि दो। तभोसे सिन्धः तर्णक (म'• पु० ) तर्ण एव स्वार्थे कन् । १ सद्योजात- देशमें तर्खानवशको उत्पत्ति हुई है। वत्स, तुरतका जन्मा गायका बछड़ा । २ शिश, बच्चा । ___ परगना प्रदेशमें भो तर्वानव शियोंका वाम है । ७०३ तर्णि (पु. ) तरत्याकाश पइति त नि । १ मूर्य । ई में वहाँके तनिनि अत्यन्त समागे साथ फारमक २ प्रध बेड़ा। मुलतानको अभ्यर्थ ना को थी। कास्योय मागरके तत्त रोक ( म० लो०) तोर्य त्यनेन तईक । फर्फरोश. पश्रिममें खजरके ग्वाकों में कर्मचारीविशेषको तुर्खान दश्च । उण ४।२० । इति नि गतनात् माधुः । १ नोका. कहते हैं। नाव । कतरि-ईक । ( त्रि.) २ पारग, पार भारतमें तर्वान-वशके लोग इस ममय नमरपुर और करनवाना। ठट्टामें रहते हैं। तर्त्तव्य ( म०वि०) त-तव्य । तर गोय, पार होने योग्य। १५२१ ई० मे मिन्धुदेशमें अघु नवगियोंका आधिपत्य तद् म स्वी०) तरति लपत त ऊ दुकागबोदुश्च । देखनमें पाता है। १५५४ ई० दम वश के शाह हमेन ' उण १।२१ । दारु हस्तक लाडो का हत्या । को अपुत्रक दशामें मृत्य होने पर तग्वान गर्न अर्पना तन ( म० पु० ) द वा मनिन्। १ छिट्, न, वशका स्थानाधिकार किया। किन्तु ये कुक हो दिन : सुराख । २ तर्दन प्रदेश। वहाँ गज्य कर्नमें ममर्थ हए थे। १५८२ ई० में बाद पंगा । म क्लो० ) प प्रोगन भावे ल्य.ट । १ तृप्ति, शाह अकबग्ने मिर्जा जानोवेगको परास्त कर मिन्धुदेश प्रोगन मन्तोष हनिको क्रिया । २ यस काष्ठ । दृप्यन्ति मगल-माम्राज्यमें मिला लिया था। पितरो यन टप-करण ल्युट । ३ श्राहारविरोष । तर्ज ( अ स्त्रो० ) १ प्रकार, तरह, किम्म। २ रोति ४ नेत्रतर्प गानुष्ठान। ५ जलदान दे कर देवर्षि, पिट, शलो. दंग, ढब । ३ रचनाप्रकार, बनावट। मनुष्य आदिको दृत वा परितुष्ट करने का कार्य । यह नर्जन ( म० क्लो० ) तर्ज भावे स्थट । १ तिरस्कार, फट. तर्षगा पञ्च महायज के अन्तर्गत महायज्ञ का भेद है। कार। २ अवज्ञापूर्वक निर्देशकरण. घृणा करनेका तर्पण दो प्रकारका है --प्रभान तपण और अङ्ग- कार्य । ३ भयप्रदर्शन, धमकानका काय । ४ श्रास्फा. तपण । शातातपन प्रधान तर्पणका वर्णन इस प्रकारमे लन, ताड़न. मार, फटकार । ५ क्रोध, गुस्मा। किया है, तजना (Eि कि• ) डाटना, धमकाना, डपटना। सातक हिजगण शुचि हो कर प्रतिदिन देव, सषि तर्जनो (म स्त्री० ) तर्जत्यनया मज करणी न्य,ट तत: और पितगेका यथाक्रमम तपण कर तथा विधवा स्त्रियां डोर । ' अङ्ग,राममोपाङ्ग लो, अँगुठेके वाम की स्त्रियाँ कुगतिलोदक हारा भर्ता और श्वशा गर्दिक नाम उगली । दम दूसरा पर्याय प्रशिनो है। गोत्र का उल्लेख कर प्रतिदिन तपंगा करें ।* तर्जनोमुद्रा । म स्त्रो० ) तन्त्रोक मुद्रामैट, तन्त्रको एक इन मतसे भगतपणा इस प्रकार है- मद्रा। हममें बायं हाथको मुट्ठो बाँध तजना और मान तोन प्रकारका है--नित्य, नैमिशिक पोर मध्यमाको फैलाते हैं। तर्जिक ( म० पु. ) तर्ज स्तर्ज नमस्त्यत्र तज ठन् । देश- काम्य, तर्पण उमका अङ्ग है। प्रात्यक्षिक प्रातः और विशेष, एक देशका प्राचीन नाम, नायिकदेश । मध्याज सम्बन्धो मान नित्य है। ग्रहणादि के निमित्तमे तर्जित (म त्रि०) तक्ता . भलित, अपमानित, पना- जो स्नान किया जाता है, उसे नौमित्तिक कहते हैं। दर किया इत्रा।

  • "तर्पणन्तु शुचिः कुर्यात प्रस्यहं मातको द्विजः ।

तर्जुमा (प्र. पु० ) अनुवाद, भाषान्तर, उल्था। देवेभ्यश्च ऋषिभ्यश्च पिहभपश्च यथाक्रमम् ।। तर्ण (म० पु.) नोंति तृणादिकं भक्षयति शपच । तर्पण प्रत्यहं कार्य भर्तुः कुलतिलोदकैः। १वल, बछड़ा। २ शानिधान्यविशेष, एक प्रकारका तत् पितु स्तपितुश्चापि नामगोत्रादिपूर्वकम् ॥ धान। (भारिकतल)