पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३२७

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गङ्गा प्रादि तो में जो खान किया जाता है, वह काम्य होतो है। अरुणोदयकं समय साम करनेसे मामवैदियों मान है। चाण्डालादिक स्पर्ण, श्वश्च कर्म, पशुपात, को मध्याह्न तर्पण के बाद पिटतर्पण करना चाहिये । मथुन, छद न और अस्पश्य स्पश करनेसे जो बान करते पोछे मध्यासान करने पर मध्याह्न पथ्याङ्ग तर्पगा है, वह भो नैमित्तिक मान है। किन्तु ऐसे नैमित्तिक करके पिटतपण करना चाहिये । प्रातःसान न करनेसे मानमें सर्पणादि जलक्रिया नहीं की जातो। पूर्वोक्त सूर्योदय के बाद जो बान होता है, उसको पहचान नित्य, नैमित्तिक और काम्यबान करनेमे हो तर्पण कहते है, समलिये पिटतर्पण मध्या मध्याके बाद करें। करमा आवश्यकोय है। जो पुत्र मास्तिकताकै कारण प्रातःकालमें खान और सर्पण करके यदि महामान प्रतिदिन पितरीका तर्पण नहीं करता, पिटगण जन्लार्थो न किया जाय, तो मध्यात्र कालमें प्रधान सपण नहीं हो कर उसकी देहके कधिरको पीते हैं। अतएव प्रति करना पड़ता । कारण-अरुणोदय तगासे हो प्रधान यत्नपूर्वक प्रतिदिन तपंगा करें। मान करके तर्पण तर्पणको मिद्धि होती है। चन्द्रस र्य ग्रहगा और अर्यो- करना उचित है। इस नियमके अनुसार यदि किमी दिन दय श्रादि योगोंमें मान करनेसे केवल तपंगा करना शारीरिक असस्थताकै कारण प्रातः, मध्यासान न पडता है। किया जाय, तो क्या उम दिन तर्पण करना निषिद्ध शगेर अमुस्थ होने पर यदि प्रातः भोर मध्यासान है ? परन्तु वचनान्त में "तर्पण प्रत्यई कार्य' न किया जाय, तो मध्याह्नमध्याग तपंगके बाद प्रधान इत्यादि बचन हारा तपणको नित्यता प्रतीत होती है। सपंगा करना पड़ता है। किसी कारणसे जो व्यक्ति "नास्तिक्यभावात् यश्चापि न तर्पयति वै सतः। एक दिन प्रातः और मध्याह्नसन्ध्या कर पहासान करता पिवन्ति देहरुधिर पितरो वे जलार्थितः ॥" है, उसको मध्यास्नानान्तर तपंण करना चाहिये । ( योगी याग्यवल्क्य ) सन्ध्यादि करके यदि तीर्थादिमें बान किया जाय तो भी तपंगा को नित्यताकै कारण "शुचि हो कर तपंण सान के बाद सर्पण करना चाहिये। करें" इम बचन अन मार प्रधान नर्पण मध्याह और जिम जलाशयका जल ममस्त प्राणियों के लिये उत्सर्गी- संध्या के बाद करना उचित है। क्योंकि पञ्चयज्ञान्तगत कत नहीं हुआ है और प्रभोज्य है अर्थात् मेच्छादि तर्पण म यातकाल में कहा गया है। हाग खानित कूप पुष्करिणी पादिका जन्न और निपानज ___ यदि प्रातःसान मर्पण करके मध्याहसान न कर जलसे सगा न करना चाहिये । ( कूपक पाम गाय भैस भ, तो भी प्रधान तर्पण करना विधय है या नहीं? आदिके पौनके लिये रचित जलाशयको निपान कहते है।) इसके उत्तरमें शासातपन लिखा है, कि प्रातःसानाङ्ग “यन्न सर्वाय चोत्सृष्ट' यच्चामोज्यनिपानअम्। तपंण करनसे हो प्रसङ्गाधोन पञ्च यत्रान्तर्गत प्रधान तद्वय सलिल सात सदैव पितृकर्मणि ॥" (आदिकतत्त्व) तपंगा की भी सिद्धि होती है। मनुन कहा है-हिजगणवृष्टि के जलसे सपण न करना चाहिये। शूद्र और मेघ नान करके जल द्वारा पितरोंको ओ तर्पण करते हैं. ____ आदिके जलसे मान, पाचमन, दान, देव और पिटतर्पण उसो तप या के हारा हो उन्हें समस्त पिया क्रियाका न करें। जो पक्ष वाति वर्षा होते ममय दृष्टिजल फल प्राम होता है। मिश्रित मनसे तर्पण करता है, उसको निबयसे धीर "यदेव तर्पयर्यादः पितृन् माखा द्विजोत्तमः। नरक में जाना पड़ता है। ईटके बने हुए स्थान पर बैठ बेनैव सर्वमानोतु पितृयाकियाफलम् ॥ (मनु) कर पिटतपण न करना चाहिये। गनुके मनसे-रात्रिक शेष चार दण्डसे पागामो मेष्टकाचिते स्थाने पितृ तर्पयेत् ।" (शबलिसितं) रात्रिके प्रथम चार दण्डके भीतर सान करें, अर्थात् प्रातः पार्द्र वस्त्र हो कर तर्पण करना हो तो जसमें रह पौर मध्याहू नानका उखि न रहने के कारण पर- कर हो तर्पण करना चाहिये। भाई बस परित्याग . बोदय कासीन तर्पण हारा भी पिवयन तर्पषकी मिति करने पर तौर पर बैठ कर तप करें। किन्त तीर्थ-