पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३५

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शेकारी पुरुष धीरसिंहका प्रादुर्भाव एमा । पहले के केवल एक विद्रोह रचा तब मिवजितने समय गीबोको मामान्य जमींदार थे। उनके पुत्र सुन्दर सिंहने बज रक्षा की थी। उनाने गयाले टिकारी तक जमनो नदी के बिहारके सूबादार प्रस्तोवर्दीखाँको महाराष्ट्रों के विरुद्ध अपर एक बड़ा पुल बनाया और धर्म माखामें एक छहत् सहायता पहुंचाई थी तथा पटना के विद्रोह दमनमें सरोबर खोदवाया था। उनझे थलसे टिकारो-राज्यको सफलता भी प्राप्त को थी। अतः सूवादारको पोरसे पाय दुगनी बढ़ गई थी। १८४..मैं वे परलोकको एन 'गजाको उपाधि मिलो । राजा सुन्दरमिह मिधारे । एक साहसी वीर थे। उन्होंने सहजही में अपनी मम्पत्ति उनके बड़े पुत्र हितनारायण पाने तथा शेटे को बहुत कुछ सबसि कर डालो। थोड़े ही दिनोंके मय पुत्र मोदनारायसिंहने । पानेको सम्पत्ति पाई। उन्होंने भोकड़ी, मनवत्, एकिल मिलावर, दखनाहर १८४५ के १० नवम्बरमें हिसनारायणको 'महाराज' पाङ्गटो और पहारा तथा पमराध भोर माहरे परगने का को उपाधि तथा लार्ड हार्डिसे समदमिनी घो। ये अधिकांश अपने राज्यमें मिना लिया। इसमें मिया उन्होंने देवहिलमत्त और धार्मिक थे। वे अपनो सावमिको विहार और गमगढ़के नाना स्थानाम भो यथेष्ट सम्पत्ति महागणो पन्द्रजितकमारो पर राज्यका भार सोप कर पाई थो। पन्तमें उन्हीं के एक जमादारने उनका प्रापा पाप पटनमें गङ्गाके किनारे समय व्यतीत करने लगे। नाश किया । सुन्दरके तीन पुत्र थे - बुनियादसिंह, फतेह- समी स्थान पर १८६११ में उनको मृत्य । सिंह और निहालमिह। कोई कोई कहते हैं कि वे इन्द्रजितकमागके सुशासनसे राज्यको उबति चरम तोनो सुन्दरके भतीजे थे और उन्होंने केवल ज्येष्ठ बुनि सीमा तक पहुँच गई थी। तथा प्रजा भी बहुत सुखसे यादमिहको दत्तकपुत्र ग्रहण किया था। रहती थी। उन्होंने पतिको धनमति लेकर अपने भतीजे बुनियादमिह शान्तिप्रिय थे। अङ्गारेजों के साथ गमलणमिहको दत्तकपुत्र ग्रहण किया और निहाल- उनका अच्छा मड़ाव था। उन्होंने पानुगत्य स्वीकार कर मिहके उत्तराधिकारियों से उनका भविषाका दावा अगरेजोको एक पत्र लिखा। वह पत्र नवाब मोरकासिम कायम रखने के लिये एक पत्र लिखवा लिया था। के हाथ लगा। पत्र पा कर कासिमालो बहुत बिगड़ा १८७० ई० में रामयणसिंह उत्तराधिकारी हुए। इन्हें और उन्होंने बुनियादमिक तथा उनके दोनों भाईको १८७३१ में 'महाराज'को उपाधि तथा हटिश गवर्मेण्ट पटने बुलवा कर मार डाला। उता घटनाने कुछ पहले से ३५०० रु० मूल्यको खिन्नत मिली। दूसरे वर्षम बुनियादसि इके एक पुत्र हुआ था । कासिमपलाने उन्हें एक दूमरा अधिकार मिला, जिससे उनको पारन उस छोटे बच्चे को मार डालने के लिये एक पादमो पदालतमें जानेको पावश्यकता न रहो, किन्तु १८७५ भेजा। किन्तु रानीने पुत्रको बचाने के लिये उसे एक में उनकी मृत्य हो गई। वे फैजाबादक पन्तर्गत उपलको टोकरी में रख कर बुनियादक प्रधान कर्मचारी पयोध्या नामक स्थानमें सथा गया जिलेके धर्मशाला, दलोलसिहके निकट भेज दिया। बक्सरको लड़ाई तक नामक स्थानमें एक बड़ा मन्दिर निर्माण कर दसोलने राजपुत्रको बहुत सावधानोसे रक्षा को थो। इस गये। राजकुमारका नाम मित्रजिसिंह था। मेताबरायके मोदनारायणके भो कोई मन्तान न थी। उनकी मृत्यु शासनकालमें मित्रजिसि ने अपनी समस्त सम्पत्ति हो के बाद उनको दो रामी अवमिधाकुमारो पौर रानो खो डालो थो। अन्तमें लॉ माहब (Mr. Liv) जब शोणितकुमारोने अपने स्वामोको सारी मम्पत्ति दो बरा- विहारके कलेकर हुए, तब मिवजिसिंचन पुनः अण्नो बर बराबर भागीमें बाँट लो। भोणितकुमारोने पपने पूर्व सम्पत्ति तथा दिलो दरबारमे 'महाराज'को उपाधि भतीजे प्रताप नारायणमिको दत्तकपुत्र बनाया । पाई। बंगरेज सरकार भी उन्हें 'महाराज' कहा करती उनको देखादेखो असमे धकुमारोने भो एक दत्तकपुत्र घो। बरकदो जिचके कोलाम मामक स्थानमें जब ग्रहण किया। प्रतापने सारी पैत्रिक सम्पत्ति पर दावा