पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ताकना ( जि.) १ विचारना, चाहना, मोचना मध्य एक पायताकार सरोवर है, जिसका जल बहुत २ एक दृष्टि से देखना, टकटको लगाना। ३ साइना, परिष्कार पोर स्वास्थ्यजनक है। पूर्व की पोर जल तक मखमा । ४ पहले से देख कर स्थिर करना, तजवीज बहुतमो सीढ़ियाँ भा गई । तालाब देखने में बहुत करना। ५ दृष्टि रखना, रखवाली करना। सुन्दर लगता है। इसका परिमाण ११४१३ है। साकरीलिपि-बामियानसे यमुना नदीके किनारे सके। गुहाके पश्चिम दिशामें एक महादेवका मन्दिर है, जिम प्रदेशमें जो जो पक्षर प्रचलित हैं, उनका नाम है में शिवलिङ्ग स्थापित है। मन्दिर पा निकसा प्रतीत ताकरी। ताकरी पक्षर नागरी लिपिके समान नहीं, होता है। इसका परिमाण २५४१० फुट है। पायता. बल्कि नागरीका रूपभेद हो सकता है । मम्भवतः तक्षक कार, नलाकार और प्रष्टकोणाकार इन तीन प्रकारले वा साकोंने इन अक्षरोंका पहले पहल प्रचलन किया है, ६ फुट ऊंचे स्तम्भसि मन्दिरका दालान सुरक्षित है। इसीलिये उनके नाम्गनुमार इमका ताकरो नाम पड़ा इमको छत प्रस्तरमय है। जिम कोठरीम शिवलि प्रति सिन्धु नदीके पश्चिमको तरफ और शतट्ठ नदोके पूर्व- ष्ठित है, वह समचतुभुजाकार है। मन्दिरके शिखर भागमें तथा काश्मीर और काङ्गडाके ब्राह्मगों में इस लिपि पर एक कलम दोख पड़ता है। कहा जाता, कि का प्रचलन है। काश्मीर और काङ्गडाके शिलालेखों बेलगाँवके अधीन त्रिकौड़ो के निकटवर्ती चन्टरके राम और सिकोंमें यही पक्षर देखने में आते है। काश्मोरका रख भगवन्सने १७३० ई में यह मन्दिर निर्माण किया गजतरहिणी नामक ग्रन्य भी तकारी लिपिमें लिखा गया है। माघ मासको कष्ण चतुर्द धीमें यहाँ प्रतिवर्ष मेला है। य सुफजाह और मिमलाके बीच २६ स्थानों में यह लगता है। शुक्लपक्षक रात्रिकालमें कमल-भैरवोको प्रति- लिपि दौख पडती है। इसमें कोई कोई स्थान ताकरो मूर्ति को पालको पर चढ़ा कर यात्रा करते है। मग और न गड़े नामसे परिचित है। ताकि ( फा० अव्य० ) रसलिये कि, जिसमें । मलिपिमें विशेषता रतनो ..कि स्वरवर्ण व्यवन- ताकीद (प. स्त्री.) किमीको मावधान करतो के माथ कभी भी मयुक्त नहीं होता, पृथक लिखना पाज्ञा वा अनुरोध । पडता है। इस लिपिक संख्याबोधक अक्षर हालके ताकोलो (हिं० वी० ) एक पौधेका नाम । प्रचलित अक्षरों के समान है। यह महजमें लिखी जा साक्षक ( स० वि०) सक्षक सम्बन्धीय । सकती है। इसमें सिर्फ 'अ' व्यञ्जनवर्ण के साथ मयुक्त नाक्षण्य स. पु०-स्त्री. ) तक्ष्णोऽपत्य नक्षन-न्य यो किया जाता है। अपत्य। तक्षका अपत्य, बढ़ईको मन्तान । सालथिल (स.वि.) साथिन्लोऽभिजनोऽस्य सशिम- ताकारी-सतारा तासगाँवके रास्त के दक्षिणमें अवस्थित अग्ण । तक्षशिलाजात, जो तक्षशिला नगरीमें सत्पन एक गण्डग्राम। यह पेठ नामक स्थानसे १० मोल उत्तर- हुधा हो, या जो तक्षशिला नगरोसे पाया हो। पूर्व तथा कराड़से १६ मील दक्षिण-पथिममें पड़ता है। ताक्ष्ण (स० पु. स्त्रो०) सक्ष्णोऽपता' तणन्पण । शिवादि. सताराके रास्ते से प्रायः १ मोस उत्तरमें एक छोटा पहाड़ भ्योऽणः । पा १११११ तक्षकका प्रपता, बढईको सन्तान । देखने में पाता है जो दक्षिण-पूर्व की ओर विम्त त ताखी (अ० वि० ) जिसको दोनों प्राख भित्र भिवर है। इस पहाड़ में एक पाषर्य रमणीय गुहा है। इसी या ढङ्गको हो। गाके लिये साकारी ग्राम बहुत मगहर हो गया है। ताग (हि.पु. ) तागा देखो। प्रायः मील पहाड़के अपर कुछ दूर जनिसे उक्त गुहाके तागड (हि. स्त्रो.) तक्तोंको बनी हुई एक प्रकारको पास पहुंच जाते है । गुहाके पश्चिम दिशाको पार्वतीय सीढ़ी जो जहाजों पर चढ़ने के लिये लगी रहती है।' भूमि प्रायः २० गज पर्यन्त समतल । कमलभैरवीका सागड़ो (स्त्रिो०)१ कमरमें पहननेका एक गहमा, कर. सीतवर्ण मन्दिर दक्षिण पूर्व कोचमें प्रतिहित है। उस धनो. कांचो। २ कटिस्न, कमरमें पहननका रंगोन गुरा ४० फुट लम्बी और • फुट मारी।। सके डोरा। . Vol. Ix.88