पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३६६

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३६२ तारित है। (३) काँचका ताडित नागके तादितको प्राकर्षित बाल में बहुत दिन तक रखा जा सकता है, उसका करता वा खोंचता है। साड़ित-धर्म लुप्त नहीं होता। किन्तु डोरा यदि भीगा पन मनको देख कर मिहान्त किया जाता है कि हुपा हो वा वायु पार्द्र हो अथवा हाथमे वा किमी कांच का तारित प्रार लाखका ताडित परस्पर विरुद्ध वा धातुव्यसे उसका स्पर्श हो गया हो, तो शीघ्र ताड़ित विपरोत धर्मयुक्त है। कान ताडितको धम-साड़ित और धर्मका लोप हो जाता है। सूग्वा डोरा और आद्र वायु नाविक ताडितको ऋणा-ताड़ित कहनकी प्रथा चम्न गई परिचालक है तथा भीगा डोरा, आई वायु, मनुष्यका शरीर और धातु-पदार्थ ताड़ित के परिचालक हैं । अपरि- बोजगागातम धन गशिक साथ ऋग-गशिका जो चालकके भीतरसे साड़ित अन्यत्र नहीं जा मकताः किन्तु मम्बन्ध है. पावन के माथ देनका जो मम्बन्ध है, प्रवेगके परिचालक पदार्थ नाड़ित के गम नमै वाधा न देता। माय निगमका जेमा मम्बन्ध है, धन-तारितके साथ। कांच, लाख आदि अपरिचालक पदाय पर जहाँ घर्षण मृण ताडतका भो ठोक वैमा की मम्बन्ध है । दान और होता है, ताड़ित ठोक वहां प्रावह रहता है। धातु ग्रहण के एक माथ होते रहनसे जिस तरह दान भो पदाथ में ताडित एक जगह विकाणित होने पर वह अधिक नहीं होता और ग्रहण भी अधिक नहीं होता, तुरत हो मर्वत्र फैल जाता है । इस कारण धातुपदार्य अग्रवर्ती हो कर पोछ लोटनेसे से भागे वा पोछे कि भी हारा ताडितको रोका नहीं जा सकता । धातुपदार्थ के पर भी ज्यादा चलना नहीं होता. उसी तरह धन-ताडि ताडित मञ्चित और पावड कर रखने पर उमको शुष्क समें ऋगाताडितका योग होनसे अर्थात् धन-नाड़ित के वायमें शुष्क रेशमो मृतमे खोच कर वा काँच प्रादि पाम मृणाडित ले जानेमे दोनाम स्वतन्त्र फल भली परिचालक सामे बने टेके भांति नहीं दोग्यता। रक्खा जा सकता है। वायु अधिक पाई होने पर काँच दश रुपये कर्ज हो जाना और दश रुपये किमो पर आदि पर पानो और मैन होना है कि उस मे पावन र ना जिम तरह एक हो बात है, उमी तरह ढकता हा ताड़ित अन्यत्र चला जाता है। काँच, लाह, धन ताहितका कुछ बढ़ जाना और ऋण-ताडितका कुछ रेशम, पशम, वायु, ह, सूची लकड़ो, मोना, कायना, घट जाना ममान है । किसी वस्तु में धन-ताडितका मावि गन्धक, हैन आदि पदार्थ अपारचालक है। धातुपदार्थ भी हुया है, यह कहना और उसमें ऋण-ताडिलका मात्र को साधारणतः उत्तम परिचालक होते हैं। मनुष्य तिगमाव हुआ है, यह कहना बराबर हो है। दोनों का शरीर भी परिचालक है। किमो द्रव्यमें ताड़ित रह- ४म : मिवा अन्य कोई मम्बन्ध नहीं है। इतना याद नसे स्पर्श मानसे वह साड़ित अन्यत्र चला जाता है। बना चाहिये, कि धन-साड़ित 'क' से 'मनु' में गया, परिचालकका धर्म । -परिचालक पदार्थक अभ्यन्तर- अथवा मृग-ताड़ित 'ख' में 'क'में गया, दोनों वाक्य हा देश में ताडितको क्रियाका प्रकाश नहीं होता। माधार-. होक ममानाथ वाचो है। पतः हलके पदार्थोके पास ताड़ित मश्चित होमसे वे पदार्थ ___ और एक बात है। काँचके ताडितको ऋण न कह ताडितको तरफ पानष्ट होते है । कहीं कहीं अग्निके कर धन कहने के लिए कोई युक्ति नहीं है। दो प्रकारक स्फुलिङ्ग प्रादि ताडितको पन्धरूप क्रियाएं भी देखनम ताड़िताम एकको धन और दूसरेको ऋण कहनसे हो पाती है। पाकर्षण, विकर्षण, पम्निस्फुलिङ्गको उत्पत्ति काम चल सकता है। काँचके ताडितको धन और गाला पादि ताड़ितमें विविध क्रियाएं देख कर ताडितका या लाक ताडितको ऋण कहनेकी सिर्फ प्रथा चल विकाश और पस्तित्व समझ पा जाता है। किन्तु किसी गई है। भासमय व्यके भीतर ऐसी कोई भी किया प्रकट नहीं परिचालक और अपरि चालक पदार्थ-ताहिताक्रामती , अर्थात् एक टोन बकस पालो के विजीके भीतर किसी पदार्थको मुख रेशमो डोरमें लपेट कर रो सका पहावा समितीनवयच बादि रहने बताया