पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३७२

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३६८ सादितः रहेगा। यदि सिर्फ धन ताडित हो उममें यथेष्ट उहाति प्रताड़ित उसटी तरकको जानेको चेष्टा करता होतो, पाममें ऋण होनम उमको उहानि उतनो नहीं है। बोचमें अपरिचालक रहनेसे सहमें परस्पर हो सकती। मिल नहीं सकते, परिचालक रहमेसे उसी समय मरो चहरका जितने पाममें रकवा जायगा, उडति मिल जाते हैं। ताडितका यह मचालन वा गताः मतमो हो कम होगा। इमलिए ऐ मे स्थल पर पहलो चद्दर यात माधारणतः तीन प्रामालियाम होता है। पर बहत धन ताडित मञ्चित कर रखने पर भा उमको (१) बीच में परिचालकका व्यवधान होनेसे दोनों साहित उहाति ऊँचेको महों चढ़तो। तारित मश्चित कर उमो ममय मिन जाते हैं। एक ताँबे या पोतल प्रथा रखनक जरूरत पड़ने पर ऐगा उपायका अवलम्बन किसो भी धातुके डगड़े, तार या जजोरमे धन साड़ित करना उचित है। एक काँच को बोतन भातर और और ऋण ताड़ितको परस्पर छुपा देनमे, दोनों हो उस बाहर जम्ताकं वरक चिपटा टेनेमे, वर साड़ित पड़ धातु द्रव्य के हारा विपरीत दिगाको धावित होते है । उस रग्वनका उमदा यन्त्र बन जाता ह : ऐसे यन्त्र को लाडेन. धातुमें क्षणिक प्रवाहका सञ्चार होता है। दोनों ताड़ितों- जार कहते हैं। ऐसे हो कक लोडम-जागको बगबर का मिल जाना प्रवाहका फन्न है। मिल जानेसे मर्वत्र जराबर मजा कर मब के भीतर और बाहर के हिम्मको उहति समान हो जाती है और प्रवाह बन्द हो जाता धातु हारा जोक दो, इस तरह बैटरो बन जायगो। है। ताड़ित प्रवाहके विशेष धर्म को बात पीछे कहेंगे। उममें काफी बिजला मञ्चित को जा सकता और बहन मामूला तोर मे यह याद रखना चाहिये. कि उद्धति देर तक रकवा जा सकता है। बाहरका हिम्मा जमोनको समीकरणको चेष्टामे ही परिचालकमें ऐसे क्षणिक प्रवाह- छुए रहता है; भौतर जिमना धन होता है, बाहर उतना की उत्पत्ति होती है। जिमके भोतरसे प्रवाह चलता हो मृण सञ्चित रहता है। मतलब यह है कि धन अपने है, वह उत्सम होता है। महधर ऋण पाम रहे, तो दोनों दोनों को बाँध रखते (२) धन और ऋगाताडितके मध्य काँच, वायु है, पन्यत्र नहीं जाने देते। ओर दूर रहनमे दोनों ह आदि अपरिचालक व्यवधान होनेसे दोनोंका मिलना अन्यत्र जानकी कोशिश करते रहते हैं। महजमें नहीं होता । धनके निकटवर्ती प्रदेशमें उद्धति योतो जहाँ भो ताड़ित है, वहीं ऐसे लोडेन-जारको अधिक और ऋणके निकटस्थ प्रदेशमें उह ति कम रह भो सृष्टि होता है। किमो चोज पर कुछ धन ताहित जाती है। किन्तु इम उड,ति-वैषम्य के फलसे धन हमेशा रहनेमे हो अन्य किमो चोज पर दोवाल या जमीन पर ऋणको सरफ और ऋण धनकी तरफ जानेको चेष्टा उसका सहवर्ती ऋण-ताड़ित अवश्य ही रहेगा। दमकं करता है। जिन दो पृष्ठा पर दोनों साड़ित मक्षित होते मिवा कुछ धनके सामने कुछ ऋण रख कर बीच में अपरि हैं, वे परस्पर प्राकष्ट होते है और यदि रोका न आय तो चालकका व्यवधान देनसे लार्डन जारको सृष्टि होतो अग्रसर हो कर आखिर तक एक दमरेको छ । है। बात यह है कि यह व्यवधान जितना कम होगा, दोनों के मध्यवर्ती प्रदेशमें एक खिचावमा पड़ जाता है। धन और ऋण जिसने पास पाम हांगे. उपलोडिन जारको म उहमिक वैषम्यको क्रमशः बढ़ानसे वर खिचाव काय कारिता, अर्थात् दोनों ताडितको स्थितिशोलता आखिर तक इतना बढ़ जाता है कि फिर मध्यवर्ती उतमो ही अधिक होगी। वायवीय-व्यवधानको अपेक्षा अपरिचालक भी दोनों साडितको पृथक् नहीं रख काँच भादिक द्रव्योंका व्यवधान उम स्थितियोलताके सकता। इस्पात या रबरका तार बहुत कुछ बिचावको अधिक अनुकूल होता है। मह लेता है, किन्तु ज्यादा खिंचाव पड़ने पर टूट भी ताडितका सभालना-पुन: पुन: उलिखित हुपा है, जाता है। नमी प्रकार बीचका परिचालक भी पाखिर कि धनताडित जहाँ उद्धति अधिक है, वहाँसे जहाँ तक टूट जाता है। परिचालकको तोड़ कर ताड़ित उति कम है, उसी तरफ तथा उसका सही मानो अपनी रास्ता कर लेता है और सखाये दोनों