पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/३८४

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10 साहित ताडितका स्फ लिङ्ग सिर्फ कम्पन वा भान्दोलन तर देवो गई हैं। उपयुक्ता यन्त्र के खुद्र धनान्दोलित मार ह स्थिर हो गया है। किन्तु प्रवाहोत्पादन के द्वारा एक आध इञ्च तक ताडि मक्सवेलन इस बात का सिर्फ अन मान ही किया था, तोमि उत्पन्न हुई हैं। अण प्रमाण यन्त्र को मुष्टि होनेसे कि हम आन्दोलन के फलमे चारा पोर आकाशमें तापादिकी सहायताके बिना आलोक मुष्टि भो मम्भवपर ताडितका तरङ्ग उत्पन्न हो मकतो हैं। वे उन उमिति होगी । अस्तित्वको प्रत्यक्ष नहीं कर मके थे। जमनके विद्वान् मक्सवेल और हार्टजको गवेषणाके फलसे यह स्थिर हाट ज ( 111t1. ) ने १८८७ ई० के शेष भागमें प्राकाग- हुआ कि, आलोक ताडितको हो छोटो छोटो तरङ्ग है वाहो नाड़ितामि के अस्तित्त्वको प्रत्यक्ष दिग्बनाया था। तथा पालो कविकाश ताड़ित विज्ञानको हो शाखा है। तमाम ताड़ितोमि एक प्रकारमे चर्म चक्षु के गोचर होती. नाडितका स्वरूप ।-ताड़ित का स्वरूप अब कुछ है। तरङ्गको लम्बाई का भी निषय हो गया है। मेक गड ममझा जा सकता है। आकाश मत व्याल है, धातु- में कितनी तर होतो हैं, इमको गणना हो गई पदार्थक भातर आकाश मानो ताल है, अपरिचालक के है। देखा गया है, कि ताड़ितोमि भी ठोक पानी का भातर और शून्यदे शर्म आकाश माना कठिन है, कठिन मि को भाँति एक लाग्व कियामी हजार मोन वेगन पदार्थ के मातरमे धक्का मञ्चारित होता है, सरलके भीतर पाकाशप्रथम चारों तरफ धावित होता है। ताड़ितोमि नहीं होता। कठिन खिचाव पड़ता है, तानमें नहीं। मर्वा शर्म बालीकोमि के हो अनुरूप मदृश पोर मजा. इस्पात वा काठके साथ कोचड़ वा मोमको तुलना तोय है । मक्सवेलका अनुमान पार भविष्यवाणो ज्यांक। करन ही समझ मकैगे। उड,तिक वैषम्यमे आकाश त्यो फलीभूत हुई है। वतमान शताब्दोम किन वैजा- में खिचाव पड़ता है। खिचाव से आकाशके दाहिनी ओर निक तोका आविष्कार हुआ है, उनमें यहो आविश्कार हट जान पर यदि धन-ताडितका आविर्भाव हो, तो बाई शायद सर्व प्रधान है। तरफ हटने पर ऋण ताडितका आविर्भाव होगा। ताडितको लहरें और आलोकको तरङ्गमवीं में दाहिनो तरफ जगमा हटनम् माथ माय आकाश बाई समधर्मा हैं । पालोकको रश्मि जैसे प्रतिफलित वक्रोकत और भी जरासा हटता है। धन ताडितके माथ साथ वा विवतित और विस्फारित होती है, ताड़ित को ऋण-ताडितका भी विकाश होता है। अपरिचालकके रश्मि भो ठीक उमो तरहका आचरण करती है। भीतर विचाव होता है, परिचालकके भीतर नहीं होता पालोक के स्पन्दनको जैसो निर्दिष्ट दिशा है, ताड़ितोर्मि- इमोलिए अपरिचालक परिचालक में प्रवेश करते ही के स्पन्दनको भो वसो हो निर्दिष्ट दिशा है। ताडि एक परिवर्तन अनुभूत होता है । इसलिए धातुमय तोमियोंको प्रकृति के विषयमें आन कल विविध गवेष- दाथ के गात्रके मिवा अन्यन्त्र ताड़ित का विकाश नही गाएं चल रही हैं। हमारे देश अध्यापक मर मान म पड़ता । धातु के भीतर यत्सामान्य आकष गासे जगदीशचन्द्र वस सम्प्रति इस विषयमें नवीन तथ्य हो तरन्न अाकाशमे स्रोत उत्पन्न होता है। अब तक निकाल कर यशस्वी हुए हैं। विचाव रहता हैं, तब तक स्रोत रहता है । इस स्रोतको दोनों उमि योंमें अन्य प्रभेद नहीं है, विभेद मिफ तरल जन्नस्रोत के माथ तुलना हो सकती है। अपरिचा- नम्बाईको ने कर है। वर्ग भेदमे पानीकोमि में भो छोटे लककं भीतर कठिन आकाशमें थोड़े खिचावसे प्रवाह बड़े का भेद होता है। साधारणतः चक्षु के गोचर पालो- उत्पन्न नहीं होता, अधिक खिचावसे पाकाय फट जाता ककी तरङ्ग अति शुद्र होती हैं, एक इञ्चका लक्षभाग वा है। अपरिचालकका खिचाव रस्पातक खिचावक साथ दश नक्षमाग हिमावसे उनके दैय का नाप होता है। तुलनीय है। आकाशके फट जाने पर उत्ताप, प्रान्तोक, ताडितकी तरङ्गे खूब बड़ी होती हैं। प्राकाशमार्ग में २ स्फनिङ्ग आदिका विकास होता है। कठिन भाकाच या १० पाथसे लगा कर २ या १. मोल तकको लम्बो सितिस्थापक पदार्थ खिचावसे फटने के बाद मिलता